पांच दिवसीय विशेष अभियान में कानूनी विवादों का सौहार्दपूर्ण समाधान
पाकुड़। झारखंड विधिक सेवा प्राधिकरण के निर्देश पर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) द्वारा 17 मार्च से 21 मार्च, 2025 तक विशेष मध्यस्थता अभियान चलाया गया। इस अभियान के तहत 13 मामलों का समाधान किया गया, जबकि 7 जोड़ों को दोबारा मिलाया गया, जो विभिन्न पारिवारिक विवादों के कारण अलग हो गए थे।
दहेज प्रताड़ना के मामले में हुआ सुलह
एक महिला ने अपने पति पर दहेज के लिए अत्याचार करने का आरोप लगाते हुए पारिवारिक न्यायालय में मामला दर्ज कराया था और गुजारा भत्ता की मांग की थी। इस मामले में लंबी बातचीत और मध्यस्थों के प्रयासों के बाद पति-पत्नी एक साथ रहने के लिए सहमत हो गए। उन्होंने यह फैसला अपने 1 साल 6 महीने के बेटे के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए लिया।
प्रेम विवाह को मिला परिवार का साथ
एक अन्य मामले में, एक महिला ने भरण-पोषण के लिए मामला दायर किया था। उनकी शादी 22 मार्च 2024 को हुई थी, जो प्रेम विवाह था। लेकिन लड़के के माता-पिता इस रिश्ते को स्वीकार नहीं कर रहे थे। पारिवारिक न्यायालय के न्यायाधीश के निर्देश पर मामले को मध्यस्थता के लिए भेजा गया। कई दौर की बातचीत और समझौते के बाद, अंततः लड़के के माता-पिता ने अपनी बहू को स्वीकार कर लिया।
चार साल से अलग रह रहे दंपति का पुनर्मिलन
तीसरे मामले में, पति-पत्नी पिछले 4 वर्षों से अलग रह रहे थे। महिला ने अपने पति के खिलाफ भरण-पोषण का मामला दायर किया था। उनके दो बच्चे भी थे, लेकिन पत्नी अपने मायके जाने को तैयार नहीं थी। पारिवारिक न्यायालय के न्यायाधीश के मार्गदर्शन में हुए विशेष मध्यस्थता अभियान में दोनों पक्षों के बीच सुलह कराई गई, जिसके बाद दंपति अपने बच्चों के साथ रहने के लिए राजी हो गए।
दहेज प्रताड़ना के कारण अलग हुए दंपति फिर हुए एक
एक अन्य मामले में, 2015 में शादीशुदा एक महिला को दहेज की मांग के कारण प्रताड़ित किया जा रहा था। दोनों पति-पत्नी एक साल से अलग रह रहे थे और उनके दो बच्चे भी थे। लगातार मध्यस्थता प्रयासों और सुलह-समझौते के बाद, दंपति अपने बच्चों के साथ फिर से एक हो गया।
सात साल से चले आ रहे विवाद का हुआ समाधान
सबसे चर्चित मामला सात साल पहले शादीशुदा एक दंपति का था, जो पिछले साल मामूली विवाद के कारण अलग हो गए थे। पति ने पत्नी को वापस लाने के कई प्रयास किए लेकिन असफल रहा, जिसके बाद उसने वैवाहिक अधिकार की बहाली के लिए पारिवारिक न्यायालय में मामला दायर किया। मामला मध्यस्थता के लिए भेजा गया, लेकिन शुरुआत में कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला। हालांकि, पारिवारिक न्यायालय के न्यायाधीश ने आशा नहीं छोड़ी और अंततः दंपति को सुलह के लिए तैयार कर लिया। इस प्रकार, वे पति-पत्नी के रूप में फिर से एक साथ रहने के लिए सहमत हो गए।
माल्यार्पण और मिठाई बांटकर किया पुनर्मिलन का जश्न
सभी सुलह हुए जोड़ों ने एक-दूसरे को माला पहनाई और प्रशासनिक अधिकारियों तथा परिवार के सदस्यों की उपस्थिति में मिठाई बांटी। इस मौके पर प्रधान जिला न्यायाधीश, प्रधान न्यायाधीश, पारिवारिक न्यायालय, सचिव डीएलएसए, पाकुड़ सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित थे।
240 पारिवारिक मामले लंबित, मध्यस्थता से हो सकता है समाधान
पाकुड़ पारिवारिक न्यायालय में कुल 240 पारिवारिक विवाद लंबित हैं। इस विशेष मध्यस्थता अभियान में कुल 37 मामलों को लिया गया, जिनमें से 13 मामलों का सफल समाधान किया गया और 7 जोड़ों को पुनः एक किया गया।
न्यायाधीशों और डीएलएसए सचिव का बयान
पाकुड़ के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश शेष नाथ सिंह ने कहा,
“यह अभियान दर्शाता है कि किस प्रकार मध्यस्थता के माध्यम से पारिवारिक विवादों को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाया जा सकता है। यह कानूनी व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।”
पारिवारिक न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश सुधांशु कुमार शशि ने कहा,
“जब हम सुलह-समझौते और मध्यस्थता के जरिए दंपतियों को फिर से एक कर पाते हैं, तो हमें संतोष और खुशी मिलती है। अहंकार, लालच, छोटी-छोटी असहमति और परिवार के बड़े सदस्यों का हस्तक्षेप, पति-पत्नी के बीच विवाद के मुख्य कारण होते हैं। हमारा लक्ष्य इन विवादों को सौहार्दपूर्ण तरीके से हल करना है।”
डीएलएसए सचिव अजय कुमार गुरिया ने कहा,
“डीएलएसए नि:शुल्क मार्गदर्शन और परामर्श प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है ताकि वैवाहिक विवादों को सामूहिक प्रयासों से हल किया जा सके। वकीलों और मध्यस्थों की मदद से कई परिवारों को फिर से जोड़ा जा सकता है।”
मध्यस्थों और वकीलों के प्रति आभार
कार्यक्रम के समापन पर सचिव, डीएलएसए, पाकुड़ ने सभी मध्यस्थों, वकीलों और कर्मचारियों के प्रति आभार व्यक्त किया, जिनके सहयोग से यह विशेष मध्यस्थता अभियान सफल हुआ।
इस विशेष मध्यस्थता अभियान ने पाकुड़ में कानूनी प्रक्रिया के एक प्रभावी और मानवीय पक्ष को उजागर किया। इस अभियान से न केवल कई मामलों का समाधान हुआ, बल्कि टूटते हुए रिश्तों को फिर से जोड़ा गया। मध्यस्थता प्रक्रिया कानूनी विवादों को हल करने का एक सशक्त माध्यम बनकर उभर रही है, जिससे न्यायपालिका पर बढ़ते मामलों का दबाव कम हो सकता है।