पाकुड़ जिले में भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण का व्यापक अध्ययन
4 मार्च को भू वैज्ञानिक सर्वेक्षण, भारत सरकार के भू-विरासत एवं भू-पर्यटन संवर्धन केंद्र के तहत डॉ. रणजीत कुमार सिंह, जो भूवैज्ञानिक एवं पर्यावरणविद हैं तथा मॉडल कॉलेज राजमहल, साहिबगंज के प्राचार्य हैं, ने झारखंड के पाकुड़ जिले का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने बरमसिया, सोलगाडिया, सोनाजोड़ी समेत कई महत्वपूर्ण संरक्षित जीवाश्म स्थलों का निरीक्षण किया। इस यात्रा का उद्देश्य क्षेत्र में मौजूद लकड़ी के जीवाश्मों का अध्ययन करना तथा इनके संरक्षण के प्रति स्थानीय ग्रामीणों को जागरूक बनाना था।
स्थानीय ग्रामीणों में जीवाश्मों के प्रति आस्था और वैज्ञानिक महत्व
पिछली कई दशकों से स्थानीय ग्रामीण इन जीवाश्म लकड़ियों की पूजा करते आ रहे हैं क्योंकि वे इन्हें आसपास की चट्टानों से अलग मानते हैं। हालांकि, बीते सौ वर्षों में भारत के भूवैज्ञानिकों ने विशेष रूप से डॉ. रणजीत कुमार सिंह, जीएसआई (GSI), बीएसआईपी (BSIP) समेत देश-विदेश के गोंडवाना पौधे जीवाश्म शोधकर्ताओं ने इन जीवाश्म लकड़ियों की पहचान कर उन्हें वैज्ञानिक रूप से वर्गीकृत किया है। झारखंड की यह अनूठी जीवाश्म लकड़ी भू-विज्ञान और जैवविज्ञान के क्षेत्र में शोधकर्ताओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
भू-विरासत संरक्षण हेतु संयुक्त प्रयास
इस यात्रा के दौरान पाकुड़ वन विभाग, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) और डॉ. रणजीत कुमार सिंह ने मिलकर झारखंड वन विभाग के प्रभागीय वनाधिकारी (DFO) सौरव चंद्रा के साथ भू-विरासत संरक्षण योजना का प्रस्ताव रखा। इस योजना का उद्देश्य झारखंड के इन दुर्लभ जीवाश्म स्थलों को संरक्षित करना और उन्हें अगली पीढ़ी के शोधकर्ताओं एवं आम लोगों के लिए संजोकर रखना है।
जीवाश्म स्थलों को भू-पर्यटन और जियोपार्क के रूप में विकसित करने की योजना
इस अध्ययन के दौरान जीएसआई के विशेषज्ञों ने स्थानीय ग्रामीणों, प्रशासनिक अधिकारियों और वन विभाग के अधिकारियों के साथ इको-टूरिज्म को बढ़ावा देने और क्षेत्र में एक विशेष जियोपार्क विकसित करने की संभावनाओं पर चर्चा की। इस क्षेत्र में भू-स्थलों के व्यवस्थित विकास की असीम संभावनाएं हैं, जिससे न केवल वैज्ञानिक शोध को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि पर्यटन से स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी।
यूनेस्को मानकों के तहत भू-पार्क के निर्माण का प्रस्ताव
पाकुड़ जिले में स्थित ये जीवाश्म वन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अद्वितीय भू-विरासत स्थलों में से एक हैं। इसलिए, इन्हें उनकी प्राकृतिक स्थिति में संरक्षित करने की सख्त आवश्यकता है। इस दिशा में यूनेस्को द्वारा निर्धारित अंतरराष्ट्रीय मानकों को ध्यान में रखते हुए एक बड़े भू-पार्क के निर्माण का प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है। इसके तहत जीवाश्म लकड़ियों के वर्गीकरण, संरक्षण और शोध कार्यों को बढ़ावा दिया जाएगा।
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के 175वें स्थापना दिवस पर विशेष दौरा
गौरतलब है कि 4 मार्च को भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) का स्थापना दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष जीएसआई अपना 175वां स्थापना दिवस मना रहा है। जीएसआई, जीवाश्मों की खोज और उनके संरक्षण में लगातार सक्रिय भूमिका निभाता आया है। इस मौके पर पाकुड़ जिले में जीवाश्म स्थलों का यह विशेष दौरा किया गया।
पेलियोबायोडाइवर्सिटी और पेलियोफ्लोरा को समझने के लिए अहम स्थल
डीएफओ सौरव चंद्रा ने इस मौके पर कहा कि पाकुड़ जिले में मौजूद जीवाश्म स्थल, जैव विविधता (पेलियोबायोडाइवर्सिटी) और प्रारंभिक क्रेटेशियस काल की प्राचीन वनस्पतियों (पेलियोफ्लोरा) को समझने के लिए महत्वपूर्ण हैं। इसके वैज्ञानिक अध्ययन के लिए जीवाश्मित लकड़ियों के उचित वर्गीकरण और संरक्षण की आवश्यकता है।
जीवाश्म स्थलों के दौरे में शामिल विशेषज्ञ
इस दौरान भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI), राज्य इकाई झारखंड के भूवैज्ञानिक सौरभ पाल और अंजलि पाल ने भी पाकुड़ जिले के इन दुर्लभ जीवाश्म स्थलों का दौरा किया। इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य इन स्थलों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से संरक्षित करना और भविष्य में शोध एवं भू-पर्यटन के लिए इनका विकास करना था।
यह दौरा पाकुड़ जिले में स्थित महत्वपूर्ण भू-विरासत स्थलों के संरक्षण और उन्हें भू-पर्यटन के रूप में विकसित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस क्षेत्र में एक जियोपार्क विकसित करने की योजना से न केवल झारखंड के भूवैज्ञानिक महत्व को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलेगी, बल्कि स्थानीय समुदाय को भी आर्थिक लाभ होगा।