Friday, May 9, 2025
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Prabhasakshi Exclusive: PM Modi ने Xi Jinping के सामने China के BRI Project का विरोध करके दुनिया को संदेश दिया- दुश्मनों से निबटने के लिए एक ही बंदा काफी है

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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि यह अच्छी बात रही कि एससीओ के सदस्य देशों के नेताओं ने आतंकवाद के किसी भी कृत्य को ‘‘आपराधिक, अनुचित’’ करार देते हुए राजनीतिक एवं भू-राजनीतिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए आतंकवादियों एवं चरमपंथी समूहों के इस्तेमाल को ‘‘अस्वीकार्य’’ बताया।

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में हमने इस सप्ताह ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) से जानना चाहा कि एससीओ शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद का मुद्दा उठाया, चीन की बेल्ड एंड रोल पहल का विरोध किया। चीन के राष्ट्रपति ने शीत युद्ध के खिलाफ आगाह किया, पुतिन ने सशस्त्र विद्रोह का मुद्दा उठाया, पाकिस्तान ने आतंकवाद को ‘कई सिर वाला राक्षस’ बताया। इस सबको कैसे देखते हैं आप? साथ ही ईरान को इस संगठन का सदस्य बनाने से क्या लाभ होगा?

इसके जवाब में उन्होंने कहा कि यह अच्छी बात रही कि शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सदस्य देशों के नेताओं ने आतंकवाद के किसी भी कृत्य को ‘‘आपराधिक, अनुचित’’ करार देते हुए राजनीतिक एवं भू-राजनीतिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए आतंकवादियों एवं चरमपंथी समूहों के इस्तेमाल को ‘‘अस्वीकार्य’’ बताया। एससीओ देशों ने अपने-अपने राष्ट्रीय कानूनों के अनुरूप ऐसे आतंकवादियों, अलगाववादियों और चरमपंथी समूहों की समान सूची तैयार करने के लिए साझा सिद्धांत विकसित करने पर सहमति व्यक्त की, जिनकी गतिविधियां सदस्य देशों के क्षेत्रों में प्रतिबंधित है। भारत की अध्यक्षता में डिजिटल माध्यम से आयोजित इस बैठक के समापन पर एक साझा बयान जारी किया गया। इसमें कहा गया है कि सदस्य देश आतंकवाद के वित्त पोषण के माध्यमों को रोकने, आतंकी भर्ती से जुड़ी गतिविधियों को बंद करने और सीमापार आतंकवादियों की आवाजाही पर लगाम लगाने के साथ आतंक के छिपे स्वरूपों और आतंकवादियों की पनाहगाहों को समाप्त करने की दिशा में कदम उठाएंगे। इसमें कहा गया है कि सदस्य देश आतंकवाद के सभी स्वरूपों की कड़े शब्दों में निंदा करने को प्रतिबद्ध हैं, चाहे यह किसी के द्वारा और किसी उद्देश्य के लिए होता हो। साझा बयान में कहा गया है कि आतंकवाद को किसी धर्म, सभ्यता, राष्ट्रीयता या जातीय समूह से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ आदि मौजूद थे। शिखर बैठक में अलग से ‘दिल्ली घोषणापत्र’ जारी किया गया जिसमें कहा गया है कि एससीओ के सदस्य देश आतंकवाद के प्रसार से निपटने के लिए उपयुक्त माहौल तैयार करने को प्रतिबद्ध हैं। इसमें डिजिटल परिवर्तन पर भी एक घोषणापत्र जारी किया गया।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इस बैठक के दौरान भारत ने चीन की महत्वाकांक्षी ‘बेल्ट एंड रोड’ परियोजना (बीआरआई) का एक बार फिर समर्थन करने से इंकार कर दिया। इसी के साथ वह इस परियोजना का समर्थन नहीं करने वाला शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का एकमात्र देश बन गया। भारत की मेजबानी में वर्चुअल माध्यम से आयोजित एससीओ शिखर सम्मेलन के अंत में जारी घोषणा में कहा गया कि रूस, पाकिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान ने बीआरआई के प्रति अपना समर्थन दोहराया है। उन्होंने कहा कि घोषणा के मुताबिक, “चीन की ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (बीआरआई) पहल के लिए अपने समर्थन की पुष्टि करते हुए कजाकिस्तान गणराज्य, किर्गिज गणराज्य, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान गणराज्य और उज्बेकिस्तान गणराज्य ने संयुक्त रूप से इस परियोजना को लागू करने के लिए जारी काम पर ध्यान केंद्रित किया, जिसमें यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन और बीआरआई के निर्माण को जोड़ने का प्रयास भी शामिल है।” उन्होंने बताया कि इसमें कहा गया है, “इन देशों ने इच्छुक सदस्य देशों द्वारा आपसी समझौतों के तहत राष्ट्रीय मुद्राओं की हिस्सेदारी में क्रमिक वृद्धि के रोडमैप को लागू करने के पक्ष में बात की।” घोषणा के अनुसार, सदस्य राज्यों ने ‘इच्छुक सदस्य देशों’ द्वारा अपनाई गई एससीओ आर्थिक विकास रणनीति 2030 के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना और डिजिटल अर्थव्यवस्था, उच्च प्रौद्योगिकी एवं सड़क तथा रेल परिवहन के लिए मौजूदा अंतरराष्ट्रीय मार्गों के आधुनिकीकरण जैसे क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से परियोजनाओं को गति देना महत्वपूर्ण माना। शिखर सम्मेलन में अपने उद्घाटन भाषण में, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सम्पर्क को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला, लेकिन इस बात पर जोर दिया कि ऐसे प्रयास करते समय एससीओ चार्टर के बुनियादी सिद्धांतों, विशेष रूप से सदस्य देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना आवश्यक है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने क्षेत्र में एक नया ‘शीत युद्ध’ भड़काने के बाहरी प्रयासों के खिलाफ आगाह किया तथा शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सदस्य देशों से आतंकवाद के खिलाफ एकजुट कार्रवाई के साथ क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने का आह्वान किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई एससीओ के शासनाध्यक्षों की परिषद की 23वीं बैठक को डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए जिनपिंग ने सदस्य देशों से एक-दूसरे के मूल हितों और प्रमुख चिंताओं का ‘‘वास्तव में सम्मान’’ करने का आग्रह किया। अमेरिका की परोक्ष रूप से आलोचना करते हुए शी ने आधिपत्यवाद और ‘ताकत की राजनीति’ का विरोध करने और वैश्विक शासन व्यवस्था को निष्पक्ष तथा अधिक न्यायसंगत बनाने का भी आह्वान किया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘हमें अपने क्षेत्र के समग्र और दीर्घकालिक हितों को ध्यान में रखना चाहिए और अपनी विदेश नीतियां स्वतंत्र रूप से बनानी चाहिए। हमें अपने क्षेत्र में एक नए शीत युद्ध या गुटबंदी-आधारित टकराव को बढ़ावा देने के बाहरी प्रयासों के खिलाफ अत्यधिक सतर्क रहना चाहिए।’’ 

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि अमेरिका के साथ चीन के तनाव भरे संबंधों के बीच शी ने कहा, ‘‘हमें अपने आंतरिक मामलों में किसी भी हस्तक्षेप और किसी भी बहाने से किसी भी देश द्वारा प्रदर्शन को उकसावे को दृढ़ता से अस्वीकार करना चाहिए। हमारे विकास का भविष्य मजबूती से हमारे ही हाथों में होना चाहिए।’’ उन्होंने बहुपक्षीयता को बरकरार रखने और वैश्विक प्रशासन को बेहतर बनाने के लिए प्रयास करने के महत्व को रेखांकित किया। शी ने क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा एससीओ देशों के बीच आदान प्रदान एवं लोगों के बीच सम्पर्क बढ़ाने के लिए प्रयास करने पर भी जोर दिया। राष्ट्रपति ने कहा कि चीन बातचीत और परामर्श के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय विवादों के निपटारे को बढ़ावा देने के लिए उनके द्वारा प्रस्तावित वैश्विक सुरक्षा पहल (जीएसआई) को लागू करने के लिए सभी पक्षों के साथ काम करने को तैयार है। ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने बताया कि शी ने यह भी कहा, ‘‘हमें अपने कानून प्रवर्तन और सुरक्षा सहयोग के लिए तंत्र को मजबूत करने तथा डिजिटल, जैविक और बाहरी अंतरिक्ष सुरक्षा सहित गैर-पारंपरिक सुरक्षा क्षेत्रों में सहयोग का विस्तार करने के लिए तेजी से आगे बढ़ना चाहिए।’’ तालिबान शासित अफगानिस्तान पर शी ने कहा कि एससीओ देशों को अफगानिस्तान के पड़ोसियों के बीच समन्वय और सहयोग के तंत्र जैसे मंच का उपयोग जारी रखना चाहिए। शी ने कहा, ‘‘हमें रणनीतिक संचार और समन्वय को बढ़ाना चाहिए, बातचीत के माध्यम से मतभेदों को दूर करना चाहिए और प्रतिस्पर्धा को सहयोग से बदलना चाहिए। हमें वास्तव में एक-दूसरे के मूल हितों और प्रमुख चिंताओं का सम्मान करना चाहिए तथा विकास और कायाकल्प के लिए एक-दूसरे के प्रयासों का दृढ़ता से समर्थन करना चाहिए।’’ शी की यह टिप्पणी ऐसे समय आई है जब भारतीय और चीनी सैनिक पूर्वी लद्दाख में गतिरोध के कुछ बिंदुओं पर तीन साल से अधिक समय से आमने-सामने हैं। भारत ने चीन को यह स्पष्ट कर दिया है कि जब तक सीमावर्ती इलाकों में शांति नहीं होगी, दोनों देशों के बीच संबंध आगे नहीं बढ़ सकते।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि सरकारी ‘शिन्हुआ’ समाचार एजेंसी के अनुसार, शी ने एससीओ सदस्य देशों से देशों को जोड़ने एवं सम्पर्क बढ़ाने के लिए अरबों डालर की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजना के तहत विभिन्न देशों की विकास रणनीति एवं क्षेत्रीय सहयोग पहल के जरिये उच्च गुणवत्तापूर्ण सहयोग की वकालत की। राष्ट्रपति शी ने 2013 में सत्ता में आने के बाद बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) की शुरूआत की थी। इसका मकसद भूमि और समुद्र मार्ग के माध्यम से दक्षिण पूर्व एशिया, पश्चिम एशिया, खाड़ी क्षेत्र, अफ्रीका और यूरोप को जोड़ना है। बीआरआई के तहत ही 60 अरब डालर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की शुरूआत की गई है। भारत ने इस पर गंभीर आपत्ति दर्ज कराई है क्योंकि यह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरता है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कहा कि आतंकवाद और उग्रवाद के ‘‘कई सिर वाले राक्षस’’ से पूरी ताकत और दृढ़ता के साथ लड़ा जाना चाहिए। उन्होंने इसे कूटनीतिक फायदे के लिए हथकंडे के तौर पर इस्तेमाल करने के खिलाफ भी आगाह किया। भारत द्वारा आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के राष्ट्राध्यक्षों की 23वीं बैठक को डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए उन्होंने धार्मिक अल्पसंख्यकों के बारे में भी बात की। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शरीफ ने कहा, ‘‘आतंकवाद और उग्रवाद के कई सिर वाले राक्षस से-चाहे वह व्यक्तियों, समाज या राज्यों द्वारा प्रायोजित हो- पूरी ताकत और दृढ़ विश्वास के साथ लड़ना चाहिए। किसी भी परिस्थिति में कूटनीतिक मुद्दे के लिए इसे एक औजार के रूप में इस्तेमाल करने के किसी भी प्रलोभन से बचना चाहिए।’’ उन्होंने कहा कि शरीफ ने कहा, ‘‘राज्य प्रायोजित आतंकवाद समेत सभी तरह के आतंकवाद की स्पष्ट और कड़े शब्दों में निंदा की जानी चाहिए। चाहे कारण या बहाना कुछ भी हो, निर्दोष लोगों की हत्या का कोई औचित्य नहीं हो सकता है।’’ ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने कहा कि आतंकवाद के संकट से लड़ने में पाकिस्तान द्वारा किए गए बलिदानों की कोई तुलना नहीं है, लेकिन यह अभी भी इस क्षेत्र को प्रभावित कर रहा है और शांति तथा स्थिरता के लिए ‘‘गंभीर बाधा’’ है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि प्रधानमंत्री शरीफ ने धार्मिक अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर भी किसी भी देश का नाम लिए बिना कहा कि ‘‘घरेलू राजनीतिक एजेंडे के लिए धार्मिक अल्पसंख्यकों को नकारात्मक रूप से दिखाने के चलन को रोका जाना चाहिए।’’ शरीफ ने कश्मीर मुद्दे को भी उठाने की कोशिश की और लंबित विवादों के समाधान के लिए संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने आतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववाद की तीन बुराइयों के बारे में भी बात की और एससीओ देशों से इन बुराइयों का मुकाबला करने के लिए अपनी राष्ट्रीय और सामूहिक क्षमता, दोनों के साथ ठोस और तत्काल कार्रवाई करने का आग्रह किया। उन्होंने संपर्क के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि यह आधुनिक वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक परिभाषित विशेषता बन गई है। उन्होंने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के बारे में कहा कि यह क्षेत्र में संपर्क और समृद्धि के लिए ‘‘गेम चेंजर’’ हो सकता है। 

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘पाकिस्तान जिस जगह स्थित है, वह एक प्राकृतिक सेतु के रूप में कार्य करता है, जो यूरोप और मध्य एशिया को चीन, दक्षिण एशिया और पश्चिम एशिया से जोड़ता है।’’ उन्होंने कहा कि सीपीईसी के तहत विशेष आर्थिक क्षेत्र, क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिए सुविधाजनक माध्यम के रूप में भी काम कर सकते हैं। सीपीईसी के तहत पाकिस्तान के बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह को चीन के शिनजियांग प्रांत से जोड़ा जाना है। यह चीन की कई अरब डॉलर की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) की प्रमुख परियोजना है। भारत ने सीपीईसी पर चीन के समक्ष आपत्ति दर्ज कराई है क्योंकि यह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजर रहा है। शरीफ ने यह भी कहा कि ‘‘जलवायु-प्रेरित आपदा हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रही है’’ और इससे निपटने के लिए वैश्विक एकजुटता और प्रतिक्रिया की जरूरत है। उन्होंने पिछले साल पाकिस्तान में आई बाढ़ का भी जिक्र किया, जिससे देश की अर्थव्यवस्था को 30 अरब डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ। उन्होंने विकसित देशों से जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए गरीबों की मदद करने का आग्रह किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि गरीबी उन्मूलन एससीओ देशों के लिए एक बड़ी चुनौती है, जहां दुनिया के सबसे ज्यादा गरीब हैं। उन्होंने कहा कि युद्धों और अन्य संबंधित मुद्दों के कारण वस्तुओं की कीमत में वृद्धि पर एससीओ देशों को कदम उठाना चाहिए। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि अफगानिस्तान में स्थिरता साझा उद्देश्य होना चाहिए। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान को भी किसी भी आतंकवादी संगठन द्वारा अपने क्षेत्र के इस्तेमाल को रोकने के लिए कदम उठाना चाहिए। एससीओ की स्थापना 2001 में शंघाई में एक शिखर सम्मेलन में रूस, चीन, किर्गिज गणराज्य, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपतियों द्वारा की गई थी। वर्ष 2017 में भारत के साथ पाकिस्तान इसका स्थायी सदस्य बन गया।