Monday, February 17, 2025
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मातृभूमि और मातृभाषा से जुड़े बिना सभी की पहचान अधूरी है: मगनभाई पटेल

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इस अवसर पर श्री मगनभाई पटेलने अपने अध्यक्ष स्थान से सौराष्ट्र के तलप्रदेश को याद करके गोंडल के महाराजा भगवतसिंहजी के बारेमे बात करते हुए मातृभाषा के महत्व को समझाया। इस कार्यक्रम को श्री मगनभाई पटेल द्वारा स्पॉन्सर किया गया था।

21 फरवरी को प्रतिवर्ष “विश्व मातृभाषा दिवस” के रूप में मनाया जाता है। हाल ही में गुजरात के अहमदाबाद मे विश्व मातृभाषा दिवस के उत्सव के भाग के रूप में एम.जे.लाइब्रेरी मे श्री रंगमंच सेवा फाउंडेशन के पेट्रन चेरमेन श्री मगनभाई पटेल की अध्यक्षता में एक कवि सम्मेलन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर श्री मगनभाई पटेल ने अपने अध्यक्ष स्थान से सौराष्ट्र के तलप्रदेश को याद करके गोंडल के महाराजा भगवतसिंहजी के बारेमे बात करते हुए मातृभाषा के महत्व को समझाया। इस कार्यक्रम को श्री मगनभाई पटेल द्वारा स्पॉन्सर किया गया था।

श्री मगनभाई पटेलने अपने भाषण एव प्रेस मिडिया इंटरव्यू में कहा कि किसी की पहचान माँ, मातृभूमि और मातृभाषा से जुड़े बिना पूरी नहीं होती है। वर्ष 1952 में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में उर्दू भाषा के आधिपत्य की स्थापना के विरोध में बांग्ला भाषा आंदोलन प्रारंभ हुआ, जिसकी तारीख २१ फरवरी थी। उसी की याद मे बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आने के बाद, यूनेस्को ने उनकी सिफारिश के आधार पर 21 फरवरी को विश्व मातृभाषा दिवस के रूप में मनाने का आह्वान किया। गुजरात साहित्य अकादमी, गांधीनगर ने अमृत काल के अवसर पर गुजरात राज्य में एक साथ 75 स्थानों पर मातृभाषा दिवस मनाया गया है।

श्री मगनभाई पटेलने अपने वक्तव्य में कहा की गुजरात सरकार ने नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत से पहले सभी प्राथमिक विद्यालयों में गुजराती भाषा को अनिवार्य करने का भी निर्णय लिया। इस संबंध में गुजरात सरकार ने एक जनहित रिट याचिका में हलफनामा दायर कर कहा कि राज्य के सभी 46 केंद्रीय विद्यालयों में गुजराती भाषा बिल्कुल नहीं पढ़ाई जाती है। गुजरात सरकार की ओर से दायर रिट में मांग की गई थी कि राज्यपाल ने गुजराती भाषा के इस्तेमाल के लिए मंजूरी दे दी है और सरकार को इस मंजूरी को लागू करने का आदेश दिया जाए। साल 2012 में राज्य विधानसभा ने सर्वसम्मति से गुजराती भाषा के इस्तेमाल की सिफारिश की थी संविधान के अनुच्छेद 348 के तहत कैबिनेट द्वारा राज्यपाल के समक्ष सिफारिश रखी गई और गुजराती भाषा के उपयोग के संबंध में राज्यपाल द्वारा प्राधिकरण दिया गया।

श्री रंगमंच सेवा फाउंडेशन द्वारा मातृभाषा दिवस के अवसर पर आयोजित इस कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध गुजराती ग़ज़ल लेखक श्री राजेश व्यास ‘मिस्किन’ ने ग़ज़ल और भाषा को मिलाकर मातृभाषा के महत्व को समझाया। इस अवसर पर गुजरात विद्यासभा के उपाध्यक्ष एवं एच.के.कॉलेज के पूर्व आचार्य श्री सुभाषभाई ब्रह्मभट्ट विशेष रूप से उपस्थित थे। विशिष्ट अतिथि एवं पूर्व वन विभागाध्यक्ष डॉ. डी.पी.एस.वर्मा भले ही उनकी मातृभाषा गुजराती नहीं थी, उन्होंने बड़े दिलचस्प ढंग से बताया कि 35 वर्षों तक गुजराती भाषा में कैसे काम किया और उस भाषा में गुजरात के लोगों से कैसे जुड़े रहे। इस अवसर पर रंगमंच सेवा फाउंडेशन के ट्रस्टी श्री सुभाष भट्ट के मार्गदर्शन में कई मंच कार्यकर्ता कार्यक्रम में शामिल हुए थे। अतिथि के रूप में ग्रंथालय बोर्ड के सदस्य डॉ. हेमन्त भट्ट भी उपस्थित थे। एम.जे.लाइब्रेरी के लाइब्रेरियन डॉ.बिपिन मोदीने विभिन्न साहित्यिक गतिविधियों के बारे में बात की। भाल साहित्य मण्डल के मुख्य संयोजक एवं सुप्रसिद्ध कवि प्रतापसिंह डाभी ‘हाकल’ ने जैविक विविधता एवं मातृभाषा से संबंधित अत्यंत रोचक एवं नवीनतम वार्ता से सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन में कवि मधुसूदन पटेल, रावजी गबानी जिगर ठक्कर, इगित मोदी और अरविंद मकवाना ने अपनी कविताएं प्रस्तुत की। जीटीपीएल टीवी के कार्यक्रम निदेशक एवं सुप्रसिद्ध कवि शैलेश पंड्या ‘भिन्नाश’ ने कवि सम्मेलन का सुंदर संचालन किया।

