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विश्वानथ मंदिर का इतिहास हजारों वर्ष पुराना माना जाता है। ये मंदिर गंगा नदी के पश्चिमी तट पर है। कहा जाता है कि इस मंदिर का दोबारा निर्माण 11वीं सदी में राजा हरीशचंद्र ने करवाया था।
12 ज्योतिलिंगों में से एक काशी विश्वनाथ शिव और पार्वती का आदिस्थान माना जाता है। महाभारत और उपनिशेदों में भी इसके कोटेशन मिलते हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर को विश्वेर नाम से भी जाना जाता है। विश्वेर शब्द का अर्थ होता है ब्रह्मांड का शासक। ज्ञानवापी मस्जिद-श्रृंगार गौरी परिसर को लेकर अदालतों में जारी बहस के बीच कुछ नए और पुराने तथ्य आज आपके सामने हम लेकर आए हैं। 19वीं सदी के अंग्रेजी लेखक जेम्स प्रिंसेप ने यात्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान 1831 में वाराणसी शहर की यात्रा करते हुए वर्तमान ज्ञानवापी मस्जिद को डिकोड किया था। ज्ञानवापी में विश्वेश्वर की सर्वव्यापकता एक ऐसा रिकॉर्ड है जिसे हिंदुओं ने अपनी सभ्यतागत स्मृति में हमेशा से जिंदा रखा है। लेकिन जहां सुलह की मांग चल रही है, वहीं न्याय के व्याकरण के साथ पवित्र स्थलों पर नियंत्रण की लड़ाई लड़ी जा रही है। जबकि प्रतिष्ठित शिवलिंग सदियों के बाद इनकार के धुंध से अब बाहर निकल गया है। कुछ दस्तावेज ऐसे हैं जो पूर्ववर्ती मंदिर के अस्तित्व को मान्य करते हैं।
मंदिर के निर्माण और ध्वंस की कहानी को पहले फटाफट समझ लेते हैं
विश्वानथ मंदिर का इतिहास हजारों वर्ष पुराना माना जाता है। ये मंदिर गंगा नदी के पश्चिमी तट पर है। कहा जाता है कि इस मंदिर का दोबारा निर्माण 11वीं सदी में राजा हरीशचंद्र ने करवाया था। 1194 ईसवीं में मोहम्मद गौरी ने इसे ध्वस्त कर दिया था। परंतु मंदिर का पुन निर्माण करवाया गया। लेकिन 1447 ईसवी में इसे एक बार फिर जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने तुड़वा दिया। इतिहास के पन्नों में झांकने पर ये ज्ञात होता है कि काशी मंदिर के निर्माण और तोड़ने की घटनाएं 11वीं सदी से लेकर 15वीं सदी तक चलती रही। मंदिर के साथ ही ज्ञानवापी मस्जिद है। कहा जाता है कि मस्जिद मंदिर की ही मूल जगह पर बनाई गई है।
पुराने विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर कैसे बनी ज्ञानवापी की मस्जिद
1669 में औरंगज़ेब द्वारा नष्ट किए जाने से पहले मौजूद काशी विश्वेश्वर मंदिर की मूल योजना अपने आप में आश्चर्य की बात है। विश्वेश्वर मंदिर का खाका है, जिस पर आज ‘ज्ञानवापी मस्जिद’ बनाई गई है। ब्रिटिश वास्तुकार जेम्स प्रिंसेप जो वाराणसी के डीएम भी थे, उन्होंने औरंगज़ेब द्वारा निर्मित ‘ज्ञानवापी मस्जिद’ को पुनर्स्थापित करने के विचार के साथ बड़े पैमाने पर काशी शहर का सर्वेक्षण किया, तो उन्होंने परिसर में संरचनाओं का दस्तावेजीकरण