पाकुड़। झारखंड में विधानसभा चुनाव की तिथियों की घोषणा हो चुकी है, लेकिन प्रत्याशियों की सूची जारी करने में पार्टियों को पसीने छूट रहे हैं। रात-दिन बैठकों का दौर जारी है, जिसमें पार्टी के आला कमान नफा-नुकसान का आकलन करने में जुटे हैं। उम्मीदवारों के चयन में सावधानी बरतने के कारण, पार्टियों को फूंक-फूंक कर कदम रखने पड़ रहे हैं। सीट बंटवारे को लेकर अंदरूनी विवाद और सत्ता संतुलन बनाए रखने के प्रयास में सभी गठबंधन पार्टियां फिलहाल असमंजस की स्थिति में हैं।
प्रत्याशियों की तस्वीर अब तक धुंधली
झारखंड में सीटों के बंटवारे को लेकर अब तक गठबंधन दलों और प्रमुख पार्टियों ने अपने प्रत्याशियों की तस्वीर साफ नहीं की है। चाहे भाजपा गठबंधन (एनडीए) हो या फिर आईएएनडीआईए के तहत झामुमो गठबंधन, दोनों ही दलों ने अब तक सीट शेयरिंग और प्रत्याशियों के नाम की विधिवत घोषणा नहीं की है। नामों की घोषणा होते ही पार्टी के भीतर और बाहर खलबली मचने की पूरी संभावना है। राजनीतिक हलकों में चर्चाएं हैं कि सीट बंटवारे से संबंधित असंतोष से दलों के भीतर बड़ा भूचाल आ सकता है, इसी के चलते सभी नेता सतर्क हैं।
किसे मिले टिकट और किसे नहीं: बड़ी चुनौती
पाकुड़ जिले के तीन विधानसभा क्षेत्रों – पाकुड़, महेशपुर, और लिट्टीपाड़ा में अब तक प्रत्याशियों के चेहरे स्पष्ट नहीं हो पाए हैं। इन सीटों पर कई दावेदार सामने हैं, जिनके बीच से किसी एक का चयन करना भाजपा और झामुमो गठबंधन के लिए बड़ी चुनौती बन गया है। दोनों दलों को सामंजस्य बनाते हुए अपने प्रत्याशियों को चुनना कठिन प्रतीत हो रहा है, लेकिन अंततः किसी एक को तो टिकट मिलना ही है। आगामी 72 घंटों में प्रत्याशियों की तस्वीर काफी हद तक साफ होने की संभावना जताई जा रही है। तब ही यह पता चलेगा कि किसने क्या पाया और कौन पीछे रह गया।
पुराने चेहरे बनेंगे उम्मीद या नए चेहरों पर दांव?
दोनों गठबंधन दलों के लिए सीटों पर प्रत्याशी चुनना कोई आसान काम नहीं है। अगर पाकुड़ विधानसभा की बात करें तो भाजपा का चेहरा बाबूधन मुर्मू काफी सक्रिय दिख रहे हैं। वे लगातार ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं। हालांकि, पार्टी के भीतर कमल कृष्ण भगत, बलराम दुबे, मीरा प्रवीन सिंह, और अनुग्रहित प्रसाद शाह जैसे अन्य दावेदार भी टिकट की दौड़ में हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस में भी स्थिति कुछ साफ नहीं है। तनवीर आलम, हंजला शेख़, और एक समाजसेवी भी इस दौड़ में शामिल हैं, लेकिन पार्टी ने अब तक किसी के नाम की घोषणा नहीं की है।
महेशपुर में दावेदारों की लंबी कतार
महेशपुर में पिछले दो विधानसभा चुनावों से प्रोफेसर स्टीफन मरांडी विधायक हैं, और इस बार वे अपनी बेटी उपासना मरांडी को झामुमो से टिकट दिलाने के प्रयास में हैं। दूसरी ओर, जिला परिषद अध्यक्ष जूली खिस्टमुनि हेंब्रम भी प्रबल दावेदार के रूप में उभर रही हैं। भाजपा की तरफ से पूर्व विधायक मिस्त्री सोरेन और सुफल मरांडी प्रमुख दावेदार हैं, लेकिन सूत्रों की माने तो पूर्व एसडीपीओ नवीनतम हेंब्रम का नाम पार्टी के शीर्ष स्थान पर चल रहा है। आने वाले दिनों में यह साफ हो जाएगा कि भाजपा किस पर दांव खेलती है।
लिट्टीपाड़ा में कांटे की टक्कर की संभावना
लिट्टीपाड़ा विधानसभा सीट पर भी हालात काफी दिलचस्प हैं। यहां झामुमो और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर होने की संभावना है। झामुमो से वर्तमान विधायक दिनेश बिलियन मरांडी, हेमलाल मुर्मू, और रसका हेंब्रम प्रमुख दावेदार हैं। भाजपा से दानियल किस्कू, बाबूधन मुर्मू, और शिवचरण मलतो जैसे चेहरे टिकट की दौड़ में हैं। अब देखना यह होगा कि पार्टियां पुराने उम्मीदवारों पर दांव लगाती हैं या फिर नए चेहरों को मौका देती हैं।
अखिल अख्तर की राजनीतिक संभावनाएं
पिछले कुछ समय से चर्चा में रहे पूर्व विधायक अखिल अख्तर ने हाल ही में आजसू पार्टी से किनारा किया है। राजनीतिक सूत्रों के अनुसार, वे चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। अखिल अख्तर की क्षेत्र में अच्छी पहचान है और उनके समर्थक उन्हें चुनाव में खड़ा करने के लिए जोर लगा रहे हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि वे किसी पार्टी से चुनाव लड़ते हैं या फिर स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में अपनी किस्मत आजमाते हैं। उनकी उपस्थिति चुनावी समीकरणों को बदल सकती है।
72 घंटों में साफ हो सकती है तस्वीर
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगले 72 घंटों में कई प्रमुख सीटों पर धुंधली तस्वीर साफ होने लगेगी। इससे स्पष्ट हो जाएगा कि किसे टिकट मिला और कौन पीछे रह गया। नामों की घोषणा के बाद पार्टियों के भीतर उठापटक की पूरी संभावना है, खासकर जब प्रमुख दावेदारों को टिकट नहीं मिलता है। इस स्थिति में पार्टी नेताओं के लिए आंतरिक संतुलन बनाए रखना एक बड़ी चुनौती बन सकता है।
आंतरिक असंतोष की संभावना
जब टिकट बंटवारा होगा, तो पार्टी के भीतर आंतरिक असंतोष उभर सकता है। जिन नेताओं को टिकट नहीं मिलेगा, वे या तो बगावत कर सकते हैं या फिर स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने का फैसला कर सकते हैं। ऐसे में पार्टी नेतृत्व को अपने उम्मीदवारों के चयन में बेहद सावधानी बरतनी होगी, ताकि आंतरिक मतभेदों को रोका जा सके और चुनावी अभियान को नुकसान न हो।
सियासी भूचाल की आशंका
झारखंड में विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच, पार्टियों के भीतर सियासी भूचाल आने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। टिकट बंटवारे को लेकर हो रही देरी इस ओर संकेत कर रही है कि पार्टियों में अंदरूनी संघर्ष चल रहा है। अब यह देखना बाकी है कि आने वाले दिनों में यह संघर्ष किस दिशा में जाता है और कौन सी पार्टी अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर जनता के बीच अपनी स्थिति मजबूत करती है।