आसाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत त्रयोदशी तिथि यानी 1 जुलाई दिन शनिवार को पड़ने वाला है. शनिवार की वजह से इसे शनि प्रदोष व्रत भी कहा जाएगा. संतान सुख की प्राप्ति के लिए इस दिन व्रत रखकर भगवान शिव की पूजा-अर्चना की जाती है. ये बातें बैद्यनाथधाम के ज्योतिषाचार्य पंडित नन्द किशोर मुदगल ने कहीं. उन्होंने प्रदेष व्रत का महत्व व पूजा के शुभ मुहूर्त की भी जानकारी दी.
पंडित नन्द किशोर मुदगल ने लोकल 18 को बताया कि आसाढ़ महीने की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाएगा. मान्यता है कि प्रदोष के दिन स्नान कर पुत्र की कामना का संकल्प करने से फल की प्राप्ति होती है. व्रत रखकर भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए. साथ ही शिव मंदिर में घी का एक दीया अवश्य जलाएं. वहीं किसी ब्राह्मण के द्वारा पुत्र मंत्र का जाप भी करा सकते हैं. इससे मनोकामना जरूर पूरी होती है.
शुरू और समापन वक्त
उन्होंने बताया कि आसाढ़ महीने की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाएगा. इस बार 30 जून व 1 जुलाई की दरम्यानी रात 1 बजकर 32 मिनट से इसकी शुरुआत हो रही है. वहीं, इसका समापन 1 जुलाई की रात्रि 11 बजे होगा. इसलिए प्रदोष व्रत 1 जुलाई को रखा जाएगा.
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शनि प्रदोष पूजा विधि
शनि प्रदोष व्रत वाले दिन शाम को प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा की जाती है. भगवान भोलनाथ की पूजा गंगाजल, गाय के दूध, चंदन, भस्म, फूल, माला, धूप, दीप, गंध, बेलपत्र, मदार पुष्प, धतूरा, भांग आदि से करते हैं. शिव वंदना के साथ शनि प्रदोष व्रत कथा सुनकर शिव आरती करते हैं. अगले दिन सुबह पारण करके व्रत को पूरा किया जाता है.
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