भारत के हर क्षेत्र की एक अलग संस्कृति है, जो इसे एक विविधतापूर्ण राष्ट्र बनाती है। देश में कुल 22 अनुसूचित भाषाएँ हैं और ये सभी भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची के अनुसार विभिन्न राज्यों में व्यापक रूप से बोली जाती हैं। यूनेस्को ने विभिन्न देशों में 7000 से अधिक भाषाओं की पहचान की है, जिनका उपयोग पढ़ने,लिखने और बोलने किये किया जाता है। देश की भाषाई विविधता को उजागर करने के लिए 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस मनाया जाता है। विश्व मातृभाषा उत्सव का मुख्य उद्देश्य भाषाओं और संस्कृतियों की विविधता का सम्मान करना और मातृभाषा का संरक्षण करना है। मातृभाषा में बोलना, पढ़ना, लिखना और सोचना सभी का कर्तव्य है। क्योंकि यदि कोई व्यक्ति उस राज्य की मातृभाषा जानता है, तो दो लोग एक-दूसरे से क्या कहना चाहते हैं, वह समझ जाएगा और दूसरे छोर पर मौजूद व्यक्ति आसानी से संवाद कर सकेगा। ऑल इंडिया एमएसएमई फेडरेशन के एक अध्ययन के अनुसार, आज देश में 89 % लोग मातृभाषा बोलते हैं, और लगभग 53 करोड़ लोगों की पहली पसंद राष्ट्रीय भाषा “हिंदी” है। 

विश्व भाषा डेटाबेस के अनुसार, छह भारतीय भाषाएँ दुनिया भर में सबसे अधिक बोली जानेवाली 20 भाषाओं में से हैं, हिंदी तीसरे स्थान पर है। दुनिया भर में 61.5 करोड़ लोग हिंदी भाषा का उपयोग करते हैं। हिंदी के बाद बांग्ला दुनिया में सातवीं सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। दुनिया भर में 26.5 करोड़ लोग बंगाली भाषा का इस्तेमाल करते हैं। 17 करोड़ लोगों के साथ उर्दू 11वें स्थान पर है। 9.5 करोड़ लोगों के साथ मराठी 15 वें स्थान पर है। तेलुगु 9.3 करोड़ लोगों के साथ 16वें स्थान पर और तमिल 8.1 करोड़ लोगों के साथ 19वें स्थान पर है।

आज देश में अधिकांश बड़े उद्योगपति, साधु-संत, न्यायाधीश, वकील, वैज्ञानिक, प्रबंधन एवं कॉरपोरेट जगत के लोग आदि अपनी-अपनी मातृभाषा सीखकर ही अपने-अपने क्षेत्र में विभिन्न उच्च पदों पर पहुंचे हैं। पश्चिमी संस्कृति का प्रचलन बढ़ता जा रहा है, मातृभाषा का प्रयोग धीरे-धीरे कम होता जा रहा है, जो देश के लिए एक बड़ी समस्या है।

आज देश में अहमदाबाद की 60 बंध कपडे की मिलों के मालिकों से लेकर टाटा, बिरला, बजाज, अदानी, अंबानी जैसे देश के बड़े औद्योगिक समूहों के मालिकों ने अपनी मातृभाषा में पढाई करके आज परिणामलक्षी कार्य कर रहे हैं। आज से करीब 20 से 25 साल पहले जो लोग अमेरिका, यूरोप, कनाडा, मध्यपूर्व या दुनिया के किसी अन्य देश में गए लोग अपनी मातृभाषा में पढ़ाई करके गए थे । समय के चलते आज की नई पीढ़ी को गुजराती वर्णमाला बोलने और समझने में परेशानी हो रही है। परिवार में बूढ़े दादा-दादी या माता-पिता जो मातृभाषा में शिक्षित हैं, उन्हें अंग्रेजी वर्णमाला समझने में कठिनाई हो रही है। जैसे अंग्रेजी में वर्णमाला 19 का अर्थ हिंदी में “उन्निश” और अंग्रेजी में “Ninteen”, जबकि परिवार के दादा-दादी को अपने बच्चो को समझाने के लिए “वन-नाइन” कहना पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप आज परिवार के वरिष्ठ नागरिक तूटी-फूटी अंग्रेजी भाषा सीखने के लिए मजबूर हो रहे है। भाषा एक-दूसरे को समझने का माध्यम है, तकनीक नहीं।

