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मो. सरफराज आलम/सहरसा. कहते हैं प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती है. एक ना एक दिन प्रतिभा में निखार सामने आ ही जाता है. सहरसा के रोहित झा भी ऐसे ही प्रतिभावान युवा हैं, जो देशभर में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में शामिल होकर शास्त्रीय नृत्य कला से लोगों को रूबरू करा रहे हैं. दरअसल, शास्त्रीय नृत्य कला को लोग अब भूलते जा रहे हैं. लेकिन शास्त्रीय नृत्य व संगीत के प्रति घटते रुझान से कला प्रेमियों को भी बहुत मायूसी हो रही है. ऐसे में सहरसा के एक कला प्रेमी युवा रोहित झा के साथ कत्थक का नाम जुड़ गया है. रोहित अपनी परंपराओं का पक्ष लेकर कत्थक की शैली को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं.
रोहित बताते हैं कि पटना में उनकी मुलाकात पद्मश्री बिरजू महाराज से हुई थी. तब उनसे काफी कुछ सीखने को मिला था. हालांकि वे अब इस दुनिया में नहीं है. उनके निधन से शास्त्रीय नृत्य के खाली हुए स्थान को कभी नहीं भरा जा सकता है. रोहित इस तरह से नृत्य करते हैं कि सामने वाला हर कोई उसका फैन हो जाता है.रोहित बताते हैं कि कत्थक सीखने के लिए गुरु की आवश्यकता होती है. यह एक ऐसा नृत्य है जो यूट्यूब और वीडियो देख कर नहीं सीखा जा सकता है. वे कहते हैं कि अब धीरे-धीरे उन्हें भी कोशी महोत्सव, उग्रतारा महोत्सव के साथ बिहार से बाहर अहमदाबाद, बेंगलुरु, पश्चिम बंगाल, दिल्ली में आयोजित फागुन महोत्सव में अपना हुनर दिखाने का मौका मिल रहा है.
2013 में शुरू हुई सीखने की जिज्ञासा
रोहित बताते हैं कि वर्ष 2013 से यह कारवां शुरू हुआ. जिसके बाद शास्त्रीय नृत्य की कला में रुचि बढ़ती गई और कारवां भी बढ़ता गया. पहले उन्होंने स्थानीय शशि सोनी रंगमंच से शास्त्रीय नृत्य कला सीखना शुरू किया. जिसके बाद इस कला में उनकी रुचि बढ़ती गई और आगे उन्होंने पटना में भी एक रंगमंच से जुड़कर सीखा. फिहलाल रोहित दिल्ली के एक केंद्र में कथक सीख रहे हैं. हालांकि, जब भी रोहित अपने घर सहरसा आते हैं तो मुहल्ले के बच्चों को शास्त्रीय नृत्य कला सिखलाते हैं.
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FIRST PUBLISHED : July 02, 2023, 17:08 IST
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