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जिला अदालतों में वर्तमान फाइलिंग प्रक्रिया को रेखांकित करते हुए याचिकाकर्ता करण एस. ठुकराल के वकील ने कहा कि वकीलों और पक्षों को चल रहे मामलों से संबंधित विविध अर्जी जमा करने के लिए एक असुरक्षित ‘ड्रॉप बॉक्स’ का उपयोग करना पड़ता है। याचिका में कहा गया कि कुछ अदालतों में, कोर्ट मास्टर या रीडर ‘फाइलिंग’ (अर्जी) प्राप्त करते हैं, लेकिन पावती जारी नहीं करते। याचिका में कहा गया है कि इस तरह की प्रणाली के परिणामस्वरूप अक्सर अर्जियां खो जाती हैं, या कुछ दस्तावेज जमा नहीं करने के संबंध में असत्यापित आरोप लगते हैं।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने जारी मामलों में दलीलें, दस्तावेज और विविध अर्जी दायर करने के लिए सभी जिला अदालतों को एक मानकीकृत ऑनलाइन प्रणाली अपनाने को कहा है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि न्यायिक कार्यवाही में पारदर्शिता और जवाबदेही सर्वोपरि है और अदालत में दायर की जाने वाली प्रत्येक अर्जी, दलील, दस्तावेज या अन्य दलील को एक अलग फाइलिंग नंबर के साथ विधिवत स्वीकार किया जाना चाहिए। इससे मामले की स्थिति का पता लगाया जा सकेगा और उनकी दलील से संबंधित किसी भी संभावित विवाद या विसंगतियों को रोका जा सकेगा।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायामूर्ति संजीव नरूला की पीठ ने 17 अगस्त के अपने आदेश में कहा, ‘‘सख्त समयसीमा को देखते हुए, विशेष रूप से आपराधिक कार्यवाही, वाणिज्यिक अदालतों और अन्य संवेदनशील मामलों में, फाइलिंग तारीख को सटीकता से दर्ज करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।’’उच्च न्यायालय का अंतरिम आदेश दिल्ली की जिला अदालतों में चल रहे मामलों में दलीलों, दस्तावेजों और विविध अर्जी दायर करने से संबंधित एक जनहित याचिका पर आया। वर्तमान में, ऐसी दलीलों के लिए फाइलिंग नंबर या पावती रसीद जारी करने की कोई मानकीकृत प्रक्रिया नहीं है।
जिला अदालतों में वर्तमान फाइलिंग प्रक्रिया को रेखांकित करते हुए याचिकाकर्ता करण एस. ठुकराल के वकील ने कहा कि वकीलों और पक्षों को चल रहे मामलों से संबंधित विविध अर्जी जमा करने के लिए एक असुरक्षित ‘ड्रॉप बॉक्स’ का उपयोग करना पड़ता है।
याचिका में कहा गया कि कुछ अदालतों में, कोर्ट मास्टर या रीडर ‘फाइलिंग’ (अर्जी) प्राप्त करते हैं, लेकिन पावती जारी नहीं करते। याचिका में कहा गया है कि इस तरह की प्रणाली के परिणामस्वरूप अक्सर अर्जियां खो जाती हैं, या कुछ दस्तावेज जमा नहीं करने के संबंध में असत्यापित आरोप लगते हैं।
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