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मो. महमूद आलम/नालंदा. मंदिर में लोग प्रसाद के रूप में मिठाई, फल या और कुछ चढ़ाते हैं. पर नालंदा के इस मंदिर में प्रसाद के रूप में लंगोट चढ़ाया जाता है. यह भारत का यह इकलौता और एक अनोखा मंदिर है. जहां पर लंगोट चढ़ाया जाता है. यह मंदिर नालंदा जिले के बिहार शरीफ स्थित बाबा मणिराम अखाड़ा पर है.
हर साल यहां पर आषाढ़ पूर्णिमा से सात दिवसीय मेला लगता है. जिसकी शुरुआत हो चुकी है. इस मौके पर ज़िला प्रशासन की ओर से बाबा मणिराम अखाड़ा पर लंगोट अर्पण कर ज़िले की सुख शांति एवं समृद्धि की दुआ की. जहां बिहार ही नहीं बल्कि कई राज्यों से लाखों श्रद्धालु बाबा की समाधि पर लंगोट चढ़ाने पहुंचेंगे.
पुलिस और प्रशासन के अधिकारी सबसे पहले चढ़ाते हैं लंगोट
चली आ रही परंपरा के मुताबिक पुलिस और प्रशासन के अधिकारी सबसे पहले बाबा की समाधि पर लंगोट चढ़ाते हैं. महिलाएं रुमाल अर्पण करती हैं. इसी के साथ मेले की शुरुआत हो गई. रामनवमीं में हुए हिंसक झड़प के कारण इसबार शहर में गाजे-बाजे के साथ लंगोट जुलूस नहीं निकाला गया है. इसके साथ ही आज से 7 दिवसीय मेला की भी शुरुआत हो गई.
बाबा मणिराम अखाड़ा न्यास समिति के पुजारी विश्वनाथ मिश्रा ने बताया कि बाबा मणिराम का यहां आगमन 1238 ई. में हुआ था. वे अयोध्या से चलकर यहां आएं थे. बाबा ने शहर के दक्षिणी छोर पर पंचाने नदी के पिस्ता घाट को अपना पूजा स्थल बनाया था. वर्तमान में यही स्थल ‘अखाड़ा पर’ के नाम से प्रसिद्ध है. ज्ञान की प्राप्ति और क्षेत्र की शांति के लिए बाबा घनघोर जंगल में रहकर मां भगवती की पूजा-अर्चना करने लगे. लोगों को कुश्ती भी सिखाते थे.
6 जुलाई 1952 में शुरू हुई थी लंगोट मेले की शुरुआत
नालंदा में उत्पाद निरीक्षक कपिलदेव प्रसाद के प्रयास से 6 जुलाई 1952 में बाबा के समाधि स्थल पर लंगोट मेले की शुरुआत हुई थी. इसके पहले रामनवमी के मौके पर श्रद्धालु बाबा की समाधि पर पूजा-अर्चना करने आते थे. तब से हर वर्ष आषाढ़ पूर्णिमा के दिन से सात दिवसीय मेला यहां लगता है. कहा जाता है कि कपिलदेव बाबू को पांच पुत्रियां थीं.
बाबा की कृपा से उन्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई थी. बाबा की कृपा इतनी कि उनके दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता है. सच्चे मन से मांगी गई मुराद जरूर पूरी होती है. बाबा मणिराम और मखदूम साहब में थी खूब दोस्ती थी. इसलिए बिहार शरीफ को सूफ़म संतों की नगरी भी कही जाती है. बाबा मणिराम और महान सूफी संत मखदूम साहब में काफी गहरी दोस्ती यहां के लोगों के लिए आपसी सौहार्द का प्रतीक भी कहा जाता है.
एक बार वे दीवार पर बैठकर दातुन कर रहे थे तभी मखदुम साहब ने मिलने की इच्छा जाहिर की, तो उन्होनें दीवार को ही चलने का आदेश दिया, तो दीवार ही चलने लगी थी. दोनों संतों की दोस्ती और गंगा जमुनी तहजीब की लोग आज भी मिशाल देते हैं.
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Tags: Local18
FIRST PUBLISHED : July 04, 2023, 23:20 IST
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