पाकुड़। धनतेरस का अवसर आते ही एक अजब सा उत्सव छा गया है, मानो पूरे शहर और गाँव को न जाने कौन-सी अदृश्य ऊर्जा मिल गई हो। हर कोने में चमकती-दमकती दुकानें और सजावट ऐसी है जैसे पाकुड़ अचानक से किसी मेट्रो सिटी में बदल गया हो। अमरपारा से लेकर महेशपुर तक, हर जगह ऐसी रौनक कि क्या बताएं, जहाँ नजर जाए वहाँ रंग-बिरंगी दुकानें और उसमें लगे शोर मचाने वाले स्पीकर जो ऐसा लगता है जैसे यह घोषणा कर रहे हों कि “आओ, आओ! इस दुकान से बढ़कर कुछ नहीं मिलेगा!”
शहरी इलाकों में तो ध्वनि विस्तारक यंत्र का ऐसा इस्तेमाल हो रहा है कि कुछ देर सुन लो तो कान खुद कहने लगें, “भाई, बस करो!” इलेक्ट्रॉनिक सामान से लेकर स्टील गोदरेज अलमीरा तक हर चीज में बंपर ऑफर चल रहा है। ऐसा लगता है जैसे लोग न खरीदारी कर रहे हों, बल्कि दौड़ में हिस्सा ले रहे हों। एक दुकान में जाते हैं, कुछ सामान उठा लेते हैं और फिर दूसरी दुकान में जाकर मोलभाव करना शुरू कर देते हैं। दुकानदार भी कम नहीं, बिना ब्याज पर किस्त में सामान देने को तैयार हैं। अरे, धनतेरस है भाई, किसी को न लूटो, लेकिन नहीं, दुकानदारों का मानो मोटो बन गया है – “बिना ब्याज पर किस्त, ताकि हर घर में खुशियाँ बिखेर सकें!”
अब जो घर में मोटरसाइकिल पहले से है, उसके मालिक भी दुकान पर खड़े हैं। ऐसा लग रहा है जैसे मोटरसाइकिल का घर में होना उनकी शान में बट्टा लगा रहा हो। और क्यों न हो, टीवी, फ्रिज, कुकर, वाशिंग मशीन, तांबे के बर्तन, पीतल के बर्तन, स्टील अलमीरा, पलंग, सोफा सेट, डाइनिंग टेबल, चम्मच, गमला, साइकिल… आखिर ये सब भी तो “धनतेरस खरीदारी अनिवार्यता सूची” में आते हैं। अब भले ही महीने के खर्चे आसमान छूने लगें, परंतु यह त्योहार के मौके पर ही तो असली जिंदगी का मोल समझ आता है!
सोने के गहनों की दुकानें तो ऐसी भरी पड़ी हैं कि महिलाओं की भीड़ देखकर ऐसा लगता है जैसे हर महिला ने कसम खा ली हो कि “इस धनतेरस पर सोना पहन कर ही घर लौटूंगी!” दुकानदार भी कमाल के हैं, वो भी हाथ धोकर पीछे पड़े हैं कि कैसे भी करके एक बार सोने के गहने बेच दें। ऐसा लगता है कि जैसे पूरे पाकुड़ का सोना इसी धनतेरस पर बिकने को तैयार हो। वहाँ एक महिला ने अपने पतिदेव को कह दिया, “इस बार सोना लेना है। नहीं तो अगली धनतेरस में दुकान नहीं, मेरे मायके जाओगे!”
और फिर आते हैं वे लोग जो खरीदारी के शौकीन तो हैं परंतु जेब देख कर ही खरीदते हैं। कुछ ने डाकघर और बैंक में जमा करने का तरीका अपनाया। अब भले ही महंगी चीजें खरीदने का सपना न पूरा हो, लेकिन ‘फिक्स डिपॉजिट’ का स्टेटस तो बना रहता है। कुछ लोग जो अपने दोस्तों से छुप-छुपकर बैंक की ओर जाते दिखे, मानो कहना चाह रहे हों कि “अरे, खरीदारी सबके बस की बात नहीं होती, हमें कुछ और पसंद है।”
अब एक फर्नीचर की दुकान के मालिक ने अपना दर्द बयां किया। उसका कहना था कि “धनतेरस को ध्यान में रखते हुए हमने खूब सामान मंगाया था, परंतु बिक्री का तो हाल ऐसा है जैसे लोग सोफे से ज्यादा कुर्सी पर बैठकर वक्त बिता रहे हों।” बेचारा दुकानदार सोच रहा था कि उसकी दुकान के सारे फर्नीचर आज ही बिक जाएँगे, परंतु ग्राहकों की संख्या देखकर उसकी मायूसी उसकी हंसी में झलक रही थी। वो सोच रहा था, “इतनी मेहनत से मंगाए फर्नीचर का क्या करें? घर ले जाकर खुद बैठें क्या?”
वहीं दूसरी ओर कुछ दुकानदारों की बिक्री इतनी बढ़िया हो गई कि उनके चेहरे पर जो चमक आई है, वो सोने से कम नहीं। उनके चेहरे पर देखकर ही लगता है कि वे धनतेरस से धनी हो गए। ग्राहकों को एक से बढ़कर एक ऑफर दे रहे हैं, और वे खुद भी ग्राहकों को देखकर मुस्कुरा रहे हैं, मानो कह रहे हों, “धनतेरस पर हमारी किस्मत चमकी।”
धनतेरस के इस उत्सव ने हर किसी को उसकी सीमाओं और खुशियों से परिचय करा दिया है। कुछ लोग जहाँ बजट के हिसाब से खुश हैं, वहीं कुछ लोग दर्द में हंसते हुए अपनी हालत पर हँस रहे हैं।