झारखंड के निर्माता दिशोम गुरु शिबू सोरेन का निधन: प्रदेश में शोक की लहर
पाकुड़। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री, राज्यसभा सांसद और झारखंड आंदोलन के प्रणेता दिशोम गुरु शिबू सोरेन के निधन से पूरे प्रदेश में शोक की लहर दौड़ गई है। उनके निधन की खबर मिलते ही आम से लेकर खास तक हर कोई स्तब्ध रह गया। इस दुखद अवसर पर झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के पूर्व केंद्रीय समिति सदस्य शाहिद इकबाल ने गहरी संवेदना व्यक्त की है।
शाहिद इकबाल बोले – गुरुजी का जाना अपूरणीय क्षति
शाहिद इकबाल ने शोक व्यक्त करते हुए कहा, “हम सबों के बीच से गुरुजी का जाना गहरा आघात है। यह सिर्फ एक नेता की नहीं, बल्कि एक युग की विदाई है। उनके निधन से जो खालीपन पैदा हुआ है, उसकी पूर्ति कर पाना असंभव है।” उन्होंने कहा कि दिशोम गुरु ने झारखंड की जनता के लिए अपने जीवन का हर क्षण समर्पित कर दिया।
झारखंड राज्य की स्थापना के लिए जीवनभर संघर्ष किया
शाहिद इकबाल ने भावुक होते हुए कहा कि “गुरुजी ने अपना सब कुछ न्योछावर कर झारखंड अलग राज्य की लड़ाई लड़ी। उनकी यह लड़ाई केवल राजनीतिक नहीं थी, बल्कि यह झारखंड की अस्मिता, अधिकार और पहचान की लड़ाई थी।” उन्होंने आगे कहा, “अंततः इस लड़ाई में उनकी जीत हुई और वर्ष 2000 में झारखंड राज्य का निर्माण हुआ। आज यदि झारखंड नाम का राज्य है तो वह दिशोम गुरु की तपस्या और बलिदान का प्रतिफल है।”
जनआंदोलन से निकला जननायक
झामुमो की स्थापना को याद करते हुए शाहिद इकबाल ने कहा, “झारखंड मुक्ति मोर्चा की नींव एक जनआंदोलन की उपज थी। उस समय दिशोम गुरु ने जिस तरह से नौजवानों, आदिवासियों, किसानों, अल्पसंख्यकों और छात्रों को इस आंदोलन से जोड़ा, वह अपने आप में ऐतिहासिक है।” उन्होंने कहा कि गुरुजी के नेतृत्व में झारखंड आंदोलन ने नई ऊंचाइयों को छुआ और देशभर में आदिवासी अस्मिता की आवाज गूंजने लगी।
आदिवासी अस्मिता के सबसे सशक्त प्रहरी थे
दिशोम गुरु केवल एक नेता नहीं बल्कि आदिवासी अस्मिता के प्रतीक, मजदूरों के मसीहा और शोषितों की आवाज थे। शाहिद इकबाल ने कहा, “वह पीड़ितों की सबसे मुखर आवाज थे। उन्होंने हमेशा अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ी और कमजोर वर्गों को न्याय दिलाने के लिए संसद से सड़क तक संघर्ष किया। उनकी उपस्थिति ही समाज के हाशिये पर खड़े लोगों के लिए संबल थी।”
मिट्टी की आवाज थे दिशोम गुरु
शाहिद इकबाल ने कहा, “झारखंड की इस पावन मिट्टी का ऋण कभी समाप्त नहीं होता, और शिबू सोरेन इस मिट्टी की सच्ची आवाज थे।” उन्होंने कहा कि उनका जीवन एक प्रेरणा स्रोत है और उनकी विचारधारा को आगे बढ़ाना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
झारखंड को अपूरणीय क्षति
शाहिद इकबाल ने शोक व्यक्त करते हुए कहा, “गुरुजी के निधन से झारखंड को जो क्षति हुई है, उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। यह सिर्फ एक नेता की मृत्यु नहीं, बल्कि एक आंदोलन की आत्मा का शांत हो जाना है।”
ईश्वर से प्रार्थना
अंत में उन्होंने कहा, “ईश्वर से यही प्रार्थना है कि वह दिशोम गुरु को अपने चरणों में स्थान दें और उनके परिजनों को इस असीम दुख को सहने की शक्ति प्रदान करें।”
झारखंड की राजनीति, संस्कृति और इतिहास में दिशोम गुरु शिबू सोरेन का योगदान सदैव अमर रहेगा। उनका जीवन आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरित करता रहेगा।