पाकुड़। समय का पहिया घूम रहा है, पर लगता है कि मौसम का पहिया कहीं फंस गया है। सितंबर का महीना यूं तो पतझड़ और ठंडक की दस्तक का होता है, लेकिन यहाँ तो लगता है, जैसे अप्रैल-मई का सूरज दुबारा आ धमका हो। 22 सितंबर को भी धूप के तेवर ऐसे थे कि मानो आसमान में सूर्यदेव तपस्या कर रहे हों। गर्मी और उमस ने तो जैसे पूरी धरती पर कब्जा कर लिया हो, और लोग बेचारे पसीने में नहाते हुए एक कोने में दुबकने के अलावा कुछ कर नहीं पा रहे थे।
पंखे की हवा ने किया हाथ खड़े
अब आप सोच रहे होंगे कि “अरे, पंखे क्यों हैं? चलाओ और आराम से बैठ जाओ!” पर हाय रे पंखे! बेचारे पंखे भी इस गर्मी के सामने हवा छोड़ने की हिम्मत खो बैठे हैं। पंखे की हवा मानो यही कह रही हो, “भैया, हमसे नहीं होगा, तुम खुद ही कुछ कर लो!” और लोग हैं कि पंखे के नीचे बैठकर इंतजार कर रहे हैं कि कब हवा फिर से चलेगी। गर्मी ने पंखे तक को हड़ताल पर भेज दिया है, और हम सब हैं कि पसीना पोंछते हुए बैठे हैं।
बाजार में सन्नाटा
अब आप सोच रहे होंगे कि इतनी गर्मी में कोई बाहर जाता होगा? हां जी, लोग गए तो, लेकिन बाजार भी मानो इसी गर्मी से तंग आकर सन्नाटा ओढ़े हुए था। जो लोग हिम्मत जुटाकर बाजार पहुंचे, वो भी कोका कोला और थम्स अप के सहारे खुद को तरोताजा रखने की कोशिश में लगे थे। एक समय था जब लोग गर्मी से निपटने के लिए छाछ और लस्सी पीते थे, पर अब उन्हें ये शीतल पेय पदार्थ पीकर लगता है जैसे गर्मी से युद्ध जीत लिया हो।
धूप का कहर
आज दोपहर तीन बजे के करीब पारा 36 डिग्री के आसपास था, और ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई हमें भट्टी में रखकर भून रहा हो। बाजार की चहल-पहल मानो गायब हो चुकी थी। लोग धूप से डरकर घरों में दुबके हुए थे। जब बाहर निकले, तो चेहरे पर वही पराजित सैनिकों जैसा भाव था, जो कह रहा था, “धूप जीत गई, हम हार गए।” हाट बाजार भी आज सूनी सी दिख रही थी, मानो गर्मी ने उसे भी अपनी जकड़ में ले लिया हो।
चिकित्सकों की नसीहत: धूप से बचो
इतनी भयानक गर्मी में भला चिकित्सक कहां चुप बैठ सकते थे। उनकी नसीहतें तो मानो हर मौसम में तैयार रहती हैं। उन्होंने तुरंत घोषणा कर दी कि चाहे महीना कोई भी हो, धूप से बचना चाहिए। खासकर जो लोग प्रेशर वाले हैं, उन्हें धूप देखकर वैसे ही गायब हो जाना चाहिए, जैसे सुबह की धुंध सूरज की पहली किरण के साथ गायब हो जाती है। डॉक्टरों का ये भी कहना था कि गर्मी में ठंडे पेय पदार्थ पीना भी ठीक नहीं है। अब आप सोच रहे होंगे, “फिर क्या करें?” हां जी, ये तो वही सवाल है जिसका जवाब किसी के पास नहीं है।
उमस और गर्मी की अजीब जोड़ी
अब बात करें उमस की, तो लगता है गर्मी और उमस ने मिलकर हमें परेशान करने की ठान ली है। उमस और गर्मी का ये मेल वैसे ही है जैसे करीला और नीम का स्वाद। एक तरफ जहां गर्मी हमें अंदर से झुलसा रही है, वहीं उमस ने हमारे पसीने को बहाने का ठेका ले लिया है। लोगों का तो हाल ये है कि वे पंखे के नीचे बैठे-बैठे सोच रहे हैं कि “कब बारिश आएगी और कब इस तपती धूप से छुटकारा मिलेगा?”
आगे क्या होगा?
अब सोचिए, अगर ये धूप के तेवर नहीं बदले, तो आने वाले दिनों में लोगों का क्या हाल होगा? पहले तो लगता था कि सितंबर के महीने में धीरे-धीरे ठंडक आएगी, लेकिन अब तो लगता है कि इस साल गर्मी ने ठान लिया है कि वो दिसंबर तक अपनी बादशाहत कायम रखेगी। अगर ऐसा ही रहा, तो लोग दिसंबर में भी एसी चलाते हुए क्रिसमस मनाएंगे।
उम्मीद और नसीहत
तो भाई, अगर आप भी इस गर्मी से परेशान हैं, तो धूप में बाहर निकलने से बचें, और अगर बाहर निकलना जरूरी हो, तो छाता, टोपी और पानी की बोतल लेकर ही निकलें। और हां, चिकित्सकों की मानें, तो ठंडे पेय पदार्थ से बचें। अब आप सोच रहे होंगे, “तो फिर पिएं क्या?” ये सवाल तो हम भी डॉक्टरों से पूछना चाहते हैं, पर उनका जवाब शायद यही होगा, “पानी पियो, और धूप से बचो।”
अंत में, हम यही कह सकते हैं कि ये सितंबर कोई सामान्य सितंबर नहीं है, बल्कि एक ऐसा सितंबर है जो अप्रैल से भी ज्यादा गरम है। अब देखना ये है कि आगे धूप अपने तेवर और कितने बड़ाएगी, या फिर मौसम थोड़ा मेहरबान होगा।