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प्रिंस कुमार/बांका: पढ़ाई पूरी करने के बाद युवा नौकरी पाने के लिए खूब मेहनत करते हैं और कोई भी सरकारी नौकरी या फिर बेहतर पैकेज पर एमएनसी में काम करने को तैयार रहते हैं. लेकिन आज कल आपको कई ऐसी खबरें पढ़ने या सुनने को मिल जाएगी कि युवा अपनी अच्छी खासी सैलरी वाली नौकरी छोड़कर खुद के दम पर कुछ अलग करते हैं और उसमें सफलता भी अर्जित करते हैं.
बांका जिले के रजौन प्रखंड अंतर्गत नरिप्पा गांव निवासी मो. शाहनावज अहमद की कहानी कुछ ऐसी ही है. इस शख्स ने मर्चेंट नेवी की नौकरी छोड़ मछली पालन का व्यवसाय शुरू किया है और आज वो अच्छी कमाई कर रहे हैं. मो. शाहनावज अहमद फिलहाल पांच एकड़ में बने तालाब में मडली पालन कर रहे हैं और इनका सालाना टर्नआवेर 50 से 60 लाख का है. मोहम्मद शाहनवाज अहमद के पिता अहमद अली सेवानिवृत्त फूड इंस्पेक्टर के पद रिटायर्ड हैं. इनको पिता की भी मदद मिल जाती है.
वियतनाम और बंग्लादेश में सीखा मत्स्य पालन का तकनीक
मो. शाहनवाज ने बताया कि जब मर्चेंट नेवी में नौकरी करते थे तो वियतनाम और बंग्लादेश जैसे देशों में तकनीक देख कर मन में मत्स्य पालन का विचार आया. इसके बाद रिजाइन देकर नौकरी छोड़ दी और गांव आ गया. यहां अपने जमीन पर 5 एकड़ जमीन पर तालाब का निर्माण कराया. शुरूआत में पांच प्रकार की मछलियों को का पालाना शुरू किया.
उन्होंने बताया कि जब इस काम को शुरू किया था तो लोग हंसकर मजाक उड़ाया करते थे. लेकिन आज उन्हीं के मुंह पर तमाचा है, क्योंकि हम अकेले चले थे और आज हमारे साथ बहुत सारे लोग जुड़ते जा रहे हैं. जिससे मत्स्य पालन में और भी ज्यादा दिलचस्पी लगने लगा है. मत्स्य पालन में कभी भी किसानों को घाटा नहीं होता है. मत्स्य पालन में दो ही कारणों से किसानों को नुकसान होता है. पहला आपदा से संबंधित दूसरा अपने निजी स्वार्थ के लिए किसान को हानि पहुंचाना. इन दो कारणों से मत्स्य पालन के किसानों को हानि हो सकती है, अन्यथा इस व्यवसाय में कभी भी किसानों को नुकसान नहीं होता है.
मत्स्य पालन कर 12 से 15 लाख हर साल कर रहे हैं कमाई
मो. शाहनवाज ने बताया कि मत्स्य पालन की शुरूआत 2021 में लॉकडाउन के समय किया था और आज दो साल हो गए. सालाना आंकड़े देखें तो पहले साल हीं 50 से 60 लाख तक बिजनेस किया. जिसमें 12 से 15 लाख निजी आमदनी हुई और बांकी स्टॉप, मछली के बीज, मछली के खाद्य पदार्थ, बिजली बिल इत्यादि में खर्च आया. जब इस फार्म की शुरुआत की थी तो लागत 10 से 12 लाख था. जिसमें से 6 से 7 लाख रुपए पोखर बनाने में खर्च हुआ था और 4 से 5 लाख मछली के बीज लाने में लगा था. आज नतीजा आपके सामने है.
अगर एक मछली पर खर्च की बात करें तो बीज से लेकर एक से डेढ़ केजी तक बड़ा करने में लागत 80 से 90 रूपए लागत आता है. जबकि बाजार में 140 से 160 रूपए किलो तक मछलियां बिकती है. अभी तालबा में आईएमसी मछली जैसे रेहू, कातल, मृगल, गोल्डन, मांगूर, फंघेसियस, सिलन जैसे मछली को इस फार्म में पालते हैं. वहीं किसान साथियों से कहते हैं कि मत्स्य पालन किजिए, जिससे आपकी आए में बढ़ोतरी होगी और लोगों को रोजगार भी मिलेगा.
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Tags: Banka News, Bihar News, Local18
FIRST PUBLISHED : July 29, 2023, 23:45 IST
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