जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में ‘जड़ी-बूटी दिवस’ का भव्य आयोजन
पाकुड़। प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी पतनंजलि योग समिति एवं भारत स्वाभिमान के कार्यकर्ताओं द्वारा आचार्य बालकृष्ण के जन्मोत्सव को ‘जड़ी-बूटी दिवस’ के रूप में बड़े उत्साह और जागरूकता के साथ मनाया गया। इस अवसर पर कार्यकर्ताओं ने स्थानीय औषधीय पौधों को एकत्रित कर एक जानकारी युक्त स्टॉल लगाया, जहाँ आमजन को इन जड़ी-बूटियों के औषधीय गुणों की विस्तृत जानकारी दी गई।
राहगीरों को जड़ी-बूटियों की जानकारी और गिलोय का वितरण
कार्यक्रम के दौरान आने-जाने वाले राहगीरों को गिलोय, जिसे ‘अमृता’ भी कहा जाता है, का निःशुल्क वितरण किया गया। साथ ही, वहाँ रखी गई औषधीय वनस्पतियों जैसे गुड़मार, तेलिया कंद, भूई आंवला, पुनर्नवा, दमबेल, हर जोड़ा, अकरकरा, शतावर, भृंगराज और अमरबेल की पहचान करवाई गई और उनके चिकित्सकीय उपयोगों की जानकारी दी गई। उपस्थित लोगों को बताया गया कि किस रोग में किस जड़ी-बूटी का उपयोग लाभकारी होता है और उनका प्रयोग किस प्रकार किया जाए।
पतनंजलि योगपीठ से प्राप्त पत्रकों का वितरण
कार्यक्रम को और भी ज्ञानवर्धक बनाने हेतु पतनंजलि योगपीठ, हरिद्वार से प्राप्त पत्रक एवं प्रचार सामग्री का भी वितरण किया गया। इन पत्रकों में आयुर्वेदिक उत्पादों, वनस्पति आधारित औषधियों, और स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारियों को समाहित किया गया था। इन्हें आम जनों के बीच इस उद्देश्य से वितरित किया गया कि वे स्वस्थ जीवनशैली को अपनाएं और प्राकृतिक उपचार की ओर अग्रसर हों।
जिला संयोजक ने जड़ी-बूटियों की महत्ता को रेखांकित किया
भारत स्वाभिमान के जिला संयोजक संजय कुमार शुक्ला ने जानकारी दी कि आचार्य बालकृष्ण के जन्मोत्सव को ‘जड़ी-बूटी दिवस’ के रूप में मनाना एक राष्ट्रव्यापी प्रयास है, ताकि आम जनता प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों की ओर लौटे और रासायनिक दवाओं पर निर्भरता कम की जा सके। उन्होंने बताया कि आज देशभर में लाखों लोग इस आयोजन में भाग लेकर औषधीय पौधों की जानकारी प्राप्त कर रहे हैं।
आयुर्वेदिक पौधों से गंभीर बीमारियों के उपचार की संभावना
कार्यक्रम में मौजूद विशेषज्ञों ने बताया कि आज भी कई ऐसी गंभीर और जटिल बीमारियाँ हैं जिनका समाधान आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों के माध्यम से संभव है। जैसे – गिलोय से बुखार, गुड़मार से मधुमेह, पुनर्नवा से किडनी संबंधी समस्याओं और भृंगराज से बालों एवं त्वचा की देखभाल संभव है। इन सभी की प्राकृतिक उपलब्धता और कम लागत उन्हें विशेष बनाती है।
स्थानीय कार्यकर्ताओं की अहम भूमिका
इस आयोजन में समीर कुमार दास, संजय कुमार साह, मंजू देवी, डॉली मित्रा, वंदना कुमारी, विष्णु देव प्रसाद और स्थानीय वैद्य बाबूराम हेंब्रम ने सक्रिय भागीदारी निभाई। इन सभी ने न केवल कार्यक्रम को सफल बनाया, बल्कि अपने अनुभवों के माध्यम से लोगों को जड़ी-बूटियों के घरेलू उपयोग से अवगत भी कराया।
सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए जागरूकता की अनूठी पहल
यह आयोजन केवल एक जन्मोत्सव नहीं बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य जागरूकता का एक सशक्त माध्यम बनकर सामने आया। आचार्य बालकृष्ण के आयुर्वेदिक ज्ञान और प्रेरणा से जुड़ा यह दिन अब स्वदेशी चिकित्सा पद्धति के प्रचार-प्रसार का पर्व बन चुका है।
जड़ी-बूटी दिवस जैसे आयोजन हमें हमारी प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों और प्राकृतिक जीवनशैली की ओर लौटने की प्रेरणा देते हैं। यह न सिर्फ स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का प्रतीक है, बल्कि स्वदेशी विचारधारा को भी बल प्रदान करता है।