हेमंत सोरेन की पहल ने बनाई राष्ट्रीय बहस की दिशा
जातिगत जनगणना की मांग को लेकर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की ओर से 26 सितंबर 2021 को उठाया गया कदम अब एक ऐतिहासिक जीत के रूप में सामने आया है। वरिष्ठ झामुमो कार्यकर्ता दानिएल किस्कू ने इस मुद्दे पर बोलते हुए कहा कि यह कोई साधारण कदम नहीं था, बल्कि एक ऐसे आंदोलन की नींव थी, जिसमें वर्षों से हाशिए पर रखे गए समाज के वंचित वर्गों की आवाज़ शामिल थी। उन्होंने याद दिलाया कि 26 सितंबर 2021 को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात कर प्रधानमंत्री के नाम एक ज्ञापन सौंपा था, जिसमें जातिगत आधार पर जनगणना की मांग प्रमुखता से उठाई गई थी।
सामाजिक न्याय की दिशा में एक निर्णायक कदम
मुख्यमंत्री का तर्क था कि एसटी, एससी और पिछड़ा वर्ग आज भी कई सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि “सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास” का नारा तभी साकार होगा जब जातिगत जनगणना के जरिए सभी वर्गों को उनकी हिस्सेदारी और भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी। उनके अनुसार, जब तक जाति आधारित जनसंख्या का सटीक आंकलन नहीं होगा, तब तक नीतियों का प्रभावी क्रियान्वयन संभव नहीं है।
जनगणना नहीं, यह एक जनांदोलन की जीत है
दानिएल किस्कू ने इस निर्णय को केवल एक आंकड़ा संग्रहण की प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक जनांदोलन की जीत बताया। उन्होंने कहा कि यह उन लाखों लोगों की जीत है जिन्हें दशकों से हाशिए पर रखा गया और जिनकी पहचान को नकारा गया। यह उन गरीबों, मजदूरों, पिछड़ों और वंचितों की आवाज है जिन्हें वर्षों से सामाजिक न्याय से वंचित रखा गया। उन्होंने कहा, “जब तक जातिगत जनगणना नहीं होती, तब तक इन वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व और न्याय नहीं मिल सकता।”
झारखंड की आवाज़ ने बनाई राष्ट्रीय नीति
झामुमो कार्यकर्ता ने केंद्र सरकार के जातिगत जनगणना कराने के फैसले को झारखंड की मजबूत आवाज़ का परिणाम बताया। उन्होंने कहा कि यह लड़ाई झारखंड की धरती से शुरू हुई, जहाँ के लोगों ने दशकों से अपनी पहचान की लड़ाई लड़ी है। उन्होंने कहा, “आज जब केंद्र ने इस दिशा में निर्णय लिया है, तो यह एक राजनीतिक और सामाजिक बदलाव का संकेत है, जिसमें झारखंड की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।”
गुमनाम समाज को मिला सम्मान
दानिएल किस्कू ने जोर देते हुए कहा कि यह जीत केवल नीति परिवर्तन नहीं है, बल्कि समाज के उस हिस्से की बहादुरी और संघर्ष का सम्मान है, जिसे अब तक गुमनाम रखा गया। उन्होंने कहा कि आज पहली बार इन वर्गों को उम्मीद की किरण दिखाई दी है कि उनकी स्थिति में सुधार संभव है। उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को इस लड़ाई का प्रेरणास्रोत बताते हुए कहा कि उनके नेतृत्व और संकल्प ने जातिगत जनगणना को एक राष्ट्रीय एजेंडा बना दिया।
अब उम्मीद जगी है, बदलाव का समय है
दानिएल किस्कू का मानना है कि यह केवल शुरुआत है। उन्होंने कहा कि अब वक्त आ गया है कि इस जनगणना के आधार पर नीतियों और योजनाओं का निर्माण हो, ताकि पिछड़े वर्गों को वास्तविक अधिकार और अवसर मिल सकें। उन्होंने आशा जताई कि आने वाले दिनों में झारखंड एक आदर्श उदाहरण बनेगा, जहाँ से देश को सामाजिक न्याय और समानता की राह दिखाई जाएगी।