ऐतिहासिक धरोहर से जुड़ा पर्व
विजयादशमी महोत्सव का आयोजन बड़कागढ़ रियासत, हटियागढ़ में हर साल की तरह इस बार भी भव्य तरीके से किया गया। यह परंपरा अमर शहीद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के समय से ही चली आ रही है। कहा जाता है कि उस दौर से ही बड़कागढ़ रियासत के ग्रामीण और गणमान्य लोग मिलकर इस पर्व को बड़े उल्लास के साथ मनाते आ रहे हैं।
मां भगवती चिंतामणि की पूजा
परंपरा के अनुसार सबसे पहले मां भगवती चिंतामणि की पूजा-अर्चना की जाती है। ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के समय से ही विजयादशमी के दिन विशेष पूजा की परंपरा रही है। पूजा के उपरांत प्रसाद तैयार किया जाता है और उपस्थित सभी गणमान्य व्यक्तियों एवं ग्रामीणों को प्रसाद ग्रहण कराया जाता है। इस अवसर पर एक-दूसरे को विजयादशमी की शुभकामनाएं दी जाती हैं और पान खिलाकर सम्मानपूर्वक विदाई दी जाती है।
अपराजिता बांधने की परंपरा
इस महोत्सव की विशेषता है अपराजिता बांधने की परंपरा। राजपुरोहित सदन गोपाल शर्मा ने राज परिवार के सभी सदस्यों को अपराजिता बांधा। परंपरा के अनुसार, परिवार की बहू और बेटियों के घर जाकर भी राजपुरोहित अपराजिता बांधते हैं और उन्हें “सौभाग्यवती भव” एवं “विजयी भव” का आशीर्वाद देते हैं। यह अनूठी परंपरा परिवार और समाज में शुभता, सौभाग्य और विजय का संदेश देती है।
रावण वध की स्मृति से जुड़ा पर्व
इस अवसर पर उपस्थित लोगों को बताया गया कि विजयादशमी का महत्व भगवान राम द्वारा रावण वध से जुड़ा है। मान्यता है कि भगवान राम ने नवरात्र के नौ दिनों तक मां दुर्गा की उपासना की थी और दसवें दिन रावण का वध कर बुराई पर अच्छाई की विजय प्राप्त की थी। तभी से दशहरा पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई, जो आज भी लोगों को धर्म और पराक्रम का संदेश देती है।
उत्तराधिकारी ने किया आयोजन
इस वर्ष भी इस ऐतिहासिक परंपरा को जीवंत रखते हुए बड़कागढ़ रियासत के उत्तराधिकारी राजेशनाथ शाहदेव ने अपने हटिया स्थित निवास पर विजयादशमी महोत्सव का आयोजन किया। पूरे नौ दिन तक मां चिंतामणि की विशेष आराधना की गई और दशमी तिथि पर दशहरा मिलन समारोह मनाया गया। इस अवसर पर सभी ग्रामीणों और गणमान्य व्यक्तियों ने प्रसाद ग्रहण किया और पान खाने के बाद सम्मानपूर्वक विदा हुए।
गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति
समारोह में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। मुख्य रूप से लाल सचिंद्र देव, मीरा देवी, राखी शाहदेव, रेखा देव, सदन गोपाल शर्मा, सुषमा शाहदेव, बिपिन कुमार, लाल धर्मेंद्र देव, शैलेंद्र शाहदेव, लाल सुरेंद्र देव (सोनू), शान प्रताप, मयंक प्रताप, भीखम उरांव, अंकित उरांव, महेंद्र लोहारा, शुभम कुमार सिंह, रितेश कुमार सिंह, सतनारायण सिंह, राजेश साहू, विक्रम लोहारा, टिंकू उरांव, बसंत लोहारा, रामबृषक महतो, बिरसा महतो समेत अनेक गणमान्य और ग्रामीण मौजूद रहे।
सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व
यह आयोजन न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि यह सामाजिक एकता और सांस्कृतिक धरोहर को भी जीवित रखने का कार्य करता है। विजयादशमी महोत्सव हर साल लोगों को जोड़ता है और परंपरा के साथ-साथ गौरवशाली इतिहास की याद भी दिलाता है।
👉 इस प्रकार बड़कागढ़ रियासत का विजयादशमी महोत्सव केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और सामाजिक सद्भाव का प्रतीक बन चुका है।