पारिवारिक विवाद का सुखद अंत
पाकुड़। पाकुड़ व्यवहार न्यायालय अंतर्गत कुटुंब न्यायालय में चल रहे एक पारिवारिक विवाद का सकारात्मक और प्रेरणादायक समाधान सामने आया है। मूल भरण-पोषण वाद संख्या 135/2025, राहुल कुमार ठाकुर बनाम संगीता देवी, जो लंबे समय से अलग-अलग रह रहे थे, का अंत आपसी समझौते और मेल-मिलाप के साथ हुआ।
न्यायालय में चल रहा था भरण-पोषण वाद
यह मामला पति-पत्नी के बीच उत्पन्न मतभेदों के कारण कुटुंब न्यायालय में विचाराधीन था। दोनों पक्षों के बीच वैवाहिक जीवन में तनाव के चलते मामला भरण-पोषण वाद के रूप में दर्ज हुआ था। न्यायालय ने इस प्रकरण को केवल कानूनी दृष्टि से ही नहीं, बल्कि मानवीय और पारिवारिक संवेदनशीलता के साथ देखा।
प्रधान न्यायाधीश की अहम भूमिका
प्रधान न्यायाधीश, कुटुंब न्यायालय रजनीकांत पाठक के निरंतर, धैर्यपूर्ण और अथक प्रयासों से इस विवाद को सुलझाने में सफलता मिली। उन्होंने दोनों पक्षों को परस्पर संवाद, समझ और विश्वास के माध्यम से अपने मतभेदों को समाप्त करने के लिए प्रेरित किया। न्यायाधीश की इस पहल से यह स्पष्ट हुआ कि कुटुंब न्यायालय का उद्देश्य केवल फैसला सुनाना नहीं, बल्कि परिवार को जोड़ना भी है।
आपसी सहमति से साथ रहने का निर्णय
लंबे संवाद और समझाइश के बाद पति-पत्नी ने अपने आपसी मतभेद समाप्त कर पुनः एक साथ वैवाहिक जीवन बिताने की सहमति जताई। दोनों ने यह स्वीकार किया कि भविष्य में वे समझदारी, सहयोग और आपसी सम्मान के साथ जीवन व्यतीत करेंगे।
वैवाहिक जीवन को लेकर दिया गया संदेश
इस अवसर पर प्रधान न्यायाधीश रजनीकांत पाठक ने दंपति को आपस में मिल-जुलकर रहने, दोबारा किसी प्रकार का मतभेद उत्पन्न न होने देने, तथा एक-दूसरे की भावनाओं को समझते हुए जीवन को खुशी-खुशी आगे बढ़ाने का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि संवाद और धैर्य से बड़े-से-बड़े पारिवारिक विवाद का समाधान संभव है।
परिवारजनों और न्यायिक कर्मियों की उपस्थिति
इस भावुक और सकारात्मक क्षण के साक्षी बनने के लिए दोनों पक्षों के परिवारजन, कोर्ट कर्मी एवं संबंधित अधिवक्ता न्यायालय परिसर में उपस्थित रहे। सभी ने इस निर्णय का स्वागत किया और दंपति के सुखद भविष्य की कामना की।
समाज के लिए प्रेरणादायक उदाहरण
यह मामला न केवल एक कानूनी विवाद का अंत है, बल्कि समाज के लिए एक प्रेरणादायक उदाहरण भी है कि संवाद, समझ और न्यायालय की सकारात्मक भूमिका से टूटते रिश्तों को फिर से जोड़ा जा सकता है। कुटुंब न्यायालय की यह पहल पारिवारिक मूल्यों और सामाजिक समरसता को मजबूत करने की दिशा में एक सराहनीय कदम है।


