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नकुल कुमार/पूर्वी चंपारण. बाजरा, ज्वार, कोदो, कौनी और सवा जैसे मोटे अनाज में पाए जाने वाले विभिन्न पोषक तत्वों की भरमार को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष के रूप में घोषित किया है. भारत में भी इसके प्रचार-प्रसार को लेकर जागरूकता फैलाई जा रही है. बता दें कि मोटा अनाज मनुष्य के स्वास्थ्य के लिहाज से बहुत ही प्रभावशाली है.
जिले के पिपराकोठी स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के फल एवं सब्जी प्रसंस्करण इकाई की कृषि वैज्ञानिक डॉ. प्रज्ञा प्रियदर्शनी पांडा ने बताया कि विश्व के कई देश में एवं भारत के 21 राज्यों में मोटे अनाज की खेती होती है. लेकिन किसानों में इसको लेकर जागरूकता कम होने की वजह से इसका उपयोग पशुचारा आदि के लिए ही करते हैं. जबकि अन्य अनाज की अपेक्षा इसमें पोषक तत्त्वों की मात्रा काफी ज्यादा है.
जलवायु परिवर्तन के अनुकूल है मोटा अनाज
कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि पूरे विश्व में बड़ी तेजी से जलवायु परिवर्तन हो रहा है. बिहार में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव ज्यादा देखा जा रहा है. वहीं मोटे अनाज का उत्पादन भीषण गर्मी एवं कम पानी में भी लिया जा सकता है. कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि मोटे अनाज में लाइसेंस इंडेक्स कम होता है. जबकि इसमें आयरन, फॉलिक एसिड, कैल्शियम और फाइबर भरपूर होता है. इसलिए हमें अपने भोजन में मल्टीग्रेन आटा (दो या दो से अधिक अनाज से बना आटा) की रोटी को प्रोत्साहन देना चाहिए.
ट्रेनिंग के लिए यहां करें संपर्क
कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि जितने भी मोटे अनाज हैं, वे धान-गेहूं की अपेक्षा कम अवधि एवं कम लागत में उत्पादन देते हैं. इसके लिए पिपराकोठी कृषि विज्ञान केंद्र नें बाकायदा ट्रेनिंग दी जाती है. कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि मोटे अनाज के उत्पादन एवं प्रोसेसिंग के लिए लगातार ट्रेनिंग कैंप का आयोजन किया जाता है. इसके लिए कम से कम तीन दिनों की और अधिक से अधिक 7 दिन की ट्रेनिंग दी जाती है. जिन किसानों को मोटे अनाज एवं उसके प्रोसेसिंग से संबंधित जानकारी एवं ट्रेनिंग लेनी हो, वे कृषि विज्ञान केंद्र में आकर प्रधान कृषि वैज्ञानिक से संपर्क कर सकते हैं.
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Tags: East champaran, Local18
FIRST PUBLISHED : August 11, 2023, 14:09 IST
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