पाकुड़ । जिला जनसंपर्क पदाधिकारी, डॉ चंदन के द्वारा हिजला मेला के लिए हरी झंडी दिखाकर एक रथ को रवाना किया गया। जिसमें पाकुड़ जिला का तीर्थ स्थल, ऐतिहासिक धरोहर, पर्यटन स्थल, पेंटिंग महापुरुषों की प्रतिमाएं थी।
जनसंपर्क पदाधिकारी द्वारा बताया गया कि 3 फरवरी सन 1890 ई0 को तत्कालीन अंग्रेज जिलाधिकारी जॉन राबटर्स कास्टेयर्स के समय हिजला मेला की शुरुआत की गई थी। ऐसा माना जाता है कि स्थानीय परंपरा, रीति-रिवाज एवं सामाजिक नियमन को समझने तथा स्थानीय लोगों से सीधा संवाद स्थापित करने के उद्देश्य से मेला की शुरुआत की गई । इसी संदर्भ में “हिजला” शब्द की व्युत्पत्ति भी “हिज लॉज़” से मानी जाती है।
एक मान्यता यह भी है कि स्थानीय गाँव हिजला के आधार पर हिजला मेला का नामकरण किया गया है। वर्ष 1975 में संताल परगना के तत्कालीन आयुक्त श्री जी० आर० पटवर्धन की पहल पर हिजला मेला के आगे जनजातीय शब्द जोड़ दिया गया।
झारखण्ड सरकार ने इस मेला को वर्ष 2008 से एक महोत्सव के रुप में मनाने का निर्णय लिया तथा 2015 में इस मेला को राजकीय मेला का दर्जा प्रदान किया गया, जिसके पश्चात यह मेला राजकीय जनजातीय हिजला मेला महोत्सव के नाम से जाना जाता है।
त्रिकुट पर्वत से निकलने वाली मयुराक्षी नदी तथा पर्वत पठारों के मध्य हिजला मेला की अवस्थिति इसे अनूठा सौंदर्य प्रदान करता है। नदी की कल-कल धारा, पक्षियों की कलरव, चह-चहाहट के मध्य मांदर, ढोल, ढ़ाक, झांझ, झांझर की धुन पर थिरकते मानव-वृंद अनायास ही सभी को झूमने के लिए मजबूर कर देती हैं। मानो प्रत्येक व्यक्ति और प्रकृति के कण-कण में हिजला का स्पंदन व्याप्त हो गया हो ।
साथ ही सभी से अपील करते हुए कहा यदि आप लोक-संस्कृति और लोक गीत-संगीत को करीब से महसूस करना चाहते है, यदि आप प्रकृति में विद्यमान शाश्वत संगीत और उसके लय की अनुभूति करना चाहते है, यदि आप लोक मंगल समरसता में डूबना चाहते हैं तो सभी पाकुड़ वासियों को एक बार हिजला मेला जरुर जाना चाहिए ।
मौके पर जिला जनसंपर्क कार्यालय से राजेश कुमार इकाई लिपिक, भूषण कुमार कंप्यूटर ऑपरेटर, जिला भविष्य निधि कार्यालय से राकेश कुमार, जनसंपर्क कार्यालय के प्रीतम कुमार, मनोज हाजरा सहित अन्य उपस्थित रहे।