Thursday, November 27, 2025
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एडिटर इन चीफ
धर्मेन्द्र सिंह

झारखंड के निजी विद्यालयों की मान्यता पर बड़ा संकट: जमीन नियमावली ने बढ़ाई चिंता, हाईकोर्ट के आदेश के बाद असमंजस गहरा

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🏫 झारखंड के निजी विद्यालयों की मान्यता पर संकट गहराया, सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद — एसोसिएशन ने जारी की महत्वपूर्ण प्रेस विज्ञप्ति


📌 मान्यता प्रक्रिया की शुरुआत और लंबे समय तक जारी अनिश्चितता

झारखंड में नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009-11 के तहत राज्य सरकार के निर्देशों पर स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग ने निजी विद्यालयों को मान्यता प्राप्त करने हेतु आवश्यक प्रक्रिया पूरी करने का आदेश दिया था।
प्रदेश के सभी जिलों के निजी विद्यालयों के संचालकों ने सत्र 2012-13-14 के दौरान आवश्यक कागजात और आवेदन प्रपत्र-1 को जिला शिक्षा अधीक्षक कार्यालय में जमा किया। अधिकारियों द्वारा निरीक्षण भी किया गया और जांच भी संपन्न हुई।

इसके बावजूद, सत्र 2018 तक बेहद कम विद्यालयों को छोड़कर अधिकांश विद्यालयों को मान्यता नहीं दी गई, जिससे निजी स्कूल संचालकों में गहरी नाराजगी बनी रही।


📌 2019 की संशोधित नियमावली बनी सबसे बड़ी बाधा

अधिसूचना संख्या 629 (25.04.2019) को कैबिनेट द्वारा स्वीकृत कर गजट में प्रकाशित किया गया।
इसमें विद्यालयों के लिए नए मानक एवं मानदंड निर्धारित किए गए, जिनमें कई प्रावधान अत्यधिक जटिल और कठोर थे।

सबसे ज्यादा विवादित शर्त रही —

  • जमीन की अनिवार्य बाध्यता
    • कक्षा 1 से 5 के लिए
      • शहर में — 40 डिसमिल
      • गांव में — 60 डिसमिल
    • कक्षा 1 से 8 के लिए
      • शहर में — 60 डिसमिल
      • गांव में — 1 एकड़

95% निजी विद्यालय इन जमीन संबंधी मानकों को पूरा नहीं कर पा रहे थे।
ऐसे में अनुमान था कि यदि यह नियम लागू रहा, तो प्रदेश के अधिकांश निजी विद्यालय बंद हो जाएंगे


📌 CNT और SPT एक्ट ने समस्या और बढ़ाई

झारखंड के

  • छोटानागपुर प्रमंडल में CNT एक्ट,
  • संथालपरगना प्रमंडल में SPT एक्ट

लागू रहने के कारण जमीन बढ़ाना या कम करना लगभग असंभव होता है।
कई विद्यालय तो राज्य गठन से पहले ही चल रहे हैं, इसलिए नए मानकों के अनुरूप जमीन उपलब्ध कराना उनके लिए मुश्किल था।


📌 झारखंड प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन की कानूनी लड़ाई

स्थिति को देखते हुए झारखंड प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन (JPSA), रांची ने उच्च न्यायालय, रांची में रिट याचिका WPC 5455/2019 दायर की।
इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने स्टे दे दिया।


📌 उच्च न्यायालय का 02 मई 2025 का अहम निर्णय

हाईकोर्ट ने 5 महत्वपूर्ण बिंदुओं पर निर्णय दिया—

1. निरीक्षण शुल्क समाप्त

₹12,500 और ₹25,000 निरीक्षण शुल्क को निरस्त कर दिया गया।

2. बैंक एफडी की बाध्यता खत्म

₹1,00,000 (एक लाख) की अनिवार्य बैंक एफडी को हटाया गया।

3. जमीन नियमावली यथावत

जमीन संबंधित नियम को सही ठहराया, राहत नहीं दी गई।

4. जिला स्तरीय कमेटी को संशोधित करने का निर्देश

5. 2019 के मानकों को पूरा करने हेतु छह महीने का समय

विद्यालयों को छह माह का समय दिया गया ताकि वे नियम पूरे कर सकें।

इन निर्णयों के बाद भी जमीन की शर्त यथावत रहने से विद्यालयों की स्थिति जस की तस बनी रही।


📌 पुनः रिव्यू याचिका दायर — क्योंकि 95% विद्यालय बंद होने की कगार पर

निराश होकर एसोसिएशन ने सिविल रिव्यू याचिका संख्या (C. Review/90/2025) दिनांक 20.08.2025 को उच्च न्यायालय में दायर की।
इसके बाद 4 अन्य जिला एवं क्षेत्रीय संगठनों ने भी रिव्यू याचिका दायर की, जबकि एक जिला संगठन सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया।


📌 18 नवंबर 2025: हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण आदेश

मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस दीपक रौशन की पीठ ने आदेश जारी किया—

🛑 सिविल रिव्यू को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित किया जाता है,

क्योंकि मामला अब सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।

🛑 साथ ही, यह भी आदेश दिया गया कि—

“जिन स्कूलों का निर्माण नियम लागू होने से पहले हुआ था, उन पर रिव्यू किए जा रहे फैसले का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।”

यह निर्णय अस्थायी राहत तो देता है, लेकिन समस्या का स्थायी समाधान सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निर्भर करेगा।


📌 महासचिव की अपील — अब एकजुट होकर सुप्रीम कोर्ट के लिए तैयारी जरूरी

झारखंड प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के महासचिव ने प्रदेश के सभी निजी विद्यालय संचालकों से कहा—

  • सुप्रीम कोर्ट में किन बिंदुओं पर याचिका दायर की गई है,
    उसका अध्ययन और गंभीर मंथन जरूरी है।
  • सभी संगठन अपना अहम छोड़ें,
  • विश्वास और धैर्य के साथ
  • सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई के लिए तैयारी करें

उन्होंने यह भी कहा कि—
यदि कोई विद्यालय 2019 के जटिल मानकों को पूरा करने में सक्षम है,
तो वह मान्यता प्राप्त करने की प्रक्रिया आगे बढ़ा सकता है,
अन्यथा यह लड़ाई कानूनी रूप से लड़नी ही होगी।


झारखंड के निजी विद्यालयों की मान्यता का यह संकट अब सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर पहुंच गया है।
जमीन नियमावली जैसी कठोर शर्तें हजारों विद्यालयों के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर रही हैं।

समय की मांग है कि सभी निजी विद्यालय एकजुट हों और इस लड़ाई को मजबूती से लड़ें, क्योंकि शिक्षा का भविष्य इसी पर निर्भर है।

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