रांची । झारखंड में टैलेंट है, अच्छी फिल्में भी बन रहीं, लेकिन रिलीज कहां करें, कैसे करें; ‘नासूर’ का कोई खरीदार नहीं मिला तो आज खुद रिलीज कर रहा’ झॉलीवुड मशहूर डायरेक्टर राजीव सिन्हा ने यह बात कही। उनकी यह चौथी फीचर फिल्म ‘नासूर’ आज रांची में रिलीज हो रही है। पिछले साल मई में नागपुरी फिल्म ‘दहलीज’ रिलीज हुई थी। इसके 13 महीनों बाद 23 जून को ‘नासूर’ आ रही है। इस फिल्म के डायरेक्टर राजीव सिन्हा हैं। राजीव ने 22 साल पहले 2001 में झारखंड का पहला आधुनिक वीडियो एलबम ‘जंगल’ लाया था, जिसकी कामयाबी ने झॉलीवुड इंडस्ट्री खड़ी कर दी। नागपुरी गाने से शुरुआत करके, डौक्यूमैंटरी, शॉर्ट फिल्में, 4 फीचर फिल्में बनाने के बाद राजीव फिल्म्स नाम से प्रोडक्शन हाउस खोले और इसी बैनर तले चौथी फीचर फिल्म ‘नासूर’ रिलीज कर रहे हैं।
इस फिल्म के लिए फाइनेंस करने वाला कोई नहीं मिला, तो मुश्किलों से पैसे जुगाड़ कर रांची के हाई स्ट्रीट मॉल के जेडी सिनेमा में इस शुक्रवार को 2 बजे से इसे रिलीज कर रहे हैं। कहते हैं कि जब झारखंड के लोग आगे आएंगे, हमारे सिनेमा को सपोर्ट करेंगे, तभी और रीजनल फिल्में बनेंगी।
नागपुरी, खोरठा और बांग्ला भाषा में फीचर फिल्म बनाई
फिल्मों से लगाव बचपन से रहा है, ज्यादा से ज्यादा फिल्में देखने की कोशिश मेरी रहती थी। उम्र के साथ फिल्मों से भी लगाव बढ़ता गया। मुझे गानों का शौक था और नागपुरी एलबम बनाता था। हिंदी में एलबम देखकर मन हुआ कि अपने एक एलबम ‘जंगल’ का वीडियो बनाऊं। बनाने में बहुत मुश्किल आई, क्योंकि एडिटिंग के टूल्स हमारे पास नहीं थे। अच्छे वीडियो कैमरा भी झारखंड में उपलब्ध नहीं था। 2001 में जब यह एलबम बनकर आया तो झारखंड के क्षेत्रीय भाषा का पहला आधुनिक एलबम बना और खूब हिट हुआ। फिर ‘डोली’, ‘परदेसी साजन’, ‘मंुबई कर लोला’ जैसे सौ से ज्यादा एलबम बनाए। फिर एक पूरी इंडस्ट्री खड़ी हो गई। हमारे एलबम की मांग अंडमान तक होने लगी। फिर, छोटी-छोटी कहानी और गानों को मिलाकर शॉर्ट फिल्में बनाने लगा। फिर फीचर फिल्म बनाने का सोचा और पहली फिल्म 2005 में ‘सुन सजना’ बनाई। दूसरी फिल्म 2011 में ‘करमा’ और फिर 2018 में खोरठा में ‘दीवानगी’ आई। बांग्ला में 2015 में ‘पांचाली’ फिल्म भी बनाई। मेरी पांचवीं फीचर फिल्म ‘नासूर’ आज रिलीज हो रही है।
झारखंड के लिए नासूर है डायन प्रथा, इस पर किया है प्रहार
नासूर मेरी अन्य फिल्मों से अलग है। जहां मेरी तीनों फिल्में प्रेम कहानी और बदले पर आधारित है, वहीं इस फिल्म में मनोरंजन के साथ सामाजिक मुद्दे को उठाया है। डायन प्रथा आज भी झारखंड के लिए नासूर की तरह है। आए दिन ग्रामीण महिलाओं की हत्या डायन के नाम पर हो जाती है। इस फिल्म के द्वारा हम इस कुप्रथा पर प्रहार कर रहे हैं।
कोई फाइनेंसर नहीं मिला तो खुद प्रोड्यूस करना पड़ा
आने वाले समय में नागपुरी-खोरठा के साथ छत्तीसगढ़ी और हिंदी फिल्मों के लिए काम कर रहा हूं। एक नए प्रोजेक्ट पर भी काम चल रहा है, जिसका नाम है ‘थोड़ा सा प्यार हुआ है थोड़ा है बाकी’। यह रोमांटिक एक्शन थ्रिलर फिल्म होगी। ‘नासूर’ को मजबूरी में मुझे डायरेक्शन के साथ प्रोड्यूस भी करना पड़ा, क्योंकि यहां की फिल्मों को कोई फाइनेंस करना नहीं चाहता।
नए लोग कंटेंट पर ध्यान दें, फिल्म बनाने से ज्यादा दिक्कत इसे रिलीज करना है
झारखंड के नए फिल्मकारों से कहना चाहूंगा कि सबसे पहले फिल्म के कंटेंट पर ध्यान दें। अच्छी कहानी, अच्छी स्क्रिप्ट पर काम करें। यह सोचकर आगे बढ़ें कि फिल्म बनाने की राह में कोई सपोर्ट सिस्टम नहीं होगा। उन्हें अपने दम पर फिल्म तो बनाना ही पड़ेगा, लेकिन ज्यादा चैलेंज उन्हें इसे रिलीज करने में आएगा। फिल्म रिलीज करना झारखंड में टेढ़ी खीर है। यहां के मल्टीप्लेक्स में हम जैसे छोटे बजट की रीजनल फिल्में बनाने वालों का कोई नहीं सुनता। सरकार भी हमारे ऊपर ध्यान नहीं देती। अन्य राज्यों की तरह अगर क्षेत्रीय फिल्मों को सरकार प्रोत्साहित करे और सिनेमा हॉल मालिकों को आदेश दे व कानून बनाएं कि हर हॉल में रीजनल फिल्में लगाना अनिवार्य हो, तो इससे यहां के टैलेंटेड युवा आगे आएंगे, लोगों को रोजगार मिलेगा। प्रतिभाएं बाहर नहीं जाएंगी और सरकार को भी राजस्व का लाभ होगा। साथ ही फिल्मों के माध्यम से झारखंड की भाषा, संस्कृति भी बची रहेगी