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हम आठ दिन तक सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के शिविर में रहे और बाद में हमें सेना ने इंफाल स्थानांतरित कर दिया।
अकंपत के एक कॉलेज में बने राहत शिविर में रह रहे राज्य पुलिस के एक सिपाही एस. डेविड और उसके परिवार सहित 700 से ज्यादा लोगों को यह उम्मीद है कि हालात सामान्य होने के बाद वे सकुशल अपने घर लौट सकेंगे।
बचाव के लिए असम राइफल्स के पहुंचने से पहले इन सभी लोगों को विस्फोट, दंगे और भीड़ हिंसा के चलते भय के माहौल में रहना पड़ा। ने मोरेह और चुराचांदपुर से लाए गए 238 परिवारों को यहां आइडियल गर्ल्स कॉलेज में रखा है। असम राइफल्स, सेना की अभियानगत कमान के अतंर्गत आने वाला एक अर्धसैनिक बल है।
टिन की छत वाले कॉलेज में रसायन विज्ञान कक्षा में रह रही चंचल वहां मौजूद बच्चों को पढ़ाने में व्यस्त रहती हैं, जिन्होंने सरकारी स्कूल में प्रवेश लिया हुआ है।
राजधानी इंफाल से 107 किलोमीटर दूर स्थित मोरेह कस्बे के बहुसंख्यक समुदाय से ताल्लुक रखने वाली चंचल तीन मई के उस दिन को याद करती हैं जब पूरा परिवार रात के खाने के लिए बैठा हुआ था।
चंचल ने कहा, हमने सुना कि भीड़ सब कुछ तोड़-फोड़ रही है। धमाकों की जोरदार आवाज सुनाई दे रही थी और गोलियां बरस रही थीं। उन्होंने याद करते हुए कहा, हम बचने के लिए किसी तरह पास के थाने तक पहुंचने में कामयाब रहे। हमें मोरेह शहर में असम राइफल्स के शिविर ले जाया गया और सुरक्षाबल हमें सकुशल इंफाल शहर लाने में कामयाब रहे।
उन्होंने बताया कि उनका पूरा परिवार अपना सबकुछ घर में ही छोड़ आया था। मोरेह शहर में एक छोटा सा व्यवसाय चलाने वाली चंचल को उम्मीद है कि वह जल्द ही अपने घर लौटेंगी। उन्होंने कहा, शायद तुरंत नहीं लेकिन मैं अपने घर, अपने इलाके में वापस जाना चाहती हूं, जहां मैं पैदा हुई और पली-बढ़ी हूं, बशर्ते हमें आश्वासन दिया जाए कि हम सुरक्षित रहेंगे।
इस शिविर को कृषि मंत्री थोंगम बिस्वजीत सिंह द्वारा चलाया जा रहा है, जिसमें एक साझा रसोईघर है। इस रसोईघर को विस्थापित लोगों के बीच से ही तीन परिवार प्रबंधित कर रहे हैं।
मणिपुर पुलिस में सिपाही के पद पर तैनात डेविड ने अपना क्षतिग्रस्त घर दिखाने के लिए स्मार्टफोन निकाला और कहा कि वह इंफाल से 63 किमी दूर चुराचांदपुर में रह रहा था।
उन्होंने कहा, चार मई को एक भीड़ आई और हमारा घर जला दिया। हम आठ दिन तक सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के शिविर में रहे और बाद में हमें सेना ने इंफाल स्थानांतरित कर दिया।
डेवि़ड ने कहा कि 500 रुपये प्रति माह का भुगतान किए जाने के कारण विस्थापित लोग क्वाटा में राज्य सरकार द्वारा तैयार किए जा रहे पूर्व-निर्मित घरों में जाने के लिए तैयार नहीं हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘चुराचांदपुर हमारा घर है तथा हम कहीं और नहीं रहेंगे।’’
डेविड की बातों से इत्तेफाक रखने वाले किसान संतोष ने कहा, पूर्व-निर्मित घर हमारे दुखों का इलाज नहीं हैं।
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