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रुपांशु चौधरी/हजारीबाग. गंगा जमुनी तहजीब की अगर मिसाल देखनी है तो आपको झारखण्ड के हजारीबाग जिले से 7 किलोमीटर दूर जलमा गांव आना होगा. यहां के अंतु साव धर्म, जाति, संप्रदाय को दूर रखकर अपने परिवार के साथ मोहर्रम की तैयारी में जुटे हैं. हजारीबाग में हसन-हुसैन की शहादत का मातमी त्योहार मुहर्रम का महीना आते ही अंतू साव की तजिया का जिक्र होना शुरू हो जाता है.
मुहर्रम के त्यौहार के दौरान अंतू साव और उनका परिवार गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल कायम करता है. जलमा गांव में मुहर्रम का जब ताजिया निकलता है, तो सबसे पहले अंतु साव के घर के सामने फातिहा पढ़ा जाता है. अंतु साव के ताजिया के पीछे-पीछे पूरे जलमा गांव का ताजिया निकलता है. अंतु बताते है उनके यहां यह प्रथा पिछले 150 साल से है. अंतु चौथी पीढ़ी है जो इसे निभा रहे है. इस ताजिया को बनाने में अंतु का पूरा परिवार शामिल रहता है. यह ताजिया गांव में घूमने के बाद कर्बला तक पहुंचता है.
चार पीढ़ियों से वे लोग ताजिया बना रहे हैं
अंतु साव कहते हैं कि इसकी शुरुआत पूर्वजों ने किस कारण से किया था ये अस्पष्ट नहीं है. लेकिन ये देख कर शुकून है कि उनका गांव जलमा पूरे देश को आपसी गंगा जमुनी तहजीब का पाठ पढ़ाता है. उनका ताजिया आपसी भाईचारा का संदेश है. चार पीढ़ियों से वे लोग ताजिया बना रहे हैं. अब उनके बच्चे ताजिया बनाना सीख रहे हैं. वे लोग सिर्फ ताजिया बनाते ही नहीं हैं, बल्कि मुहर्रम के मौके पर ताजिया मिलान में मुसलमान भाइयों के संग शरीक भी होते हैं. अंतु आगे बताते है कि अभी घर के बच्चे भी ताजिया बनाना सीख रहे है. आगे चलकर उन्हें भी ये परम्परा निभानी है. एक ताजिया को बनाने में लगभग 25000 का खर्च आता है.
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FIRST PUBLISHED : July 27, 2023, 14:25 IST
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