पाकुड़ में अंगिका समाज ने उठाई भाषा सम्मान की बुलंद आवाज
दिनांक 16 जून 2025, सोमवार को पूर्वाह्न 11:00 बजे, पाकुड़ जिले में अंगिका समाज की ओर से एक महत्वपूर्ण पहल की गई। प्रदेश उपाध्यक्ष भागीरथ तिवारी और जिला अध्यक्ष डॉ. मनोहर कुमार के नेतृत्व में पाँच सदस्यीय शिष्टमंडल ने माननीय मुख्यमंत्री, झारखंड सरकार के नाम एक गंभीर मांग-पत्र सौंपा। यह ज्ञापन पाकुड़ के उपायुक्त तथा जिला शिक्षा पदाधिकारी के माध्यम से राज्य सरकार को प्रेषित किया गया।
JETET से अंगिका को हटाए जाने पर तीव्र विरोध
प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि झारखंड की शिक्षक पात्रता परीक्षा (JETET) की नियुक्ति नियमावली से अंगिका भाषा को हटाया जाना न केवल भाषायी अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह सांस्कृतिक पहचान को दबाने का प्रयास भी प्रतीत होता है। अंगिका समाज ने इस फैसले का तीव्र विरोध किया और स्पष्ट किया कि संपूर्ण संथालपरगना प्रमंडल ऐतिहासिक रूप से अंगिका भाषाभाषी क्षेत्र रहा है।
इतिहास में अंगिका का गौरवशाली स्थान
ज्ञापन में इतिहास को उद्धृत करते हुए बताया गया कि संथालपरगना के छह जिले पूर्व में अविभाजित बिहार के भागलपुर जिला के अंतर्गत आते थे। भागलपुर ही प्राचीन अंग देश की राजधानी चंपा थी। त्रेता युग में राजा रोमपाद और द्वापर युग में राजा कर्ण जैसे ऐतिहासिक महापुरुष अंग देश के नायक रहे हैं। इनका सीधा संबंध अंगिका भाषा और संस्कृति से रहा है।
झारखंड में मौजूद हैं राजा कर्ण के ऐतिहासिक प्रमाण
मांग-पत्र में उल्लेख किया गया कि झारखंड राज्य के देवघर जिला में स्थित कर्रो का कर्णेश्वर मंदिर तथा जामताड़ा जिला के करमदाहा में स्थित महादेव मंदिर, जो राजा कर्ण द्वारा स्थापित हैं, आज भी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक साक्ष्य के रूप में विद्यमान हैं। ये स्मारक इस बात का प्रमाण हैं कि अंग देश का प्रभाव झारखंड में भी गहराई से मौजूद है।
तिलकामांझी से जुड़ा अंगिका का ऐतिहासिक संबंध
ज्ञापन में बताया गया कि संथालपरगना स्वतंत्रता सेनानी तिलकामांझी का कार्यक्षेत्र रहा है। उनके सम्मान में भागलपुर विश्वविद्यालय का नाम “तिलकामांझी विश्वविद्यालय” रखा गया, जहां अंगिका भाषा की पढ़ाई और शोध कार्य आज भी होते हैं। इतना ही नहीं, भागलपुर शहर के प्रसिद्ध तिलकामांझी चौक भी इसी गौरवपूर्ण विरासत को दर्शाता है।
संथालपरगना के निवासी हैं अंग भाषा के मूलवासी
प्रतिनिधिमंडल ने स्पष्ट किया कि संथालपरगना क्षेत्र के निवासी अंग क्षेत्र के मूलवासी हैं और उनकी प्राकृतिक भाषा अंगिका रही है। यह भाषा क्षेत्रीय संस्कृति, संपर्क और संवाद का मुख्य आधार है। आज भी इस क्षेत्र में 60% से अधिक लोग अंगिका बोलते हैं, और अन्य भाषाओं के साथ संपर्क की संपर्क भाषा के रूप में भी अंगिका ही प्रयुक्त होती है।
झारखंड सरकार द्वारा पूर्व में दी गई मान्यता का हवाला
ज्ञापन में कहा गया कि वर्ष 2018 में झारखंड सरकार ने अंगिका को द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया था। इसके अलावा:
- 2007 में आयोजित प्रारंभिक शिक्षक परीक्षा में JETET के अंतर्गत अंगिका भाषा के 30 अंकों के प्रश्न पूछे गए थे।
- JETET 2012 और JETET 2016 में भी यही व्यवस्था रही।
इससे यह सिद्ध होता है कि अंगिका भाषा को पूर्व में भी शैक्षणिक व नियुक्ति प्रक्रियाओं में महत्व दिया गया है।
स्थानीय युवाओं के अधिकार की बात
प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री से संथालपरगना के युवाओं के नियोजन और शिक्षक बनने के अधिकार की रक्षा करने की अपील की। उनका कहना था कि यदि अंगिका को JETET से बाहर रखा जाता है, तो यह निर्णय हजारों प्रतिभाशाली युवाओं के भविष्य के साथ अन्याय होगा।
मुख्यमंत्री से की गई स्पष्ट अनुशंसा
मांग-पत्र के अंत में माननीय मुख्यमंत्री से निवेदन किया गया कि वे JETET नियुक्ति नियमावली में अंगिका भाषा को पुनः शामिल करने की अनुशंसा झारखंड सरकार के समक्ष अपने स्तर से भेजें। प्रतिनिधिमंडल ने इस मांग को जनभावना और संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा मुद्दा बताया और इसे न्याय और भाषा-संवर्धन का प्रश्न कहा।
अंगिका को उसका हक़ दिलाने की मांग
अंगिका समाज का यह ज्ञापन न केवल एक क्षेत्रीय भाषा को अधिकार दिलाने की मांग है, बल्कि यह झारखंड की बहुभाषी संस्कृति को संतुलित और समावेशी बनाने की पहल भी है। अब देखना यह होगा कि झारखंड सरकार इस ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और जनभावनात्मक मांग पर क्या निर्णय लेती है।
“भाषा केवल संवाद नहीं, संस्कृति की आत्मा होती है — और अंगिका झारखंड की आत्मा में रची-बसी है।”