Monday, November 25, 2024
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ओपेन स्काई स्मार्ट स्कूल में शहीद भगत सिंह की जयंती मनाई गई

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पाकुड़। शनिवार को ओपेन स्काई स्मार्ट स्कूल, पाकुड़ में महान स्वतंत्रता सेनानी शहीद भगत सिंह की जयंती बड़े धूमधाम से मनाई गई। इस अवसर पर स्कूल के सभी शिक्षकों और छात्रों ने भगत सिंह की तस्वीर पर श्रद्धा सुमन अर्पित कर उनके अमूल्य योगदान को याद किया। इस मौके पर शिक्षकों ने भगत सिंह के जीवन और बलिदान पर प्रकाश डालते हुए बच्चों को उनके विचारों और स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान के बारे में बताया।

भगत सिंह: भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन के प्रेरणास्रोत

शिक्षकों ने छात्रों को जानकारी दी कि भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे प्रभावशाली क्रांतिकारियों में से एक थे। उन्होंने बताया कि भगत सिंह की मृत्यु मात्र 23 वर्ष की आयु में हो गई थी, जब ब्रिटिश सरकार ने उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया था। भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में स्थित है। उनका पैतृक गांव खट्कड़ कलां है, जो कि पंजाब, भारत में स्थित है।

आर्य समाजी परिवार से थे भगत सिंह

भगत सिंह का परिवार एक आर्य-समाजी सिख परिवार था, जो धार्मिक और सामाजिक सुधारों में विश्वास रखता था। बचपन से ही भगत सिंह के दिल में देशभक्ति की भावना उत्पन्न हो गई थी। शिक्षकों ने छात्रों को बताया कि भगत सिंह बचपन में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से जुड़ गए थे, हालांकि बाद में उन्होंने क्रांतिकारी विचारधारा को अपनाया। 13 अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन पर गहरा प्रभाव डाला और उन्हें क्रांतिकारी बनने की प्रेरणा दी।

चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर तैयार किया क्रांतिकारी संगठन

भगत सिंह ने चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर एक क्रांतिकारी संगठन तैयार किया, जिसका मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष था। भगत सिंह को लाला लाजपत राय और करतार सिंह सराभा से अत्यधिक प्रेरणा मिली थी। उन्होंने देश की आजादी के लिए खुद को पूरी तरह समर्पित कर दिया। इस संगठन ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ कई क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम दिया, जिसमें लाहौर षड़यंत्र प्रमुख था।

लाहौर षड़यंत्र केस और फांसी की सजा

लाहौर षड़यंत्र के मामले में भगत सिंह को उनके साथी सुखदेव और राजगुरु के साथ फांसी की सजा सुनाई गई थी। इस मामले में बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास की सजा मिली थी। भगत सिंह और उनके साथियों को 23 मार्च 1931 की शाम 7 बजे फांसी पर लटका दिया गया। तीनों वीरों ने हंसते-हंसते देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। इस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया और भगत सिंह को अमर शहीद का दर्जा दिलाया।

भगत सिंह का लेखन और वैचारिक योगदान

भगत सिंह केवल एक क्रांतिकारी ही नहीं, बल्कि एक विद्वान और विचारक भी थे। उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं के लिए लेखन और संपादन का कार्य भी किया। उनके लेखों में भारतीय समाज, स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के प्रति उनकी गहरी समझ और दृष्टिकोण को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। उनके विचार आज भी युवाओं को प्रेरित करते हैं और उनके लेखन के माध्यम से उन्हें एक क्रांतिकारी विचारक के रूप में भी याद किया जाता है।

देश के लिए अविस्मरणीय योगदान

शहीद भगत सिंह ने भारत की आजादी के लिए जो बलिदान दिया, उसके लिए देशवासी सदैव उनके ऋणी रहेंगे। उनकी वीरता और साहस ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी। इस जयंती समारोह के माध्यम से छात्रों को यह संदेश दिया गया कि भगत सिंह का जीवन और उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं और हमें उनके आदर्शों से प्रेरणा लेते हुए देश की सेवा में योगदान देना चाहिए।

इस अवसर पर उपस्थित सभी शिक्षकों ने बच्चों से भगत सिंह के बलिदान और उनके विचारों को अपने जीवन में अपनाने का आह्वान किया। समारोह का समापन देशभक्ति गीतों और बच्चों द्वारा प्रस्तुत नाट्य मंचन से हुआ, जिसमें भगत सिंह के जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को दर्शाया गया।

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