🍵 चाय की दुकान से शुरू हुआ सिस्टम का सफर
कभी आपने सोचा है कि एक साधारण सी चाय की दुकान हमारी शिक्षा व्यवस्था की वर्तमान स्थिति को कैसे बयान कर सकती है? झारखंड प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के वरिष्ठ सदस्य रामरंजन कुमार सिंह ने इसी से शुरुआत करते हुए हास्य में लिपटा गूढ़ संदेश दिया है, जो सोचने पर मजबूर कर देता है।
उनकी नजर में एक समय था जब चाय की दुकान पर सिर्फ ‘एक नम्बर चाय’ मिलती थी। फिर धीरे-धीरे उसमें बिस्कुट, मठरी, टोस्ट, सिगरेट, गुटका, कोल्ड ड्रिंक, चिप्स, नमकीन, और अंततः दवाइयाँ भी जुड़ गईं। पर नतीजा? चाय की गुणवत्ता गिर गई और ग्राहक भागने लगे। अब दुकान में चाय छोड़कर सब कुछ है, पर चाय नहीं!
यह चाय की दुकान नहीं, हमारे विद्यालय हैं!
रामरंजन सिंह ने इस उदाहरण के जरिए स्कूलों की मौजूदा दशा पर कटाक्ष किया —
“सलाह देने वाले हजारों हैं, लेकिन धरातल पर काम करने वाला कोई नहीं।”
हर कोई शिक्षकों को दिशा दिखा रहा है — कोई कहता है “ऐसे पढ़ाओ”, कोई “ऐसे चलाओ”, कोई “ऐसे बंद कर दो”! लेकिन जब बात असल में सहयोग करने की आती है, तो सब गायब हो जाते हैं। ठीक वैसे ही जैसे सलाह देने वाला ग्राहक, जिसने सिर्फ कोल्ड ड्रिंक ली और कहा – “भाई चिप्स भी रख लो।”
कोर्ट का फैसला और ‘गले की फाँस’
रामरंजन सिंह कहते है, 02 मई 2025 को झारखंड उच्च न्यायालय, रांची में रिट याचिका WP(C) 5455/2019 पर फैसला आया।
मुद्दा था – विद्यालयों की ज़मीन।
फैसला आया, लेकिन समस्या ज्यों की त्यों रह गई — जैसे गले में फँसी हड्डी।
अब हर स्कूल संचालक चाय की दुकान वाले दुकानदार की तरह परेशान है –
“अब क्या बेचना है, अब क्या बचाना है?”
सलाह का बोझ और सहयोग की कमी
रामरंजन सिंह कहते हैं –
“स्वयं को और परिवार को छोड़कर, सार्वजनिक जीवन के लिए कोई त्याग नहीं करना चाहता।”
संयुक्त परिवार की तरह स्कूल यूनियन भी बिखर चुकी है।
हर कोई अलग-अलग चाय की दुकान चला रहा है – कोई प्ले स्कूल बेच रहा है, कोई सीबीएसई, कोई गुटका सरीखा अस्थायी सर्टिफिकेट।
ONE STATE ONE UNION की वकालत
समाधान क्या है?
“ONE STATE ONE UNION” – एक ऐसी पहल, जो सभी निजी स्कूल संगठनों को एक मंच पर लाने की बात करती है।
रामरंजन सिंह इसे राजनीतिक दलों से जोड़ते हैं —
जैसे एक पार्टी चुनाव जीतकर शासन चलाती है, वैसे ही एक यूनियन को चुनाव के माध्यम से अधिकृत कर, उसे सभी स्कूलों की समस्याओं पर काम करने का संवैधानिक अधिकार दिया जाए।
“आप जिस भी यूनियन से जुड़े हों, जुड़े रहिए,
लेकिन सबका साझा मंच बनाइए।”
अब भी समय है — इलाज शुरू कीजिए, वरना ‘चाय’ गायब हो जाएगी!
रामरंजन सिंह ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि –
“अगर हम अभी भी एक मंच पर नहीं आए, तो फिर स्कूलों का हाल उस चाय दुकान से बेहतर नहीं रहेगा जिसमें अब चाय ही नहीं बिकती!”
अगला कदम क्या?
- बैठक जल्द बुलाने की अपील।
- चुनाव या मनोनयन के माध्यम से एक पैनल गठन की पहल।
- सभी स्कूल यूनियनों का समन्वय।
- समस्याओं का एकीकृत समाधान।
चाय का प्याला ठंडा होने से पहले मिल बैठिए!
रामरंजन सिंह कहते है कि यह सिर्फ स्कूलों की बात नहीं, समाज की मानसिकता का भी दर्पण है। अब समय आ गया है कि सभी संचालक, सभी यूनियन मतभेद भुलाकर, विचारों का सम्मान करते हुए, एक झंडे तले आएं।
वरना “चाय” हाथ से निकल जाएगी… और हम सिर्फ टोस्ट और गोली बेचते रह जाएंगे! ☕