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Real success story: ‘पिताजी मजदूर थे. पैसे की बहुत तंगी थी. वर्ष 2008 में मैं जब मोतिहारी के अपने गांव से आया था, तो मेरे पास कुछ भी नहीं था. हाफ पैंट और बनियान में घर से भागकर मैं राजधानी पटना आया था. इस शहर से अनजान था. मुझे नहीं पता था कि आगे क्या करना है. सोचा जीने खाने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा.
2500 रुपये उधार लेकर शुरू किया था काम
हाईकोर्ट के गेट नंबर 2 के पास एक बूढ़े चाचा ठेला लगाते थे. सत्तू बेचा करते थे, लेकिन वह अस्वस्थ थे, खांसी आती रहती थी. एक दिन मैंने उनसे सलाह देते हुए सिफारिश की कि वह अपना ठेला मुझे दे दें. बदले में उन्हें मैं कुछ पैसे या ठेले का किराया दे दिया करुंगा. बाबा ने बात मान ली 2500 रुपये गांव के एक सज्जन से उधार लेकर बर्तन ले आया. बगल की मटन की दुकान से ही ढाई किलो मटन लाया और मीट चावल बनाए.
पहले दिन सिर्फ 200 रुपए की हुई थी कमाई
65 रुपए प्लेट पर बेचना शुरू किया. सब बिक गया, पहले दिन सिर्फ 200 रुपए की ही कमाई हुई. यह कहानी बताते हुए चंपारण मीट हाउस के मालिक राजीव सिंह थोड़ी देर के लिए भावुक हो जाते हैं. गांव से शुरुआती पढ़ाई के बाद उन्होंने ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई की थी, लेकिन नौकरी नहीं मिली. अब उनके पास कोई रास्ता नहीं था.राजीव आगे कहते हैं कि मैंने हार नहीं मानीं. अगले दिन 4 किलो मटन के साथ काम शुरू किया और धीरे- धीरे यह सिलसिला आगे बढ़ता गया.
चंपारण हांडी मीट वाले राजीव का फूड मॉल बनाने का सपना
बाद में एक दुकान लेकर उसमें काम शुरू किया और आज के समय में पटना में इसी नाम से तीन से चार रेस्टोरेंट, इसके अलावा कोलकाता समेत कई जगहों पर चंपारण मीट हाउस खुल चुके हैं. आज उनके सभी रेस्टोरेंट में रोजाना 8 से 9 क्विंटल मटन की खपत है. अभी तक वह सैकड़ों लोगों को रोजगार दे चुके हैं. उन्होंने खास रेसिपी तैयार की और उसका मसाला भी स्पेशल है. उनका कहना है हांडी मीट की बात है सबसे अलग है, यही कारण है कि खाने के शौकीनों को चंपारण हांडी मीट पसंद आता है. राजीव कहते हैं मेहनत और लगन की वजह से वह यहां तक पहुंचे हैं और जल्द ही बिहार में फूड मॉल बनाने का सपना है. उनका मानना है कि मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती.
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Tags: Food, Success Story
FIRST PUBLISHED : June 27, 2023, 14:07 IST
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