Sunday, May 25, 2025
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बिहार में बढ़ी सियासी सरगर्मी; मगर राजनीति की टेढ़ी चाल समझना इतना आसान नहीं!

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पटना. भाजपा विरोधी दलों की की बैठक बीते 23 जून को पटना में हुई थी. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में हुई इस मीटिंग से महागठबंधन बेहद उत्साहित था. इसके बाद दावा किया जाने लगा था कि आने वाले लोकसभा चुनाव में इस बैठक से दिया गया मैसेज बीजेपी को भारी नुकसान पहुंचाएगा. लेकिन, अभी बैठक के कुछ दिन ही हुए थे कि महाराष्ट्र में एक बड़े सियासी घटनाक्रम में शरद पवार की पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) टूट गई. इसके साथ ही अचानक बिहार में भी सियासी हलचल तेज हो गई. एनडीए के सहयोगियों की तरफ से लगातार दावे तेज होने लगे कि बहुत जल्द जदयू और कांग्रेस के विधायकों में टूट होने वाली है. ऐसे में बिहार की राजनीति गर्म होने लगी.

महाराष्ट्र की घटना के बीच अचानक नीतीश कुमार ने अपने विधायकों और सांसदों से एक एक करके बंद कमरे में मुलाकात करने से ये कयास और तेज हो गए कि आखिर बंद कमरे में नीतीश कुमार अपने विधायकों और सांसदों से क्या बात कर रहे हैं? क्या नीतीश कुमार को ये आशंका है कि उनके विधायकों और सांसदों को बीजेपी तोड़ सकती है? कयास लगाए जाने लगे कि यही कारण है कि सीएम नीतीश सांसदों-विधायकों से फीडबैक ले रहे थे. इस घटनाक्रम के बाद कयासबाजियों के बीच सफाई देने जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह को आना पड़ा.

ललन सिंह ने कहा-भाजपा की दाल नहीं गलेगी
जदयू अध्यक्ष ने दावा करते हुए कहा कि इस बात में कोई दम नहीं है कि पार्टी में कोई टूट की कोई आशंका है, जदयू पूरी तरह से एकजुट है. ललन सिंह ने कहा, महाराष्ट्र में जो बीजेपी ने किया है उसका जवाब तो शरद पवार बहुत जल्द देंगे, लेकिन बिहार में बीजेपी की कोई दाल नहीं गलेगी. हालांकि, इन सब के बीच नीतीश कुमार पर तब सबकी निगाहें टिक गईं जब लालू प्रसाद यादव के पुत्र और बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव को लैंड फॉर जॉब मामले में सीबीआई ने चार्जशीट में नाम जोड़ दिया, जिससे तेजस्वी यादव की मुश्किलें बढ़ गई हैं. सवाल उठने लगे हैं कि अब नीतीश कुमार क्या करेंगे?

नीतीश कुमार को लेकर क्या कहते हैं जानकार?
बिहार के वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि लैंड फॉर जॉब मामले में सीबीआई ने बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के खिलाफ भी चार्जशीट दाखिल कर दी है, जिसने नीतीश कुमार की परेशानी और दुविधा बढ़ा दी है. ऐसा इसलिए कि नीतीश कुमार के बारे में कहा जाता है कि वे ‘थ्री C’ यानी क्राइम, करप्शन और कम्युनिलिज्म से कभी समझौता नहीं करते हैं. वर्ष 2017 में भी जब सीबीआई ने आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव, उनकी पत्नी राबड़ी देवी और तत्कालीन डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव समेत 11 लोगों को आरोपी बनाया था, उस वक्त भी तेजी से राजनीतिक परिस्थितियां बदली थीं और तब नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव से इस मामले में जनता के सामने स्थिति स्पष्ट करने की बात कही थी. लेकिन, तेजस्वी यादव ऐसा नहीं कर पाए थे. इसके बाद ही नीतीश कुमार महागठबंधन से अलग हो गए थे. यही सवाल इस बार भी उठने लगा है कि नीतीश कुमार क्या करेंगे?

