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चुनाव के दौरान बंगाल में हिंसा कोई नई बात नहीं है। साथ ही साथ आपको हमने 1 एपिसोड में यह भी बताया था कि किस तरीके से बंगाल में हिंसा और चुनाव का काफी पुराना संबंध रहा है। 1972-77 के दौरान कांग्रेस ने वामपंथियों पर जमकर हिंसा की।
पश्चिम बंगाल राज्य चुनाव आयोग ने 8 जून को ग्रामीण निकाय चुनावों की घोषणा की थी। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, अगले 37 दिनों में चुनाव संबंधी हिंसा में कम से कम 52 लोग मारे गए। हालाँकि, आधिकारिक संख्या आधे से भी कम है। पश्चिम बंगाल के लिए चुनाव का मतलब व्यापक हिंसा हो चुका है। इस पर वार-पलटवार की राजनीति हो ही रही थी कि पश्चिम बंगाल के मालदा जिले के एक साप्ताहिक ग्रामीण बाजार में दो आदिवासी महिलाओं को निर्वस्त्र कर पीटते हुए एक वीडियो में देखा गया। इसके बाद राजनीतिर उफान और तेज हो गया। मणिपुर के वायरल वीडियो को लेकर घिरी भाजपा को पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार पर निशाना साधने का एक बड़ा मौका मिल गया।
बंगाल में हिंसा नया नहीं
चुनाव के दौरान बंगाल में हिंसा कोई नई बात नहीं है। साथ ही साथ आपको हमने 1 एपिसोड में यह भी बताया था कि किस तरीके से बंगाल में हिंसा और चुनाव का काफी पुराना संबंध रहा है। 1972-77 के दौरान कांग्रेस ने वामपंथियों पर जमकर हिंसा की। 1977 में जब सत्ता परिवर्तन हुआ तो वामपंथियों ने प्रतिद्वंद्वियों को शांत करने के लिए हिंसा का सहारा लिया। बंगाल में लंबे समय तक शासन करने वाली लेफ्ट को 90 के दशक में ममता बनर्जी से कड़ा विरोध का सामना करना पड़ा। तब फिर से हिंसा की प्रकृति और भयावह हो गई। लोगों की हत्याएं होती रही। 21 वी सदी के शुरुआती दशक में भी बंगाल में हिंसा देखने को मिला। हालांकि, 2011 में पश्चिम बंगाल में सत्ता परिवर्तन हुआ और ममता बनर्जी मुख्यमंत्री बनी तो इस बात की उम्मीद थी कि शायद अब हिंसा रुक जाए। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आज भी राजनीतिक हिंसा पश्चिम बंगाल में जारी है। विधानसभा चुनाव से पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दावा किया था कि उनकी पार्टी के लगभग 300 कार्यकर्ता पश्चिम बंगाल में मारे गए हैं। हाल में संपन्न 2021 के विधानसभा चुनाव और पंचायत चुनाव को भी उदाहरण के तौर पर देखें तो हिंसा की खबरें खूब आईं। कई लोगों की मौत की भी खबर आई। हालांकि राज्य सरकार इसको लेकर विपक्षी दलों पर ही वार करती रही।
विपक्षी दलों का दावा
वर्तमान में देखें तो पश्चिम बंगाल में भाजपा ने खुद को मुख्य प्रतिद्वंदी के तौर पर ममता बनर्जी और उनके सरकार के समक्ष स्थापित कर दिया है। यही कारण है कि भाजपा लगातार तृणमूल कांग्रेस पर जबरदस्त तरीके से हमलावर रहती है। भाजपा दावा करती रहती है कि पश्चिम बंगाल में लोकतंत्र खतरे में है। वहां गुंडागर्दी चरम पर है। कानून व्यवस्था खत्म हो चुकी है। भाजपा पश्चिम बंगाल पुलिस पर भी तृणमूल कांग्रेस के एजेंट के तौर पर काम करने का आरोप लगाती है। कई बार तो पश्चिम बंगाल के भाजपा नेताओं की ओर से केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर पश्चिम बंगाल के मामले में हस्तक्षेप का अनुरोध किया गया।
कांग्रेस-लेफ्ट का रुख
हाल में संपन्न पंचायत चुनाव को देखें तो कांग्रेस और वामदलों ने भी ममता बनर्जी और उनकी सरकार पर हिंसा को लेकर जबरदस्त तरीके से निशाना साधा। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अधीर रंजन चौधरी जमीन पर संघर्ष करते नजर आए। कांग्रेस और लेफ्ट पार्टी के कई कार्यकर्ताओं की भी मौत हुई। अधीर रंजन चौधरी ने तो साफ तौर पर कहा है कि पश्चिम बंगाल में कानून व्यवस्था खराब है। महिलाओं पर अत्याचार बढ़ रहे हैं। वामपंथी भी तृणमूल कांग्रेस पर पंचायत चुनाव के दौरान हुई हिंसा को लेकर हमलावर है और साफ तौर पर उनकी संलिप्तता की बात कह रहे हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर मामला दूसरा
प्रादेशिक स्तर पर देखें तो लेफ्ट और कांग्रेस तृणमूल की जबरदस्त धूर विरोधी नजर आ रही हैं। लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर मामला दूसरा हो जाता है। राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो हाल के विपक्षी दलों की बैठकों में ममता बनर्जी, सीताराम येचुरी और डी राजा तथा राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे एक साथ नजर आ रहे हैं। तीनों पार्टियों की ओर भाजपा के खिलाफ गठबंधन बनाने की बात पर रजामंदी जताई जा रही है। भले ही पश्चिम बंगाल में कांग्रेस नेता ममता बनर्जी के खिलाफ जमीन पर लड़ाई लड़ रहे हैं। लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के नेता यह कह रहे हैं कि तृणमूल बंगाल में हिंसा भड़काने वालों के साथ खड़ी नहीं है। मोहब्बत की दुकान खोलने का नारा देने वाली कांग्रेस राष्ट्रीय नेतृत्व बंगाल में हिंसा को लेकर खामोश है। इसका बड़ा कारण विपक्षी एकता है। कांग्रेस किसी भी तरह से गठबंधन को लेकर कोई रिस्क नहीं लेना चाहती। हालांकि लेफ्ट साफ कह चुका है कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी से उसका कोई गठबंधन नहीं होगा। लेकिन कांग्रेस ने अब तक अपनी स्थिति को साफ नहीं किया है। कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व को यह बात लगता है कि अगर ममता बनर्जी नाराज हो गईं तो उसके खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर एक और मोर्चा तैयार हो सकता है जिसका नेतृत्व वह खुद करेंगी। इसके अलावा भाजपा के खिलाफ जो विपक्षी एकता होगा, वह भी कमजोर पड़ सकता है। कांग्रेस के कई गठबंधन सहयोगी ममता बनर्जी की ओर रुख कर सकते हैं। इसलिए पश्चिम बंगाल में अपने पार्टी कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज करते हुए कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व ममता बनर्जी के पक्ष में खड़ा दिखाई दे रहा है।
राजनीति वह अखड़ा है जहां सब कुछ चुनावी फायदे और नुकसान से ही जुड़ता है। कोई भी पार्टी जल्दबाजी में कोई भी कदम उठाने से डरती है। इसका बड़ा कारण यह होता है कि जनता के बीच कोई गलत मैसेज ना चला जाए। मणिपुर पर हो हल्ला मचाने वाले विपक्षी दल बंगाल और राजस्थान जैसे राज्यों से आ रही घटना की खबरों को लेकर चुप हैं। लेकिन पब्लिक सब जानती है। यही तो प्रजातंत्र है।
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