झालसा रांची के निर्देश पर आयोजित बैठक
झारखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (झालसा) रांची के निर्देशानुसार पाकुड़ जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की ओर से शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण बैठक सह प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश सह अध्यक्ष, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, पाकुड़, शेष नाथ सिंह ने की।
मध्यस्थता प्रक्रिया पर विस्तृत चर्चा
बैठक में मध्यस्थता (Mediation) से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर विस्तारपूर्वक चर्चा की गई। न्यायाधीश ने बताया कि मध्यस्थता विवादों को तेजी से, कम खर्च में और आपसी सहमति से निपटाने का एक प्रभावी माध्यम है। यह न केवल समय की बचत करता है, बल्कि पक्षकारों के बीच आपसी संबंधों को भी मजबूत करता है।
अधिवक्ताओं की भूमिका पर जोर
इस प्रशिक्षण के दौरान मेडिएटर अधिवक्ताओं को उनकी भूमिका और जिम्मेदारियों के बारे में विस्तार से बताया गया। उन्हें निर्देश दिया गया कि वे अपनी मध्यस्थता की क्षमता का अधिकतम उपयोग करें और लोगों को अदालत के बाहर ही विवाद सुलझाने के लिए प्रेरित करें। न्यायाधीश ने कहा कि अधिवक्ताओं को चाहिए कि वे अधिक से अधिक मामलों को मध्यस्थता प्रक्रिया के माध्यम से निपटाएं ताकि न्यायालयों पर बढ़ते बोझ को कम किया जा सके।
दिशा-निर्देश और प्रशिक्षण के मुख्य बिंदु
प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान अधिवक्ताओं को स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए गए कि वे मध्यस्थता के दौरान निष्पक्ष, धैर्यवान और संवाद-कुशल रहें। उन्हें यह भी समझाया गया कि मध्यस्थता केवल कानूनी समाधान नहीं, बल्कि एक सामाजिक और मानवीय पहल है, जिससे पक्षकारों के बीच लंबे समय तक शांति और सौहार्द कायम रह सकता है।
अधिकारियों की उपस्थिति
इस अवसर पर प्रभारी सचिव विशाल मांझी समेत बड़ी संख्या में मेडिएटर अधिवक्ता उपस्थित रहे। कार्यक्रम के अंत में अधिवक्ताओं ने भी अपने अनुभव साझा किए और यह भरोसा दिलाया कि वे मध्यस्थता की दिशा में सकारात्मक पहल करेंगे।
विवाद निपटान में नई उम्मीद
इस तरह का प्रशिक्षण कार्यक्रम न केवल अधिवक्ताओं के ज्ञान और कौशल को बढ़ाता है, बल्कि आम जनता के लिए भी एक आशा की किरण है। यदि अधिक से अधिक मामलों का समाधान मध्यस्थता प्रक्रिया से होने लगे, तो आम नागरिकों को तेजी से न्याय मिल सकेगा और न्यायालयों पर लंबित मामलों का बोझ काफी हद तक कम हो जाएगा।
👉 पाकुड़ जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की इस पहल से यह स्पष्ट है कि आने वाले समय में मध्यस्थता को न्याय व्यवस्था का अभिन्न अंग बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाए जा रहे हैं।