Sunday, November 24, 2024
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भाजपा की टिकट घोषणा से महेशपुर में हलचल: नवनीतम हेंब्रम को मौका

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पाकुड़। जैसा कि पहले से अनुमान था, भाजपा की टिकट घोषणा के बाद पार्टी के अंदर और बाहर भूचाल आना तय था। महेशपुर विधानसभा से टिकट की घोषणा होते ही पार्टी के अंदर बड़ी हलचल मच गई। हालांकि यह भूचाल बाहर से ज्यादा दिखाई नहीं दे रहा, लेकिन अंदरूनी तौर पर टिकट बंटवारे से पार्टी में उथल-पुथल साफ देखी जा रही है। जिन्हें टिकट मिला, वे तो खुशियों में डूबे हैं, लेकिन जिन्हें टिकट नहीं मिला, उनके लिए निराशा स्वाभाविक है। ऐसा ही हाल महेशपुर में भी देखा जा रहा है। भाजपा ने यहां से नवनीतम हेंब्रम को टिकट देकर एक नया चेहरा प्रस्तुत किया है, जिससे महेशपुर की जनता तो संतुष्ट नजर आ रही है, लेकिन संभावित उम्मीदवारों में मायूसी साफ झलक रही है।

मिस्त्री सोरेन: तृणमूल से लड़ेंगे चुनाव

भाजपा से टिकट की उम्मीद लगाए मिस्त्री सोरेन ने पार्टी से अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए अंततः पार्टी छोड़ दी है। टिकट न मिलने पर उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि पार्टी ने हमें लायक नहीं समझा, इसलिए जिसे उचित समझा, उसे टिकट दिया। लेकिन मिस्त्री सोरेन ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि वह चुनाव लड़ेंगे और उनका मुद्दा विकास के साथ-साथ राजनीतिक घुसपैठ रहेगा। जब उनसे पूछा गया कि वह निर्दलीय खड़े होंगे या किसी अन्य पार्टी से, तो उन्होंने खुलासा किया कि वह तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर महेशपुर से चुनाव लड़ेंगे। मिस्त्री सोरेन पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे, लेकिन प्रोफेसर स्टीफन मरांडी से हार का सामना करना पड़ा था। इस बार वह तृणमूल के टिकट पर अपनी जीत की संभावना को प्रबल मान रहे हैं।

लिट्टीपाड़ा में भाजपा प्रत्याशी पर कोई नाराजगी नहीं

लिट्टीपाड़ा विधानसभा क्षेत्र में भाजपा की स्थिति कुछ बेहतर मानी जा रही है। यहां से बाबूधन मुर्मू को टिकट दिया गया है और दिलचस्प बात यह है कि किसी भी संभावित उम्मीदवार ने टिकट न मिलने पर कोई नाराजगी जाहिर नहीं की है। भाजपा के प्रमुख नेताओं और कार्यकर्ताओं ने इस फैसले का स्वागत किया है। हमारे संवाददाता ने सबसे पहले साहेब हसदा से बात की, जिन्होंने स्पष्ट कहा कि पार्टी जो भी निर्णय लेती है, वह सोच-समझकर लेती है और हमें पार्टी के निर्देशों का अक्षरशः पालन करना चाहिए।

साहेब हसदा का समर्थन

साहेब हसदा ने कहा, “मैं पूरी ईमानदारी से अपने उम्मीदवार को जिताने के लिए पार्टी के दिशा-निर्देशों के अनुसार काम करूंगा।” इसी तरह भाजपा के पूर्व प्रत्याशी दानीयल किस्कू ने भी इस फैसले का समर्थन करते हुए कहा कि पार्टी सभी संभावित उम्मीदवारों को ध्यान में रखते हुए किसी एक को टिकट देती है। भले ही दावेदार कई हों, लेकिन इसमें नाराजगी की कोई बात नहीं है। उन्होंने कहा, “हम सब सामूहिक रूप से लिट्टीपाड़ा विधानसभा क्षेत्र से बाबूधन जी को भारी मतों से जीत दिलाने के लिए समर्पित भाव से काम करेंगे। पार्टी का निर्देश हमारे लिए सर्वोपरि है।”

सोशल मीडिया प्रभारी का नजरिया

भाजपा के संथाल परगना प्रक्षेत्र के सोशल मीडिया प्रभारी जयंत मंडल ने भी पार्टी के फैसले का समर्थन करते हुए कहा कि पार्टी ने दोनों उम्मीदवारों को बहुत सोच-समझकर टिकट दिया है और यह सभी के हित में है। उन्होंने कहा, “मुझे भी पार्टी के इस निर्णय से संतोष है और पार्टी के अन्य सभी लोग भी संतुष्ट हैं।” अगर कोई रुष्ट है तो उसकी अपनी वजह रही होगी, क्योंकि पार्टी तो केवल एक ही व्यक्ति को टिकट दे सकती है और इस निर्णय में बहुत कुछ आकलन किया जाता है। जयंत मंडल ने सभी कार्यकर्ताओं से अनुरोध किया कि वे तन-मन से पार्टी के कार्यों में जुट जाएं और अपने उम्मीदवार को जीताने के लिए जी-जान लगा दें।

महेशपुर और लिट्टीपाड़ा: अलग-अलग राजनीतिक हालात

जहां महेशपुर में भाजपा की टिकट घोषणा के बाद नाराजगी और पार्टी से बगावत देखने को मिली है, वहीं लिट्टीपाड़ा में स्थिति भाजपा के लिए बेहतर नजर आ रही है। मिस्त्री सोरेन का भाजपा छोड़कर तृणमूल कांग्रेस का दामन थामना पार्टी के लिए चुनौती साबित हो सकता है, लेकिन लिट्टीपाड़ा में बाबूधन मुर्मू के समर्थन में सभी एकजुट नजर आ रहे हैं। पार्टी के लिए यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि वह महेशपुर में किस प्रकार इस असंतोष को दूर करती है और लिट्टीपाड़ा में अपनी मजबूत पकड़ को बनाए रखती है।

चुनावी रणभूमि: भाजपा की रणनीति

भाजपा ने महेशपुर और लिट्टीपाड़ा विधानसभा सीटों पर उम्मीदवारों के चयन के साथ अपनी चुनावी रणनीति स्पष्ट कर दी है। जहां एक ओर महेशपुर में नवनीतम हेंब्रम को एक नया चेहरा बनाकर उतारा गया है, वहीं लिट्टीपाड़ा में बाबूधन मुर्मू जैसे लोकप्रिय उम्मीदवार को मौका दिया गया है। दोनों विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा के पास अब अलग-अलग परिस्थितियों से निपटने की चुनौती है। महेशपुर में पार्टी को मिस्त्री सोरेन जैसे बगावती नेता से निपटना होगा, जबकि लिट्टीपाड़ा में उसे अपने संगठन को मजबूत बनाए रखना है।

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