जमुई. भगवान भोलेनाथ के कई ऐसे मंदिर है, जहां अलग-अलग तरीके से भक्त उनकी आराधना करते हैं. कई जगहों पर भगवान की पूजा चिता के भस्म से की जाती है तो कई जगहों पर विभिन्न प्रकार के फूलों से उनका श्रृंगार किया जाता है. लेकिन सभी महादेव मंदिरों में भगवान भोलेनाथ की पूजा में त्रिपुंड तिलक का इस्तेमाल किया जाता है. भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग पर तिलक की तीन सीधी रेखाएं खींचकर भोलेनाथ का श्रृंगार किया जाता है. लेकिन बिहार के जमुई में भगवान भोलेनाथ का एक ऐसा भी मंदिर है, जहां भोलेनाथ को जो तिलक लगाया जाता है वह शिवजी का त्रिपुंड शैव तिलक नहीं बल्कि उन्हें वैष्णव तिलक लगाया जाता है. पुरोहित का दावा है कि यह देश का एकमात्र ऐसा शिवलिंग है. इस मंदिर में भगवान महादेव को वैष्णव तिलक लगाने के पीछे काफी प्राचीन रहस्य छुपा है.
मंदिर के पुरोहित पंकज पांडेय ने बताया कि पक्षीराज जटायु ने अपनी मृत्यु के समय भगवान श्रीराम से यह वरदान मांगा था कि कुछ ऐसा किया जाए जिससे उनका नाम अमर हो जाए, तब भगवान श्रीरामचंद्र ने अपने हाथों से यहां शिवलिंग की स्थापना की थी और अपने माथे पर लगाया गया तिलक भी इस शिवलिंग को दिया था. पक्षीराज जटायु के नाम पर ही इस मंदिर का नाम की गिद्धेश्वर नाथ महादेव मंदिर पड़ा है और तब से ही यहां पर शैव नहीं बल्कि वैष्णव तरीके से भगवान भोलेनाथ की आराधना की जाती है. जिस प्रकार से भगवान विष्णु का श्रृंगार और उनकी पूजा-अर्चना होती है, बिल्कुल उसी तरीके से इस मंदिर में भी पूजा-पाठ की जाती है.
लक्ष्मण के वाण से बना था कुआं, जिससे होती है भोलेनाथ की पूजा
इस मंदिर परिसर के बीच में ही एक कुआं अवस्थित है. जिसके बारे में पुरोहित बताते हैं कि इसका निर्माण लक्ष्मण ने अपने वाण से किया था, जब पक्षीराज जटायु अपने अंतिम समय में थे और भगवान श्रीराम ने शिवलिंग की स्थापना की थी तब उनके जलाभिषेक के लिए आस-पास पानी का कोई स्रोत नहीं था. जिस कारण लक्ष्मण ने अपने वाण से एक कुआं ने बना दिया था और आज तक उसी कुएं के जल से भगवान भोलेनाथ की पूजा-अर्चना होती है. अपनी इसी खासियत की वजह से यह मंदिर आस-पास के इलाकों में काफी प्रसिद्ध है तथा यहां हर साल बिहार के अलावा झारखंड सहित कई अन्य प्रदेशों से भी लोग आते हैं और भगवान भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करते हैं.
Source link