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चांद को छूना औरों की तरह हमारा भी सपना रहा है। लेकिन भारत के मून मिशन के दौरान ही इसको लेकर क्रेडिट की लड़ाई भी देखने को मिली।
चांद को मुट्ठी में करने सपनों की उड़ान अपने अंजाम तक पहुंच चुकी है। 14 जुलाई 2023 की तारीख देश के लिए एक खास बना तो 23 अगस्त ने तो इसे ऐतिहासिक बना दिया। 14 जुलाई को दोपहर के 2:30 मिनट पर भारत का चंद्रयान-3 चांद की ओर रवाना होने वाले चंद्रयान 3 ने 23 अगस्त को शाम 6:03 मिनट पर सफलतापूर्वक लैंडिंग कर ली है। चांद को छूना औरों की तरह हमारा भी सपना रहा है। लेकिन भारत के मून मिशन के दौरान ही इसको लेकर क्रेडिट की लड़ाई भी देखने को मिली।
नेहरू और इंदिरा के दौर में इसरो की स्थापना
डॉक्टर विक्रम साराभाई और डॉक्टर रामानाथन ने 16 फरवरी 1962 को Indian National Committee for Space Research (INCOSPAR) की स्थापना की गई। जो आगे चलकर 15 अगस्त 1969 को इसरो (ISRO) बन गया। बहुत सारे लोगों ने यह सवाल उठाया है कि जब इसरो की स्थापना से पहले ही नेहरू का देहांत हो गया था, तो वो इस संस्थान की स्थापना कैसे कर सकते हैं? इसरो की आधिकारिक वेबसाइट पर भी अंतरिक्ष रिसर्च एजेंसी की स्थापना में नेहरू और डॉक्टर साराभाई के योगदान का जिक्र है। वेबसाइट पर लिखा है कि भारत ने अंतरिक्ष में जाने का फैसला तब किया था जब भारत सरकार ने साल 1962 में इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च की स्थापना की थी।
यूपीए सरकार के दौर में मंगलयान और चंद्रयान
भारत का चंद्रमा पर पहला मिशन, 2008 में लॉन्च किया गया। चंद्रयान-1 ने 10 महीने तक चंद्रमा की परिक्रमा की और पानी की बर्फ की उपस्थिति सहित चंद्रमा की सतह के बारे में महत्वपूर्ण खोजें कीं। भारत का पहला अंतरग्रहीय मिशन, 2013 में लॉन्च किया गया। दोनों ही दौर में केंद्र में यूपीए की सरकार थी।
मोदी सरकार में क्या बदला?
नेतृत्व की नीति और इच्छाशक्ति को भी देखना जरूरी है। 2014 तक साइंस एंड टेक्नोलॉजी का बजट 5 हजार 400 करोड़ रुपए थे। भारत के विज्ञान को हम इससे किस दिशा में ले जा सकते हैं। कहा तो ये भी जाता है कि सारे पैसे वेतन और लैबोरेट्री के मेंटेनेंस में ही चले जाते थे। लेकिन 2022 में 14 हजार 217 करोड़ हो गया है। यानी 2014 से लेकर 2022 तक इसके बजट में तीन गुणा इजाफा हुआ है। इसके अलावा पीएम मोदी की सरकार में साइंस टेक्नोलॉजी एंड इनोवेशन पॉलिसी को लाकर एक नई क्रांति को जन्म दिया।
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