पलामू. जहां आस्था की बात होती है वहां पौराणिक मान्यताएं और कथाएं जुड़ी रहती है. हम जानते है की सूरज न उगता है और न डूबता है लेकिन हम मानते है की सूरज डूबता है और उगता है. पलामू जिले में ऐसे ही कहानी से जुड़ा एक सतबहिनी मंदिर नाम से प्रसिद्ध मंदिर है. जो की अमानत नदी की बीचों बीच स्थित है. यहां सावन भर श्रद्धालुओं का मेला लगा रहता है. वहीं बिहार और यूपी से भी मुराद पूरी होने पर श्रद्धालु पूजा करने आते है. रामनवमी और मकर संक्रति में यहां मेले का आयोजन होता है.
स्थानीय सिद्धनाथ मेहता ने लोकल 18 को बताया कि राजाओं के काल खंड से जुड़ी है इस सतबहिनी स्थल की कहानी. अमानत नदी के बीचों बीच स्थित ये रमणीक स्थल अपने आप में प्रकृति का अनुपम धरोहर है. उन्होंने बताया की मानगढ़ राजा और ग्राम राजा रक्सेल के बीच आए दिन युद्ध होते रहते थे. एक बार मानगढ़ राजा के द्वारा छोटकी ओरिया स्थित राजा रक्सेल के किले को चारों तरफ से घेर लिया गया. राजा रक्सेल की सात बेटियां थी. जो इज्जत बचाने के लिए किला के गुप्त रास्ते से इस स्थल पर मौजूद जल कुंड में खुदकुशी कर ली. जिसके बाद से इस स्थल को सतबहिनी के नाम से जाना जाता है.
1995 से मंदिर निर्माण कर मेले का हो रहा आयोजन
पलामू जिले के नीलांबर पीतांबर प्रखंड अंतर्गत ग्राम ओरिया के अमानत नदी के बीचों बीच स्थित सतबहिनी मंदिर का निर्माण चार गांव के लोगों ने सहयोग से मंदिर निर्माण कराया. मंदिर निर्माण करने मे चार गाँव के लोगों ने सहयोग किया है. यह मंदिर चार गांव के बीच आता है. मंदिर निर्माण में ओरिया, देल्हा, खैरात, असनौर इन चार गांव के सहयोग से 1993 मंदिर निर्माण कार्य शुरू हुआ. जो की 1994 में पूरा हुआ. जिसके बाद 1995 से पूजा, और मकर संक्रति में मेले का आयोजन होना शुरू हुआ.
गुफा में होती है सतबहिनी मां की पूजा
सतबहिनी मंदिर अमानत नदी ये बीचों बीच स्थित है. यहां तीन नदियों का संगम स्थल भी है. यहां टेरहवा नदी, सुखरो नदी, अमानत नदी में मिल जाते है. मंदिर के उत्तर दिशा में एक गुफा है. जहां सतबहिनी मां की पूजा होती है. मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु गाजे बाजे के साथ पूजा करने और प्रसाद चढ़ाने पहुंचते है. मंदिर में भगवान भोलेनाथ शिवलिंग के रूप में मौजूद है. सावन में महिलाओं की ज्यादा भीड़ उमड़ती है. मंदिर के द्वार पर महावीर जी की मूर्ति है. नए साल में लोग यहां पिकनिक मनाने भी पहुंचते है.
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