Sunday, November 24, 2024
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टिकट की दौड़ में तेज हुई हलचल

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पाकुड़। चुनाव की तारीख की घोषणा के साथ ही राजनीतिक दलों में हलचल तेज हो गई है। नेताओं की धड़कनें बढ़ी हुई हैं, क्योंकि अब टिकट के बंटवारे का मंथन शुरू हो चुका है। झारखंड में दो चरणों में चुनाव होने की घोषणा के बाद मुख्य पार्टियों के नेता अपने-अपने क्षेत्र में दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। वे लगातार ग्रामीण इलाकों का दौरा कर रहे हैं, जनता से संपर्क साध रहे हैं और अपनी पार्टी की उपलब्धियों का बखान कर रहे हैं।


चुनाव प्रचार में जुटे नेता, बढ़ी टिकट की होड़

जैसे-जैसे नामांकन की तिथि नजदीक आ रही है, नेताओं की चिंता बढ़ती जा रही है। हर नेता अपनी पार्टी से टिकट पाने की उम्मीद में दिन-रात एक कर रहा है। ग्रामीण इलाकों में नेताओं का दौरा जारी है, जहां वे एक-दूसरे की पार्टियों की आलोचना करते हुए अपनी पार्टी की उपलब्धियों को गिनाने में लगे हैं। वादों की झड़ी लगाते हुए नेता कहते हैं कि अगर उनकी सरकार बनी, तो हर हाथ को काम मिलेगा और हर घर में तोहफे की बरसात होगी।


किसका होगा विजय माला, किसकी होगी हार

चुनावी माहौल में अभी तक यह साफ नहीं है कि किस पार्टी को जनता का समर्थन मिलेगा। कौन नेता विजय माला पहनेंगे और किसे हार का सामना करना पड़ेगा, यह तो वक्त ही बताएगा। फिलहाल, पार्टियों के भीतर टिकट बंटवारे को लेकर अभी तक कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है। सभी नेता अपनी उम्मीदों पर टिके हैं और पूरी ताकत से चुनावी तैयारियों में जुटे हुए हैं।


टिकट से वंचित होने वालों की मायूसी

चुनावी दौड़ में सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिन नेताओं को टिकट नहीं मिलेगा, वे क्या प्रतिक्रिया देंगे। जो नेता कड़ी मेहनत कर रहे हैं, अगर उन्हें टिकट से वंचित किया जाता है, तो उनके लिए यह भारी मायूसी का कारण बनेगा। दूसरी ओर, भाग्यशाली नेता जो टिकट पाएंगे, उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहेगा। चुनावी प्रक्रिया के इस हिस्से में भावनाओं का ज्वार देखने को मिलेगा, क्योंकि कुछ नेताओं के लिए यह उनके राजनीतिक करियर का महत्वपूर्ण मोड़ साबित होगा।


समाजसेवी भी चुनावी मैदान में

2024 के विधानसभा चुनाव में समाजसेवी भी अहम भूमिका निभाने के लिए मैदान में उतर चुके हैं। वे जनता से एक और मौका मांग रहे हैं, ताकि वे समाज की सेवा कर सकें। कई समाजसेवी अपने क्षेत्रों का लगातार दौरा कर रहे हैं और लोगों के दुख-दर्द सुन रहे हैं। उनकी उम्मीदें भी चुनावी प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाने वाली हैं, क्योंकि जनता का एक बड़ा वर्ग समाजसेवियों को भी अपना समर्थन देने पर विचार कर रहा है।


चुनावी माहौल में बढ़ती बेचैनी

जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, राजनीतिक दलों के बीच प्रतिस्पर्धा और भी तेज हो गई है। जनता के बीच लोकलुभावन वादों की बौछार हो रही है, और हर नेता अपनी पार्टी को जिताने के लिए पूरा जोर लगा रहा है। हालांकि, कौन चुनाव जीतेगा और किसे हार का सामना करना पड़ेगा, यह समय ही बताएगा। फिलहाल, चुनावी माहौल में एक अजीब सी उत्सुकता और बेचैनी बनी हुई है, जहां हर नेता अपनी किस्मत आजमाने को तैयार है।

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