सुशील मोदी की मांग ने बढ़ा दी सियासी हलचल
इसी बीच भाजपा के सांसद व बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने भी नीतीश कुमार से मांग कर दी है कि तेजस्वी यादव को अपने मंत्रिमंडल से बर्खास्त करें. पूर्व उपमुख्यमंत्री ने कहा कि ‘रेलवे की नौकरी के बदले जमीन घोटाले’ मामले में राज्य के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर सीबीआई द्वारा चार्जशीट दाखिल करने के बाद नीतीश कुमार को अविलम्ब तेजस्वी यादव को बर्खास्त करना चाहिए. सुशील मोदी कहते हैं कि जब लालू यादव पर मुख्यमंत्री रहते चारा घोटाला मामले में चार्जशीट दाखिल हुई थी तो नीतीश-ललन सिंह ने लालू के इस्तीफे की मांग की थी तो अब नीतीश कुमार भ्रष्टाचार से समझौता करेंगे या भ्रष्टाचार के आरोपी को बर्खास्त करेंगे, देखना है.

राज्यपाल से मिले थे नीतीश कुमार और सुशील मोदी
बता दें कि तेजस्वी यादव विदेश में हैं और इसी बीच बीते बुधवार को सीएम नीतीश कुमार और पूर्व डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी की मुलाकात के बाद से ही बिहार में राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गई है. दरअसल, दोनों ही नेता बिहार के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर से मुलाकात करने बुधवार को सीएम नीतीश कुमार पहुंचे हुए थे. इस दौरान राजभवन में हुई इस मुलाकात के बाद बिहार की राजनीति को लेकर कई तरह के कयास भी लगाने शुरू हो गए हैं. इसे 2024 लोकसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है. वहीं, इससे सवाल भी उठने लगे हैं कि क्या नीतीश कुमार फिर से नई खिचड़ी बनाने की तैयारी कर रहे हैं. हालांकि, दोनों ही नेताओं ने ऐसी किसी भी संभावना से इनकार किया था और राज्यपाल से औपचारिक मुलाकात करार दिया था.

इस बार पसोपेश में क्यों दिख रहे नीतीश कुमार?
हालांकि, रवि उपाध्याय कहते हैं कि पिछली बार की तरह इस बार नीतीश कुमार के लिए पिछली बार जैसा फैसला करना आसान नहीं होगा, क्योंकि नीतीश कुमार आरजेडी के मदद से पूरे देश में बीजेपी विरोधियों को एकजुट करने में बहुत आगे तक निकल गए हैं. पटना में 23 जून की बैठक बुला कर बीजेपी की चिंता भी बढ़ा दी है. वहीं, दूसरी ओर 23 जून की बैठक के बाद कुछ दलों के तेवर ने भी नीतीश कुमार की चिंता बढ़ा दी है. जब ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल के तेवर बीजेपी के खिलाफ बड़े गठबंधन बनाने की उम्मीद को कमजोर कर रहे हैं.

क्या भाजपा-जदयू के बीच की दूरी पाटी जा सकेगी?
यहां यह भी बता दें कि तेजस्वी यादव के मामले में नीतीश कुमार ने कई बार ये सफाई भी दी है कि जब-जब लालू यादव हमारे साथ आते हैं उनके और उनके परिवार पर केंद्रीय एजेंसियां पीछे पड़ जातीं हैं. पिछली बार भी झूठ बोलकर जदयू को महागठबंधन से अलग किया गया था. बहरहाल, नीतीश कुमार को भी पता है कि इस बार वो काफी आगे निकल चुके हैं और बीजेपी के साथ वापस जाना आसान नहीं है. वहीं, गृह मंत्री अमित शाह ने भी कई बार-बार दुहराया है कि चाहे कुछ भी हो जाए नीतीश कुमार के लिए बीजेपी का रास्ता हमेशा के लिए बंद हो गया है. लेकिन, ये भी सच है कि राजनीति में समय के हिसाब से फैसला बदला भी जाता है.

Tags: Opposition Parties, Opposition unity

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