हेमंत सरकार की शराब नीति पर उठे सवाल
पाकुड़। झारखंड में हेमंत सरकार की नई शराब नीति को लेकर राजनीतिक हलकों में चर्चाओं का दौर गर्म है। एक ओर सरकार नशा मुक्ति अभियान पर करोड़ों रुपये खर्च कर लोगों को जागरूक कर रही है, तो दूसरी ओर गांव-गांव में शराब की दुकानें खोलने की तैयारी भी की जा रही है। इस दोहरी नीति को लेकर अब विपक्ष खुलकर सवाल उठा रहा है।
आजसू पार्टी के जिलाध्यक्ष आलमगीर आलम ने एक प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से सरकार पर कड़ा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि, “सरकार खुद ही भ्रमित है। एक तरफ कहती है कि नशा बुरी चीज है और इससे बचने के लिए जन-जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं, दूसरी ओर हर पंचायत में शराब की दुकान खोलने की योजना बना रही है। क्या ये आत्मविरोधाभासी नहीं है?”
नई शराब नीति का उद्देश्य राजस्व या समाज सुधार?
सरकार द्वारा लाई गई नई शराब नीति के तहत अब पंचायत स्तर पर शराब दुकानें खोली जाएंगी। पहले जहां एक प्रखंड में एक या दो शराब दुकानें होती थीं, अब वह संख्या कई गुना बढ़ सकती है। इसके साथ ही रात 11 बजे तक दुकानें खुली रहेंगी, और दुकान के अंदर ही शराब पीने की व्यवस्था भी की जा रही है।
इस नीति का मुख्य उद्देश्य राजस्व में बढ़ोतरी बताया जा रहा है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या आर्थिक लाभ के लिए जनस्वास्थ्य से समझौता किया जाना चाहिए? इस फैसले पर विपक्ष और सामाजिक संगठन दोनों ही कड़ी प्रतिक्रिया दे रहे हैं।
नशा मुक्ति अभियान या करोड़ों की लीपा-पोती?
आजसू जिलाध्यक्ष आलमगीर आलम ने सरकार की नशा मुक्ति मुहिम पर भी सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा, “अगर सरकार को सच में नशे से समाज को बचाना है तो शराब को भी प्रतिबंधित करना चाहिए। यह कैसे संभव है कि एक तरफ आप कहते हैं कि नशा बुरी चीज है और दूसरी ओर खुद ही शराब बेचने का लाइसेंस देते हैं?”
उन्होंने आगे कहा कि इस अभियान के तहत अखबारों, टीवी चैनलों, और शहर भर में होर्डिंग्स के माध्यम से लाखों-करोड़ों खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। “जागरूकता के नाम पर केवल धन की बंदरबांट हो रही है, सरकार की नीति स्पष्ट नहीं है,” उन्होंने जोड़ा।
स्वास्थ्य बनाम राजस्व – सरकार का असमंजस
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि शराब, तंबाकू और धूम्रपान सभी ही स्वास्थ्य के लिए घातक हैं और इनसे समाज में अपराध, घरेलू हिंसा, दुर्घटनाओं और मानसिक बीमारियों में बढ़ोतरी होती है। ऐसे में जब सरकार एक ओर इनसे लड़ने का दावा करती है और दूसरी ओर राजस्व बढ़ाने के नाम पर इन्हीं पदार्थों की बिक्री को बढ़ावा देती है, तो यह नीति सवालों के घेरे में आ जाती है।
जनता की ओर से भी उठने लगे हैं सवाल
पाकुड़ जिले सहित झारखंड भर में स्थानीय ग्रामीणों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी इस नीति को लेकर विरोध जताना शुरू कर दिया है। कई लोगों का मानना है कि अगर गांव में शराब दुकानें खुलेंगी, तो नवजवानों और गरीब वर्ग पर इसका सबसे बुरा असर पड़ेगा।
आजसू पार्टी ने मांग की है कि सरकार को तुरंत इस नई शराब नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए और यदि नशा मुक्त झारखंड बनाना है, तो शराब की बिक्री पर भी प्रतिबंध लगाना चाहिए।
आजसू की चेतावनी और सरकार से स्पष्ट नीति की मांग
आलमगीर आलम ने अंत में सरकार को चेताते हुए कहा कि यदि नीति स्पष्ट नहीं हुई तो जनता के बीच जाकर विरोध प्रदर्शन किया जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार की नीति में पारदर्शिता और नैतिकता होनी चाहिए।
“जागरूकता अभियान के नाम पर कोरी प्रचारबाजी और शराब से मुनाफा कमाने की कोशिश, झारखंड की जनता बर्दाश्त नहीं करेगी,” ऐसा कहते हुए उन्होंने सरकार से इस दोहरे रवैये पर जवाब मांगा।
हेमंत सरकार की शराब नीति और नशा मुक्ति अभियान के बीच का विरोधाभास अब खुलकर सामने आने लगा है। जनता और विपक्ष दोनों यह सवाल कर रहे हैं कि आखिर सरकार राजस्व बढ़ा रही है या समाज सुधार रही है? अब देखना यह है कि सरकार इन सवालों का क्या जवाब देती है या फिर एक और नीति केवल कागजों तक ही सीमित रह जाएगी।