जिला विधिक सेवा प्राधिकार के तहत चल रहा 90 दिवसीय जागरूकता अभियान
झारखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (झालसा, रांची) के निर्देशानुसार जिला विधिक सेवा प्राधिकार, पाकुड़ द्वारा 90 दिवसीय आउटरीच सह विधिक जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। इसी कड़ी में शनिवार को शहरकोल पंचायत के प्राथमिक विद्यालय, शहरकोल में एक जागरूकता सत्र आयोजित किया गया, जिसमें कानूनी अधिकारों, बाल विवाह, बाल श्रम और दहेज प्रथा से संबंधित जानकारी दी गई।
प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश के निर्देशन में हुआ कार्यक्रम
यह कार्यक्रम प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश सह अध्यक्ष, जिला विधिक सेवा प्राधिकार, पाकुड़, शेष नाथ सिंह के निर्देश पर और सचिव अजय कुमार गुड़िया के मार्गदर्शन में आयोजित किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में विधिक जागरूकता फैलाना और लोगों को उनके कानूनी अधिकारों से अवगत कराना था।
बाल विवाह: एक गंभीर अपराध और सामाजिक बुराई
कार्यक्रम में पीएलवी अमूल्य रत्न रविदास ने बाल विवाह के दुष्प्रभावों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि शादी के लिए सही उम्र तय की गई है—लड़कियों के लिए 18 वर्ष और लड़कों के लिए 21 वर्ष। इससे कम उम्र में विवाह स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार को प्रभावित करता है और यह कानूनी रूप से दंडनीय अपराध भी है।
उन्होंने यह भी बताया कि बाल विवाह से लड़कियों का शारीरिक और मानसिक विकास बाधित होता है। वे शिक्षा पूरी नहीं कर पातीं, कुपोषण और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का शिकार हो जाती हैं। इसके अलावा, कम उम्र में मां बनने से उनके जीवन पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
बाल श्रम के कानूनी पहलू और हानियां
एजारुल शेख ने बाल श्रम के दुष्परिणामों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से मजदूरी कराना कानूनन अपराध है। उन्होंने बताया कि बाल श्रम बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास को बाधित करता है, शिक्षा के अवसरों को छीनता है और उनका भविष्य अंधकारमय बना देता है।
उन्होंने कहा कि सरकार ने बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986 लागू किया है, जिसके तहत बच्चों से खतरनाक कार्य कराना पूरी तरह से प्रतिबंधित है। यदि कोई नाबालिग बच्चों से जबरन श्रम करवाता है, तो उसे कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है।
दहेज प्रथा और शिक्षा का अधिकार: जागरूकता अभियान
विजय कुमार राजवंशी ने दहेज प्रथा और शिक्षा के अधिकार पर विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने बताया कि दहेज लेना और देना, दोनों ही कानूनी अपराध हैं। दहेज प्रथा समाज में महिलाओं के शोषण और उत्पीड़न को बढ़ावा देती है। दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 के तहत यदि कोई व्यक्ति दहेज की मांग करता है, तो उसे सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
इसके अलावा, उन्होंने शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 पर चर्चा की, जिसके तहत 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्राप्त है। उन्होंने विद्यार्थियों को जागरूक करते हुए कहा कि शिक्षा ही एकमात्र माध्यम है जो समाज को अंधविश्वास, भेदभाव और अन्य सामाजिक कुरीतियों से मुक्त कर सकता है।
कानूनी जागरूकता से ही होगा समाज का विकास
कार्यक्रम में उपस्थित सभी वक्ताओं ने यह स्पष्ट किया कि कानून की जानकारी होना हर नागरिक के लिए आवश्यक है। जब लोग अपने अधिकारों और कर्तव्यों से परिचित होंगे, तभी समाज से अपराध और अन्य सामाजिक बुराइयों को समाप्त किया जा सकता है।
यह विधिक जागरूकता कार्यक्रम पाकुड़ जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में कानूनी ज्ञान बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसमें बाल विवाह, बाल श्रम, दहेज प्रथा और शिक्षा के अधिकार पर विशेष जोर दिया गया। कार्यक्रम में उपस्थित लोगों ने इन महत्वपूर्ण विषयों पर गहन चर्चा की और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के संकल्प के साथ इसे समाप्त किया।