पाकुड़ । 1697 ई० में राजा पृथ्वी चंद्र शाही के समय प्रारंभ हुई रथयात्रा आज भी पूरे रीति-रिवाज के साथ जारी है। राजपाट के स्थान बदले, कई उथल-पुथल हुये, कई पीढ़ियाँ गुजर गई, समाज में बहुतेरे बदलाव आये लेकिन रथयात्रा पिछले लगभग 325 वर्षों से ईश्वर की असीम अनुकंपा और समाज के सक्रिय सहयोग से बदस्तूर चलती आ रही है।
पहले यह रथ नीम की लकड़ी का हुआ करता था। वर्ष 1929 में श्रद्धेय स्वर्गीय रानी ज्योतिर्मयी देवी ने वर्तमान के पीतल के रथ पर पहली बार राधा रानी और भगवान मदनमोहन को विराजमान किया था। आरम्भ से ही पहाड़िया समाज के सनातनी रथयात्रा में सक्रिय रूप से हिस्सा लेते रहे हैं। वर्तमान में “रानी ज्योतिर्मयी देवी देवोत्तर इस्टेट” के सेवायतगण मीरा प्रवीण सिंह, देब मोहन, अमित पांडेय, अभिजीत पांडेय और अरिजीत पांडेय के द्वारा पूजा-अर्चना की सारी व्यवस्था की जाती है।
पूजा-अर्चना का कार्य पंडित भरत भूषण मिश्र संपन्न करवाते हैं। वर्तमान में राधा रानी और भगवान मदनमोहन कि रथयात्रा राजापाड़ा स्थित माँ नित्यकाली मंदिर से निकलकर राजापाड़ा, हाटपाड़ा, मुख्य सड़क होते हुये बिल्टू स्कूल तक जाती है और फिर उसी मार्ग से वापस होते हुए कालीबाड़ी पहुँचती है।
रानी ज्योतिर्मयी देवी के समय कि तस्वीरें
इसके बाद राधा रानी और भगवान मदनमोहन कालीबाड़ी स्थित रंगमहल में विराजमान हो जाते हैं। अगले आठ दिनों तक रंगमहल में ही वे विश्राम करने के बाद वापस वे अपने प्रासाद, जो राजबाड़ी के प्रांगण में स्थित है, में विराजमान हो जाते हैं। पाकुड़ की धरती भगवान मदनमोहन की धरती के रूप में जानी जाती है।
इस शुभ अवसर पर देवोत्तर के सेवायतगणों ने सभी को रथयात्रा की हार्दिक शुभकामनाएँ दी हैं और यह कामना की है कि भगवान सभी पाकुड़ वासियों सहित सभी का मंगल करें।