Friday, July 25, 2025
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चौसा के पन्नों में दर्ज कई दास्तान…शेरशाह सूरी ने मुगलों को किया परास्त, आधे दिन की बादशाहत में रचा इतिहास

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गुलशन सिंह/बक्सर. ऐतिहासिक और पौराणिक महत्वों को समेटे बक्सर की इस धरती पर इतिहास में कई निर्णायक युद्ध हुए. चाहे वो त्रेतायुग में भगवान श्री राम और राक्षसी ताड़का, सुबाहु और मारीच का हो या फिर 16वीं और 18 वीं शताब्दी में हुए लड़ाई की बात हो. बक्सर जिला मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर कर्मनाशा नदी के गोद में बसा है चौसा. कर्मनाशा नदी के पूर्वी तट पर हीं स्थित है ऐतिहासिक युद्धस्थल, जहां 25 जून 1539 में शेरशाह सूरी और मुगल बादशाह हुमायूं के बीच भीषण लड़ाई हुई थी. यह घटना इतिहास के पन्नो में अंकित है.

शेरशाह सूरी और हुमायूं के नेतृत्व में लड़ने वाली दोनों सेनाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ था. कहा जाता है कि- चौसा के इसी धरती पर युद्ध में 8000 से अधिक मुगल सैनिक मारे गए थे. जबकि शेरशाह सूरी से युद्ध में बुरी तरह घायल हुमायूं को अपनी जान बचाकर युद्ध के मैदान से भागना पड़ा था और जान बचाने के लिए वह गंगा में कूद गए थे.

आधे दिन के बादशाहत में चमड़े का सिक्का
बता दें कि चौसा की लड़ाई मैदान से कुछ ही दूरी पर कर्मनाशा नदी और गंगा नदी का संगम भी है. हुमायूं युद्ध हारने के बाद जब जान बचाने के लिए गंगा में कूदा तो वह डूबने लगा. लेकिन चौसा के ही रहने वाले एक निजाम भिश्ती ने अपनी नौका पर सहारा देकर उसे बचा लिया और उसके जख्मों का उपचार करवाया. यहां से बचने के बाद हुमायूं भारत छोड़कर भाग गया और दिल्ली की गद्दी पर शेरशाह की हुकूमत कायम हुई. वहीं शेरशाह के निधन के बाद जब हुमायूंं ने फिर से भारत आकर दिल्ली की गद्दी पर कब्जा जमाया तो चौसा के युद्ध में हारने के बाद जान बचाने वाले निजाम भिश्ती को हुमायूं दिल्ली बुलाकर अपनी प्राणरक्षा के लिए आधे दिन के लिए बादशाह बना दिया. इस दौरान निजाम भिश्ती ने पूरे भारत में जहां तक मुगल साम्राज्य का राज था, वहां पर चमड़े का सिक्का चलाया और खुद को इतिहास में अमर कर गया.

 पुरातत्व विभाग को मिली प्राचीन मूर्तियां
चौसा के युद्धस्थल को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की कोशिश दो साल पहले जिला प्रशासन के द्वारा की गई. जिसमें मनरेगा योजना से सेल्फी प्वाइंट सीमेंटेड चेयर व फेबर ब्लॉक ईट बिछा कर सौंदर्यीकरण किया गया. लेकिन रख-रखाव के अभाव में युद्धस्थल के सौंदर्यीकरण पर ग्रहण लग रहा है. स्थानीय लोगों की माने तो एक दशक पहले पुरातत्व विभाग ने खुदाई भी की थी. जिसमें कई सारी मूर्तियां मिली थी जो 5 हजार साल पुरानी बताई जाती है. लेकिन इसके संरक्षण के लिए कोई ठोस पहल नहीं किया गया.

पर्यटन को बढ़ावा देने की मांग
स्थानीय लोग बताते है कि- सभी बड़े-बड़े मूर्तियों को विभाग पटना लेकर चली गई. हालांकि 4-5 छोटी छोटी खंडित प्राचीन मूर्तियों को यहीं छोड़ दिया गया, जो आज भी युद्धस्थल पर खुले आसमान के नीचे पड़ा हुआ है. स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि सरकार इस जगह को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर यहां संग्रहालय बनाकर पर्यटन को बढ़ावा दे तो आस-पास में रोजगार का अवसर बढ़ेगा

Tags: Bihar News, Buxar news, Local18

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