हैदराबाद. दुनिया में अमन चाहने वाले क्या कुछ नहीं करते. ये लोग नामुमकिन लगने वाली हर सीमा को शांति के लिए तोड़ देते हैं. ऐसे ही कुछ जुनूनी लोगों में शुमार हैं 62 साल की आदिवासी महिला मेसराम नागूबाई. इन्होंने आज भी सैकड़ों साल पुरानी परंपरा को कायम रखा है. मेसराम दुनिया में शांति और संपन्नता की कामना के लिए ढाई लीटर तिल का तेल पी गईं. दरअसल, तेलंगाना के आदिलाबाद जिले के नरनूर मंडल मुख्यालय में पांच दिवसीय कामदेव जात्रा मेला लगा हुआ है. इसी मेले में यह परंपरा निभाई जाती है. यह मेला पुष्य के महीने में पूर्णिमा की रात आयोजित किया जाता है.
बता दें, मेसराम महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले की रहने वाली हैं. वे कोडेपुर गांव के जिविथि तालुका से ताल्लुक रखती हैं. उन्हीं के थोडासम वंश ने तिल का तेल पीकर इस वार्षिक उत्सव की शुरुआत की थी. अपनी परंपरा को निभाने के लिए मंदिर समिति के सदस्यों ने मेसराम का जोरदार स्वागत किया.
थोडासम वंश के सदस्य भगवान कामदेव की पूजा करते हैं. कामदेव उनके कुल देवता हैं. उनकी परंपरा के मुताबिक, उनके घर की बेटी को बड़ी मात्रा में घर का बना हुआ तिल का तेल पीना पड़ता है.
किसानों को मिलती हैं खुशियां, बढ़ता है प्यार
यहां मान्यता है कि अगर परंपरा को सही तरीके से निभाया जाएगा तो किसानों की फसलें लहलहाएंगीं. उन्हें खुशियां मिलेंगी और समाज में सौहार्द्र् बढ़ेगा, लोग प्यार से रहेंगे. बताया जाता है कि यह परंपरा 1961 में शुरू हुई. उसके बाद से थोडासम वंश की 20 बेटियों ने इस परंपरा को बखूबी निभाया है. अबकी बार परंपरा निभाने की बारी मेसलाम गानूबाई की बारी थी. अब वे अगले दो सालों तक यह परंपरा निभाएंगी. इस कार्यक्रम में तेलंगाना और महाराष्ट्र के सैकड़ों श्रद्धालु भाग लेते हैं. इस बार आदिलाबाद जेपी के चेयरमैन राठौड़ जनार्दन, आसिफाबाद विधायक अतराम सक्कू ने भी कार्यक्रम में हिस्सा लिया.
क्या कहते हैं डॉक्टर
इस मामले पर आदिलाबाद के राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस के डॉ. राहुल ने कहा कि यह हर व्यक्ति के शरीर पर निर्भर करता है कि वह कितना खा-पी सकता है. हालांकि, ज्यादा मात्रा में तेल पीना शरीर के पाचन तंत्र पर नकारात्मक असर कर सकता है. इससे उल्टी हो सकती है. उन्होंने यह भी कहा कि इतनी मात्रा में तेल पीने से भविष्य में समस्या हो सकती है.