आज हमारे देश में हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में अनिवार्य मान्यता मिलनी चाहिए लेकिन हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सका जो एक ऐसी क्षति है जिसकी भरपाई कभी नहीं की जा सकती। यदि किसी व्यक्ति को देश और दुनिया से संवाद करना है तो तीन भाषाएँ जैसे मातृभाषा, राष्ट्रभाषा यानि “हिन्दी” और अंतर्राष्ट्रीय भाषा यानि “अंग्रेजी” का अध्ययन अनिवार्य रूप से करना होगा, तभी देश और दुनिया के अंतिम छोर पर मौजूद लोगों से संचार हो सकता है।

हालाँकि दक्षिण के कुछ लोग हिंदी भाषा जानते हैं, लेकिन वे इसे बोलते नहीं हैं, इसलिए वे देश के लोगों के साथ संवाद नहीं कर पाते हैं। दक्षिण के लोगों ने हिंदी को अपनी राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार नहीं किया है, इसलिए देश के अन्य राज्यों के लोगों के साथ भाषाई अंतर है। यदि वे गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश या दक्षिण के अलावा किसी अन्य राज्य में जाते हैं। भाषाओं के बीच असमानता के कारण उन्हें अन्य राज्यों की जनता द्वारा स्वीकार नहीं किया जाता है। कई लोग व्यवसाय, उद्योग, राजनीति क्षेत्र या किसी अन्य क्षेत्र में पीछे रह जाते हैं। उन्हें आवासीय मकान रखने, मकान बेचने में, कार्यालय किराए पर लेने और संबंधित राज्यों में संकीर्णता का सामना करना पड़ता है। ऐसे लोगों के पास हुनर होते हुए भी देश के कई लोग उन्हें स्वीकार नहीं करते। दक्षिण भारत के कई लोग अपने कौशल के कारण अच्छी अंग्रेजी बोल और समझ सकते हैं, लेकिन हिंदी भाषा की स्वीकार्यता न होने के कारण वे हिंदी बोलने से आगे नहीं बढ़ पाते। भारत सरकार की अधिकांश संचार प्रणालियों, सरकार के अन्य प्रशासनिक विभाग और संसद में हिंदी अनिवार्य है। लेकिन दक्षिण भारत के लोग इसे स्वीकार नहीं करते, जो एक ज्वलंत प्रश्न है, जिसे मिल-बैठकर विचार-विमर्श करके हल करना चाहिए।

दुनिया के लगभग 204 देशों की अपनी राष्ट्रीय भाषा और मातृभाषा है। आज हिंदी भाषा का प्रयोग अधिकतर प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, थिएटर जगत, सिने जगत आदि में किया जाता है। भारत सरकार के अधिकांश प्रचार माध्यमों में हिंदी भाषा का प्रयोग किया जाता है। यहां तक कि हमारे माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी जब विदेश यात्रा पर जाते हैं तो वहां रहने वाले भारतीय समुदाय के सभी लोगों को हिंदी भाषा में संबोधित करते हैं, जो राष्ट्रभाषा हिंदी का प्रचार सूचक है, जो बहुत सराहनीय है। इस प्रकार हमारा कहने का तात्पर्य यह है कि मातृभाषा नींव की ईंट है और उस पर अन्य भाषाओं का निर्माण किया जा सकता है।

देश के किसी भी राज्य में कक्षा-5 तक मातृभाषा, राष्ट्रभाषा “हिन्दी” अनिवार्य होनी चाहिए तथा कक्षा-५ के बाद मातृभाषा, राष्ट्रभाषा “हिन्दी” तथा अन्तर्राष्ट्रीय भाषा “अंग्रेजी” अनिवार्य होनी चाहिए। चाहे माध्यम कोई भी हो,अध्ययन के दौरान इस भाषा का उपयोग विद्यार्थी के पाठ्यक्रम की अवधि के लिए किया जाना चाहिए। इसे एक विषय के रूप में शामिल किया जाना चाहिए। ऑल इंडिया एमएसएमई फेडरेशन का आग्रह है कि देश के अधिकांश निजी स्कूल,सीबीएसई, आईसीएसई, आईबी, एसजीबीएसई, सीआईसी और केंद्रीय विद्यालय जैसे अन्य बोर्ड जहां मातृभाषा नहीं पढ़ाई जाती है, उनकी मान्यता रद्द कर देनी चाहिए।

भारत सरकार ने राष्ट्रभाषा के प्रचार-प्रसार के लिए अनेक प्रयास किये हैं तथा अनेक राज्यों ने भी अपना सहयोग दिया है। उपरोक्त हमारे सुझाव हैं और हमारा मानना है कि यदि राष्ट्रभाषा को अनिवार्य बनाकर राज्यों के बीच भाषाई अंतर को पाट दिया जाए तो यह देश के विकास में काफी हद तक सहायक कार्य माना जा सकता है।

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