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि वहीं, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि रूसी समाज ने सशस्त्र विद्रोह के प्रयासों के खिलाफ एकजुटता दिखायी है और लोगों ने देश की सुरक्षा को लेकर अपनी जवाबदेही प्रदर्शित की है। रूसी राष्ट्रपति का यह बयान ऐसे समय में आया है जब हाल ही में रूस में निजी सेना ‘वैग्नर ग्रुप’ ने मास्को के खिलाफ विद्रोह कर दिया था। हालांकि, यह बगावत अल्पकालिक रही। इस घटना के बाद किसी बहुपक्षीय मंच पर पुतिन की यह पहली उपस्थिति थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शासनाध्यक्षों की परिषद की 23वीं बैठक को डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए पुतिन ने यूक्रेन संघर्ष के संदर्भ में कहा कि ‘बाहरी ताकतें’ हमारी सीमाओं के पास परियोजनाएं चला रही हैं ताकि रूस की सुरक्षा को खतरे में डाला जा सके। उन्होंने बिना किसी का नाम लिये कहा कि पिछले आठ वर्षो से हथियारों की खेप भेजी जा रही है, डोनबास में शांतिप्रिय लोगों के खिलाफ आक्रामकता हो रही है जो नवनाजीवाद की तरह है। उन्होंने कहा, ”रूसी लोग पहले से अधिक एकजुट हैं। देश की खातिर एकजुटता और उच्च जिम्मेदारी का स्पष्ट तौर पर प्रदर्शन किया गया और सशस्त्र विद्रोह के खिलाफ पूरे समाज ने एकजुटता का प्रदर्शन किया।’’

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि हाल ही में वैग्नर ग्रुप’ के प्रमुख येवगेनी प्रीगोझिन और उनके लड़ाकों ने रूस के खिलाफ विद्रोह करते हुए मॉस्को की तरफ कूच किया था। हालांकि, उन्होंने अचानक क्रेमलिन के साथ समझौते के बाद निर्वासन में जाने और पीछे हटने की घोषणा कर दी थी। इसके बाद दो दशकों से अधिक समय से सत्तारूढ़ पुतिन के नेतृत्व पर भी सवाल उठे थे। एससीओ की बैठक में पुतिन ने कहा, ‘‘इस अवसर पर मैं एससीओ के अपने सहयोगी देशों के सदस्यों को संवैधानिक व्यवस्था, जानमाल और नागरिकों की सुरक्षा करने में रूसी नेतृत्व का समर्थन करने के लिए धन्यवाद देता हूं।’’ उन्होंने कहा कि सभी एससीओ सदस्य देशों के साथ निर्यात लेनदेन में रूस की राष्ट्रीय मुद्रा की हिस्सेदारी वर्ष 2022 में 40 प्रतिशत से अधिक रही। रूसी राष्ट्रपति ने कहा कि एससीओ ‘सही अर्थो में न्यायपूर्ण’ और ‘बहुध्रुवीय’ विश्व व्यवस्था’ सृजित करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि दूसरी ओर, ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने कहा कि पश्चिमी आधिपत्यवादी शक्तियों ने आर्थिक दबाव और प्रतिबंधों का सहारा लेकर समृद्धि और निष्पक्ष व्यापार के सिद्धांतों को खतरे में डाल दिया है। इसके साथ ही उन्होंने निष्पक्ष अंतरराष्ट्रीय प्रणाली के लिए लेन-देन से डॉलर को हटाने का आह्वान किया। रईसी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के राष्ट्राध्यक्षों की परिषद (सीएचएस) की 23वीं बैठक को एक वीडियो लिंक के माध्यम से संबोधित करते हुए यह आह्वन किया। ईरान एससीओ का नौवां स्थायी सदस्य बना है जिसका मुख्यालय बीजिंग में है। ईरान और हाल ही में रूस और चीन पर अमेरिका की अगुवाई में पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों का परोक्ष रूप से जिक्र करते हुए रईसी ने कहा, ‘‘…पश्चिमी आधिपत्यवादी शक्तियों ने आर्थिक दबाव और प्रतिबंधों का सहारा लेकर दुनिया में सुरक्षा, आर्थिक समृद्धि और निष्पक्ष व्यापार के सिद्धांतों को खतरे में डाल दिया है।’’

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि रईसी ने कहा कि पिछले दशकों के अनुभव पर भरोसा करते हुए अब यह काफी स्पष्ट हो गया है कि सैन्यीकरण के साथ जो चीज पश्चिमी प्रभुत्व प्रणाली का आधार रही है, वह है डॉलर का प्रभुत्व। उन्होंने कहा कि इसलिए एक निष्पक्ष अंतरराष्ट्रीय प्रणाली को आकार देने के किसी भी प्रयास के लिए अंतर-क्षेत्रीय संबंधों में प्रभुत्व के इस साधन को हटाने की आवश्यकता है। उन्होंने शिखर सम्मेलन की मेजबानी के लिए प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद दिया और कहा कि ईरान के समूह में शामिल होने से ऐतिहासिक लाभ होंगे।

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