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शिवम सिंह /भागलपुर.भागलपुर जिले में आर्सेनिक की मात्रा अधिक होने के कारण भागलपुरवाशी खतरनाक बीमारियों के चपेट में आ रहे हैं. इसको लेकर लगातार प्रशासन एवं बीएयू के वैज्ञानिक आर्सेनिक से मुक्ति पाने के लिए रिसर्च कर रहे हैं.इसी बीच बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर के वैज्ञानिक अपने 6 साल की कड़ी मेहनत के बाद बायो आर्सेनिक मिटिगेटर 1 नामक बैक्टीरिया की खोज की.आपको बता दें कि आर्सेनिक एवं अन्य हानिकारक पदार्थों से बचने के लिए हम पीने के पानी में वाटर प्यूरीफायर का इस्तेमाल कर लेते हैं, लेकिन इन डायरेक्ट वे में हमारे शरीर में फसलों के माध्यम से आर्सेनिक एवं अन्य हानिकारक पदार्थ शरीर में पहुंचता है.
इसको लेकर भागलपुर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक ने बताया कि हमने बायो आर्सेनिक मिटिगेटर 1 बैक्टीरिया की खोज की है. जो कि ठोस आर्सेनिक को आर्सेनिक गैस में बदल देता है. इसको लेकर जिले के विभिन्न क्षेत्रों से मिट्टी का नमूना एकत्र किया. उसके बाद कई फसलों पर रिसर्च भी किया. जिसको लेकर विशेषकर धान की फसलों पर सर्च किया. जिसमें कि धान को आर्सेनिक से छुटकारा दिलाने के लिए आर्सेनिक मिटिगेटर 1 नामक बैक्टीरिया सफल साबित हुआ. इसको लेकर उन्होंने बताया कि किसानों को अपने धान की फसल लगाने से पूर्व इस बैक्टीरिया से अपने बीज को उपचार करने के बाद बेहतर परिणाम निकल कर सामने आए हैं जो कि किसानों के लिए ही लाभदायक हैं. इसको लेकर बीएयू द्वारा खरीफ धान पर प्रयोग सफल रहा.यह बैक्टीरिया धान उत्पादकों के लिए वरदान साबित होगा.
होती है यह जानलेवा बीमारी
आपको बता दें कि धान उत्पादक मुख्य राज्यों में मिट्टी में आर्सेनिक की मौजूदगी आम समस्या है. वही भागलपुर जिले में आर्सेनिक की मात्रा भी अधिक है. वही मिट्टी में मौजूद या हानिकारक तत्व पौधों में प्रवेश कर धान को आर्सेनिक युक्त बना देता है. जिसके बाद भोजन में इस्तेमाल करने से कैंसर तथा अन्य जानलेवा बीमारियों का खतरा बन जाता है.वह इसको लेकर भागलपुर बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर के वैज्ञानिक ने करीब 6 साल की मेहनत के बाद धान को आर्सेनिक से बचाने का तरीका ढूंढ लिया है.इन्होंने सबौर बायो आर्सेनिक मिटिगेटर 1 नामक एक ऐसे बैक्टीरिया की खोज कर ली है जो कि आर्सेनिक मिटिगेटर 1 बैक्टीरिया को अरसायान गैस में परिवर्तित कर देता है. और उसके बादआर्सेनिकवायुमंडल में गैस के रूप में चला जाता है.
केंद्र ने दी हरी झंडी, हुआ रजिस्ट्रेशन
इस तरह से जैवोपचारण विधि द्वारा आर्सेनिक दूषित मिट्टी में भी धान की सुरक्षित खेती करना अब संभव हो गया है.सामान्य खरीफ मौसम में धान में प्रयोग सफल होने से उत्साहित विश्वविद्यालय ने वैज्ञानिकों को गरमा धान में इसका प्रयोग किया है.बता दें कि टीम का नेतृत्व कर रहे मृदा विभाग के वैज्ञानिक डॉ.सुनील कुमार ने बताया कि बायो आर्सेनिक मिटिगेटर 1 बैक्टीरिया मिटिगेटर 1 को केंद्र सरकार ने पंजीकृत कर हरी झंडी दे दी है.वही इसके प्रयोग से 60% तक आर्सेनिक धान की फसल में नहीं रहा जाता है.
ऐसे होता है धान की फसल होने से पूर्व उपचार
एक एकड़ धान कीरोपनी के लिए 50 लीटर पानी में जीवाणु कोमिश्रित किया जाता है. इसमें 3% गुड़ का घोल भी डाला जाता है. जिससे धान की रोपनी से पहले विचारों की जड़ों को आधा घंटा जीवाणु के घोल में डुबोकर उपचारित किया जाता है. बचा हुआ घोल खेत में ही डाल दिया जाता है.इस प्रकार उपचार करने से चावल के साथ पुआल में भी आर्सेनिक की मात्रा कम जाती है. साथ ही घोल में मौजूद तत्वों के अवशोषण से धान की पैदावार में भी 5 गुना तक वृद्धि हो जाती है जो कि आर्थिक दृष्टिकोण से भी किसानों के लिए लाभदायक है. आर्सेनिक प्रभावित राज्यों में बिहार, बंगाल, आसाम और झारखंड की गिनती सबसे पहले आती है. आर्सेनिक प्राइवेट यह सभी राज्य लिस्ट में पहले आते हैं यहां बड़े पैमाने पर धान की खेती होती है.जिससे कि अगर किसानों द्वारा सब और बायो आर सैनिक मिटिगेटर वन बैक्टीरिया का इस्तेमाल किया गया तो यह किसानों के लिए वरदान साबित होगा और यह उत्पादित धान आर्सेनिक से मुक्त हो सकेगा.
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Tags: Agriculture, Bhagalpur news, Bihar News, Local18
FIRST PUBLISHED : July 07, 2023, 12:29 IST
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