Saturday, November 23, 2024
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विकास या विनाश: जोशीमठ में क्यों बने ऐसे हालात और इसके लिए जिम्मेदार कौन? INSA के वैज्ञानिक ने दी यह चेतावनी

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उत्तराखंड के जोशीमठ में हो रहे भू-धंसाव से स्थिति लगातार बिगड़ रही है। बताया जा रहा है कि जोशी मठ के बाद अब जमीन में हो रही दरारें कर्णप्रयाग तक पहुंच गई हैं। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए पीएमओ लगातार मामले की निगरानी कर रहा है। अब तक कई परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट किया जा चुका है। पीएम ने इसे लेकर आज एक हाईलेवल मीटिंग भी की। इस बीच, इंडियन नेशनल साइंस एकेडमी (INSA) के साइंटिस्ट डीएम बनर्जी ने जोशीमठ की इस स्थिति को के पीछे वहां हो रहे विकाल को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा कि विकास कार्य जैसे फोर लेन हाईवे निर्माण पूरे सिस्टम को कमजोर कर रहा है।

बहुत कमजोर जमीन पर स्थित है जोशीमठ 
उन्होंने कहा कि जोशीमठ मध्य हिमालय का एक हिस्सा है। यहां की चट्टानें प्रीकैम्ब्रियन युग से हैं और क्षेत्र भूकंपीय क्षेत्र-4 का है। उन्होंने कहा कि जोशीमठ की मूलभूत समस्या यह है कि यह बहुत कमजोर जमीन पर स्थित है। जोशीमठ में आई इस आपदा के पीछे कहीं ना कहीं यहां हुआ विकास भी जिम्मेदार है। इसके अलावा लोगों को इस भूमि पर 3-4 मंजिल वाले घर नहीं बनाने चाहिए थे। 

बना रहना चाहिए था छोटा गांव
इंडियन नेशनल साइंस एकेडमी (INSA) के साइंटिस्ट डीएम बनर्जी ने जोशीमठ की भौगोलिक स्थिति के बारे में बताया कि उत्तराखंड का आपदा झेल रहा शहर एक प्रमुख ढलान पर स्थित है। जोकि लगभग 6000-7000 साल पहले हुए भूस्खलन से निर्मित है। यहां तक की ये पूरी पर्वत श्रृंखला जहां भी माउंट हाउस है, वे उचित स्थिति में नहीं हैं। उन्होंने बताया कि यह श्रंखला अपनी मूल स्थिति से फिसल जाता है। शुरुआत में जब लोग वहां रह रहे थे तो वे एक अस्थिर क्षेत्र में रह रहे थे। जोशीमठ को एक बड़े शहर की तरह विकसित नहीं होना चाहिए था। जैया यह आज हो गया है। जोशीमठ को पहले की तरह एक छोटा गांव जैसा ही रहना चाहिए था। 

दी यह चेतावनी
ऐसी स्थितियों से बचने के लिए चेतावनी देते हुए उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकार पर धार्मिक स्थलों जैसे बदरीनाथ और केदारनाथ को सुलभ बनाने का भारी दबाव है। लोग बद्रीनाथ और केदारनाथ जाते रहे हैं, लेकिन उन्हें पैदल यात्रा करनी होती थी। अब सरकार चाहती है कि इन सभी जगहों तक पहुंचना आसान हो ताकि वे वहां कार और बस से जा सकें। यह एक गलत कदम है। हिमालय का यह इलाका नाजुक, मुलायम और संरचनात्मक रूप से कमजोर है। ऐसे में हिमालय और अलग-अलग जगहों तक चार लेन वाली सड़कें नहीं बनानी चाहिए थीं क्योंकि ये पूरे सिस्टम को कमजोर बनाती हैं। 

इसके अलावा सड़क निर्माण के लिए पहाड़ों से निकाली गई सामग्री को नदी में फेंक दिया जाता है, जिसके कारण नदी संकरी हो गई है। इस स्थिति के लिए हर कोई ग्लेशियर को दोष देता है, लेकिन ग्लेशियर एक कारण है। इसका मुख्य कारण बांध बनाना है।

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