पाकुड़। जिला के आदिवासी बाहुल्य प्रखंड लिट्टीपाड़ा के पंचायत भवन में जड़ी बूटी उपचार पद्धति से जुड़े आदिवासी वैद्यों के साथ एक दिवसीय बैठक का आयोजन किया गया। इस बैठक की अध्यक्षता लिट्टीपाड़ा पंचायत मुखिया शिव टुडू ने की, और आयोजन पिरामल संस्थान द्वारा किया गया। बैठक का मुख्य उद्देश्य आदिवासी वैद्यों के प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों को सुदृढ़ करना और उन्हें आधुनिक चिकित्सा प्रणाली के साथ जोड़ना था।
जड़ी बूटी उपचारकर्ताओं के प्रमाणीकरण पर जोर
बैठक की शुरुआत पिरामल संस्थान के कार्यक्रम निदेशक देवाशीष सिन्हा ने की, जहां उन्होंने उपस्थित सभी जड़ी बूटी उपचारकर्ताओं से व्यक्तिगत रूप से बात की। उन्होंने जड़ी बूटी आधारित चिकित्सा के प्रमाणीकरण प्रक्रिया पर विस्तार से चर्चा की और इसे आधुनिक स्वास्थ्य व्यवस्था से जोड़ने के महत्व पर जोर दिया। साथ ही उन्होंने संभावित यक्ष्मा (टीबी) रोगियों की पहचान और रेफरल प्रक्रिया के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी।
संभावित यक्ष्मा रोगियों की रेफरल प्रक्रिया
बैठक के दौरान लिट्टीपाड़ा पंचायत मुखिया शिव टुडू ने भी जड़ी बूटी उपचारकर्ताओं को प्रोत्साहित किया कि वे अपने क्षेत्रों में संभावित यक्ष्मा रोगियों की पहचान कर उन्हें रेफर करें। उन्होंने कहा कि यक्ष्मा जैसी गंभीर बीमारियों का समय पर इलाज महत्वपूर्ण है, और इसमें जड़ी बूटी उपचारकर्ताओं की भूमिका भी अहम हो सकती है। इस दौरान, आदिवासी वैद्य अपनी पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के साथ आधुनिक चिकित्सा प्रणाली में भी सहयोग दे सकते हैं, जिससे रोगियों को समय पर और उचित इलाज मिल सके।
पिरामल संस्थान की भूमिका और सहभागिता
बैठक में पिरामल संस्थान के प्रोग्राम मैनेजर तुहीन बनर्जी, रोहित शर्मा, परीक्षित मुंडा, और जिला प्रबंधक मो. सनीफ अंसारी ने भी सक्रिय भागीदारी की। उन्होंने बताया कि आदिवासी वैद्यों की पारंपरिक जड़ी बूटी चिकित्सा का सुदृढ़ीकरण, रोगियों को रेफरल करना और टीबी जैसी बीमारियों पर ध्यान केंद्रित करना संस्थान का प्राथमिक उद्देश्य है।
प्रमाणित जड़ी बूटी उपचारकर्ता और उनकी भागीदारी
बैठक में पिरामल संस्थान के प्रोग्राम एससी तुहीन बनर्जी, रोहित शर्मा, परीक्षित मुंडा, जिला प्रबंधक मो सनीफ अंसारी, मनोज महतो, तथा कई प्रमाणित जड़ी बूटी उपचारकर्ता भी उपस्थित थे, जिनमें ज्योति प्रकाश, लुखीराम सोरेन, अलमा किस्कू, तलामाई मुर्मू, मरांगमई मुर्मू, अब्राहम हंसदा, मंडल मरांडी, संझाली टुडू, सुनीता मरांडी, और सोम टुडू प्रमुख थे। इन सभी वैद्यों को जड़ी बूटी उपचार प्रणाली के सुदृढ़ीकरण के लिए प्रमाणित किया गया है। इन वैद्यों की पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक चिकित्सा के बीच की कड़ी के रूप में भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
गांधी फेलोज़ और स्थानीय नेतृत्व का सहयोग
बैठक में गांधी फेलोज़ के सदस्य अफरोज़ आफरीन भी उपस्थित थे, जिन्होंने आदिवासी समुदाय में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। बैठक के दौरान, सभी उपस्थित सदस्यों ने पारंपरिक और आधुनिक चिकित्सा के संयोजन को लेकर अपने विचार साझा किए और यह तय किया गया कि भविष्य में और भी बैठकें आयोजित की जाएंगी, ताकि इस क्षेत्र में काम को और अधिक व्यवस्थित रूप से आगे बढ़ाया जा सके।
भविष्य की योजनाएँ
इस बैठक के दौरान यह निर्णय लिया गया कि जड़ी बूटी उपचार पद्धति और संभावित यक्ष्मा रोगियों की पहचान के लिए नियमित रूप से बैठकें और कार्यशालाएं आयोजित की जाएंगी। पिरामल संस्थान के सहयोग से यह प्रक्रिया आगे बढ़ेगी, और आदिवासी वैद्यों के सहयोग से आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था को मजबूत करने का प्रयास जारी रहेगा।
लिट्टीपाड़ा पंचायत भवन में आयोजित यह बैठक एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुई, जिससे आदिवासी चिकित्सा पद्धति को सम्मान और पहचान मिली। अब इन वैद्यों को अपने ज्ञान के साथ आधुनिक स्वास्थ्य सेवाओं का हिस्सा बनने का अवसर मिलेगा।