झारखंड पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा में सवाल पूछा गया था कि शेफील्ड की पहचान झारखंड के किस गांव से है? जवाब था; भेंडरा लौहनगरी. जी हां, ब्रिटेन में एक शहर है शेफील्ड. शेफ नदी के किनारे बसा यह शहर स्टील उत्पादन के लिए जाना जाता है. अंग्रेजों ने झारखंड के भेंडरा को भारत का शेफील्ड नाम दिया था. बोकारो जिला मुख्यालय से लगभग 38 किलोमीटर दूर नावाडीह प्रखंड के गिरिडीह और धनबाद जिले की सीमा पर भेंडरा गांव स्थित है. (फोटो व रिपोर्ट: मृत्युंजय कुमार)
जंगलों के बीच तीन ओर से जमुनिया नदी से घिरे इस गांव में लोहे को आकार देने का काम किया जाता है. यहां लोहे के हथियार और घरेलू उपयोग में आने वाले सामान बनाया जाता है. कहा जाता है कि शेरशाह सूरी ने अपनी सेना के लिए हथियार बनाने के लिए हुनरमंद लोगों के लिए इस गांव को बसाया था. आज भेंडरा की आबादी 8 हजार है. यहां घर-घर लोग लोहे के हथियार और सामान बनते हैं. यहां 150 लोहे के कुटीर उद्योग हैं. यहां 500 से अधिक लोग काम करते हैं. यहां महीने का कारोबार 3 करोड़ रुपए होता है.
बता दें, सामान की बिक्री वर्ष 1950 से संगठित तरीके से हो रही है यहां रेलवे के लिए बॉलपेन हैमर, साबल बनते हैं. कोयला कंपनी सीसीएल और बीसीसीएल के लिए गैंता, साबल, कोल कटिंग फिक्स मशीन में लगने वाले सामान बनाए जाते हैं. सेना में भी गैंता, फावड़ा-कुदाल की सप्लाई होती है. स्वर्गीय महावीर राम बरई इसी भेंडरा गांव के रहने वाले थे, जिन्होंने 1950 में भेंडरा कॉटेज इंडस्ट्री को खोला था. कंपनी का मुख्यालय कोलकाता में था. उनके बेटे गणेश चौरसिया कंपनी को संभालते हैं. उन्होंने बताया कि उस दौर में गांव में बना सारा सामान भेंडरा कॉटेज इंडस्ट्री खरीदती थी.
मुंबई, कोलकाता, सिकंदराबाद जैसे बड़े शहरों में आज भी यहां के लोहे के सामान की डिमांड है. पर, अब यहां कई कुटीर उद्योग खुल गए, जो सप्लायर के माध्यम से खरीदते हैं. भेंडरा गांव पारसनाथ से 9 किमी और गोमो स्टेशन से 5 किमी दूर है. गांव की आधी आबादी विश्वकर्मा जाति की है.
इस गांव में 17 जाति के लोग रहते हैं. गांव में घुसते ही घरों में समृद्धि नजर आई, हर तरफ शोर करती मशीनें, लोहे पर चलते हथौड़ों की आवाज सुनी, मुखिया नरेश विश्वकर्मा ने बताया; यहां के लोगों में हुनर ऐसा कि लोहे के किसी सामान को एक बार देख लें तो बिना किसी मशीनी मदद के हाथ से वैसा ही बना देते हैं. इन सामान को 150 कुटीर उद्योगों के जरिये रजिस्टर्ड सप्लायर खरीदते हैं.
उन्होंने कहा कि अगर सही में मेक इन इंडिया देखनी है तो इस गांव में आना चाहिए. क्योंकि मेक इन इंडिया की परिकल्पना सैकड़ों वर्ग पुरानी है. यहां के लोगों को सरकार सहायता उपलब्ध कराएं एक छत के नीचे उन्हें व्यवस्थित करने का काम करें और मैट्रियल की भी व्यवस्था करें तो देश में ऐसा अब कहीं नहीं मिलेगा.
शेरशाह सूरी ने 1537 में अपनी सेना के लिए हथियारों की जरूरत महसूस की थी. तब उन्होंने भेंडरा को सुरक्षित जगह मानकर लोहे से हथियार बनाने वाले लोगों को यहां बसाया था. यहां उनकी सेना के लिए तलवार, भाला, ढाल, बरछी आदि हथियार बनाए जाते थे. 1545 में शेरशाह की मौत के बाद भी भेंडरा के ग्रामीण दूसरे राजाओं के लिए हथियार बनाते रहे. ब्रिटिश सरकार नेे हुनर को देखकर ही 1939 से 1945 तक द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान रेल के विस्तार के लिए लोहे का सामान बनवाया था.
ग्रामीणों की खासियत थी कि वे विदेशी उपकरणों का नमूना देखकर उसे बना देते थे. इसलिए ब्रिटिश सरकार ने इंजीनियरिंग टूल्स बनाने का ऑर्डर दिया. देश में पहली बार इसी गांव में रेल के लिए बॉलपेन हैमर बनाया गया था. 1956 में प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने गांव की ख्याति सुनी तो गांव में लौह उद्योग की संभावना तलाशने को इंग्लैंड की फोर्ड फाउंडेशन टीम को भेजा. टीम ने ग्रामीणों का काम और व्यवसाय को देख इस गांव को भारत के शेफिल्ड की उपाधि दी.
नेहरू ने इसे लौह नगरी कहा था. उनके निर्देश पर ही इस गांव में 1956 में बिजली आई, पोस्ट ऑफिस और हाई स्कूल खुले थे. यहां लोहे को आकार देने वाले कारीगर कहते हैं कि पुराने तरीके से आज ही लोहे का सामान बना रहे इसमें खतरा बहुत अधिक रहता है एक चूक हुई तो कुछ भी हो सकता है ऐसे में सरकार हमें संसाधन उपलब्ध कराएं क्योंकि आधुनिक तरीके से बनाए गए सामान आजकल अधिक बाजार में देखे जा रहे हैं हमें सभी तरह की सुविधा सरकार को प्राप्त कर आनी चाहिए.