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ANI
सर्वेक्षण दो चरणों में किया जाना है। पहला चरण, जिसके तहत घरेलू गिनती का अभ्यास किया गया था, इस साल जनवरी में राज्य सरकार द्वारा आयोजित किया गया था। सर्वेक्षण का दूसरा चरण 15 अप्रैल को शुरू हुआ, जिसमें लोगों की जाति और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों से संबंधित डेटा इकट्ठा करने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
पटना उच्च न्यायालय ने राज्य में जाति-आधारित सर्वेक्षण कराने के बिहार सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाएं मंगलवार को खारिज कर दीं। वास्तव में, उच्च न्यायालय ने राज्य में जाति-आधारित सर्वेक्षण का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति पार्थ सारथी की पीठ ने जाति-आधारित सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर फैसला सुनाया। अधिवक्ता दीनू कुमार ने कहा कि जज ने ये फैसला सुनाया कि बिहार सरकार के जाति आधारित सर्वे को चुनौती देने वाली सभी याचिकाएं खारिज कर दी गई हैं। वह इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। हालांकि, यह नीतीश सरकार की बड़ी जीत है।
सर्वेक्षण दो चरणों में किया जाना है। पहला चरण, जिसके तहत घरेलू गिनती का अभ्यास किया गया था, इस साल जनवरी में राज्य सरकार द्वारा आयोजित किया गया था। सर्वेक्षण का दूसरा चरण 15 अप्रैल को शुरू हुआ, जिसमें लोगों की जाति और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों से संबंधित डेटा इकट्ठा करने पर ध्यान केंद्रित किया गया। पूरी प्रक्रिया इस साल मई तक पूरी करने की योजना थी। हालांकि, 4 मई को हाई कोर्ट ने जाति जनगणना पर रोक लगा दी थी। मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति मधुरेश प्रसाद की पीठ ने रोक लगाने की मांग वाली तीन याचिकाओं पर आदेश पारित किया था। इसमें पाया गया कि सर्वेक्षण वास्तव में एक जनगणना थी, जिसे केवल केंद्र सरकार ही कर सकती है।
Patna High Court dismissed the petitions challenging Bihar Government’s Caste based survey. pic.twitter.com/dzRYYMxTKs
— ANI (@ANI) August 1, 2023
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