छोटीअलीगंज में आयोजित हुआ भव्य कर्मा पूजा कार्यक्रम
पाकुड़ जिले के छोटीअलीगंज में सोमवार को कर्मा पूजा के अवसर पर एक भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस अवसर पर पूर्व एनडीए प्रत्याशी और समाजसेवी अजहर इस्लाम को विशेष आमंत्रण पर बुलाया गया था। ग्रामीणों ने उन्हें आत्मीय भाव से स्वागत करते हुए प्यार, सम्मान और आशीर्वाद दिया।
समाजसेवी ने व्यक्त की भावनाएं
अजहर इस्लाम ने इस मौके पर कहा कि यह केवल एक बुलावा नहीं था, बल्कि एक परिवार जैसा अपनापन था। उन्होंने कहा कि कर्मा पूजा हमारी संस्कृति, परंपरा और प्रकृति से जुड़ी आस्था का प्रतीक है। यह पर्व समाज में भाईचारा और सौहार्द बनाए रखने का संदेश देता है।
कर्मा पूजा का महत्व
कर्मा पूजा को लेकर समाजसेवी ने विस्तार से बताया कि यह पर्व हमें कई महत्वपूर्ण जीवन मूल्यों की शिक्षा देता है।
- पेड़ लगाओ, प्रकृति से प्रेम करो
- भाईचारा निभाओ, रिश्तों की कद्र करो
- कर्म करो और समाज की सेवा करो
उन्होंने कहा कि कर्मा देवता की पूजा केवल धार्मिक आस्था नहीं, बल्कि पर्यावरण और सामाजिक सरोकारों से गहराई से जुड़ी हुई है।
संकल्प लिया समाज और पर्यावरण के प्रति
अजहर इस्लाम ने कार्यक्रम में यह संकल्प लिया कि वे अपने क्षेत्र में:
- पर्यावरण की रक्षा करेंगे
- सामाजिक सौहार्द को बढ़ावा देंगे
- हर जरूरतमंद के साथ खड़े रहेंगे
उन्होंने कहा कि समाज की सेवा करना उनका कर्तव्य है और वे हमेशा इसके लिए प्रतिबद्ध रहेंगे।
कर्मा देवता से प्रार्थना
उन्होंने कर्मा देवता से प्रार्थना की कि समाज में हमेशा सौहार्द, भाईचारा और शांति बनी रहे। साथ ही, उन्होंने सभी के जीवन में सुख और समृद्धि की कामना की।
जनता में दिखा उत्साह
कर्मा पूजा के अवसर पर बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे। ग्रामीणों और कार्यकर्ताओं ने बताया कि अजहर इस्लाम जैसे जनप्रतिनिधियों का जुड़ाव त्योहारों से समाज में सकारात्मक संदेश देता है। लोगों ने इस अवसर को सामाजिक एकजुटता और सांस्कृतिक पहचान को और मजबूत करने वाला बताया।
झारखंड की सांस्कृतिक धरोहर
गौरतलब है कि कर्मा पूजा झारखंड की प्रमुख सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा है, जो प्रकृति, पेड़ों और भाईचारे के महत्व को उजागर करती है। इस पर्व में महिलाएं और पुरुष सामूहिक रूप से कर्मा वृक्ष की पूजा कर समाज और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
स्थानीय लोगों की प्रतिक्रियाएं
- गांव की बुजुर्ग महिलाओ ने कहा, “कर्मा पूजा हमारे जीवन की पहचान है। जब नेता और समाजसेवी हमारे साथ बैठकर इस पर्व को मनाते हैं तो हमें लगता है कि हमारी संस्कृति को असली सम्मान मिल रहा है।”
- स्थानीय युवको ने कहा, “हमारे बीच अजहर इस्लाम का आना यह बताता है कि समाज और राजनीति को साथ लेकर चलना जरूरी है। उनकी बातें युवाओं के लिए प्रेरणा हैं।”
- महिला समूह की सदस्यों ने कहा, “कर्मा पूजा हमें प्रकृति से जोड़ता है। यदि हर नेता इस पर्व का संदेश अपनाए तो समाज में सद्भाव और पर्यावरण दोनों की रक्षा होगी।”
कर्मा पूजा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
इतिहासकारों और सांस्कृतिक विशेषज्ञों के अनुसार, कर्मा पूजा सदियों से झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार और ओडिशा जैसे राज्यों में आदिवासी समुदायों द्वारा मनाई जाती रही है। इस पर्व का नाम “कर्मा” वृक्ष से लिया गया है, जिसे जीवन, समृद्धि और भाईचारे का प्रतीक माना जाता है।
मान्यता है कि इस वृक्ष की पूजा करने से परिवार और समाज में खुशहाली, एकजुटता और समृद्धि आती है। यही कारण है कि इस पर्व में गाए जाने वाले पारंपरिक गीत, नृत्य और कर्मा कथा समाज को उसकी जड़ों और संस्कृति से जोड़ते हैं।
संस्कृति और आधुनिकता का संगम
आज के बदलते समय में भी कर्मा पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक एकता का संदेश देने वाला उत्सव बन गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस पर्व के जरिए आने वाली पीढ़ियों को प्रकृति, भाईचारे और सामुदायिक जीवन का महत्व सिखाया जाता है।
📌 फैक्ट बॉक्स : कर्मा पूजा एक नजर में
🗓 कब मनाई जाती है?
- भाद्रपद माह (अगस्त–सितंबर) में एकादशी के दिन
- खासतौर पर सोमवार या मंगलवार को इसका विशेष महत्व माना जाता है।
👥 कौन मनाते हैं?
- झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार, ओडिशा और मध्यप्रदेश के आदिवासी एवं मूलवासी समुदाय
- खासकर मुण्डा, उरांव, संथाल और हो जनजाति के बीच यह प्रमुख त्योहार है।
🌿 प्रमुख अनुष्ठान
- कर्मा वृक्ष की शाखा लाकर पूजा स्थल पर स्थापित की जाती है।
- महिलाएं व पुरुष पारंपरिक गीत और नृत्य के साथ पूरी रात जागरण करते हैं।
- परिवार और समाज की सुख-समृद्धि और भाईचारे की कामना की जाती है।
✨ महत्व
- प्रकृति संरक्षण और पर्यावरण प्रेम का संदेश
- सामाजिक एकजुटता और भाईचारा बढ़ाने की परंपरा
- कर्म और सेवा भाव के जरिए जीवन को सकारात्मक दिशा देने की प्रेरणा