के जरिए इसकी शुरुआत की। प्रिंसेप ने पाया कि परिसर में खड़ी मस्जिद मूल रूप से विश्वेश्वर के मंदिर पर बनाई गई थी जो 1669 में मुगल अत्याचारी औरंगजेब के आदेश के बाद अपने विनाश से पहले अस्तित्व में थी। उनके वास्तुशिल्प दस्तावेज ने उन्हें विवादित ढांचे का मसौदा तैयार करने के लिए प्रेरित किया, जिसका शीर्षक ‘विश्वेश्वर के प्राचीन मंदिर की योजना’ है। प्रिंसेप की मंदिर की योजना वर्ष 1834 से है जब उन्होंने रॉयल सोसाइटी के एक साथी के रूप में काशी और उसके घाटों का बड़े पैमाने पर सर्वेक्षण किया।
विश्वेश्वर मंदिर की योजना को लिथेग्राफी से नक्शे के जरिए समझाया
जेम्स प्रिंसेप ने विश्वेश्वर मंदिर की योजना को लिथेग्राफी से नक्शे के जरिए समझाया। लिथेग्राफी पत्थर पर चिकनी वस्तु से लेख लिखकर अथवा डिजाइन बनाकर, उसके द्वारा छाप उतारने की कला है। प्रिंसेप की विश्वेश्वर के प्राचीन मंदिर की योजना में देखा जा सकता है कि गर्भगृह में शिवलिंग (महादेव) को रखा गया है। उत्तर-दक्षिण रेखीय अक्ष में आगंतुकों के लिए दो छोटे बरामदे (शिव मंडप) को दर्शाया गया। पूर्व-पश्चिम अक्ष में केंद्र में ‘द्वारपालों’ से घिरे प्रवेश मंडप थे। कोनों पर और चार कोनों में तारकेश्वर, मनकेश्वर, भैरों (भैरों) गणेश विराजमान थे। इस प्रकार योजना केंद्र में प्रमुख देवता के साथ 3 × 3 ग्रिड पर आधारित थी।
ज्ञानवापी कुंआ
20वीं शताब्दी के मिशनरी एडविन ग्रीव्स ने अपनी पुस्तक ‘काशी, द सिटी इलस्ट्रियस’ में प्राचीन ज्ञानवापी कूप के दृश्य को चित्रित किया है। वो लिखते हैं कि मस्जिद के पूर्व में ज्ञान बापी, ज्ञान के कुएं को कवर करते हुए एक सादा लेकिन अच्छी तरह से निर्मित स्तंभ है। यह कुआं एक पत्थर से घिरा हुआ है, जिस पर एक ब्राह्मण बैठता है। उपासक कुएं पर आते हैं, फूलों की पेशकश करते हैं और ब्राह्मण के हाथ से कुएं से एक छोटा चम्मच पानी प्राप्त करते हैं। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि 1830 के दशक में शहर में रहने के दौरान ग्वालियर की मराठा रानी बैजाबाई सिंधिया द्वारा ज्ञानवापी कुएं को कवर करने वाले कॉलोनेड का निर्माण किया गया था। ज्ञानवापी कुएं की कई तस्वीरें, जिनके नाम पर आज की मस्जिद का नाम पड़ा है, ब्रिटिश सर्वेक्षकों ने बहुत विस्मय के साथ क्लिक की हैं। एक तस्वीर में पत्थर में खुदी हुई एक अलंकृत मुंडेर को कुएं को ढंकते हुए देखा जा सकता है। ऐसा कहा जाता है कि बैजाबाई ने मुस्लिम निवासियों के हमलों और धमकियों से बचाने के लिए कुएं के ऊपर एक सहायक संरचना का निर्माण किया इतिहासकारों ने इंगित किया है, कई झड़पें ‘ज्ञानवापी मस्जिद’ के विवादित मूल को लेकर छिड़ गईं, जबकि हिंदुओं ने साइट के अपने सही स्वामित्व के लिए बार-बार मांग करना जारी रखा।
नंदी और शिवलिंग का रहस्य
16 मई 2022 को फर्स्ट फ्लोर पर शिवलिंग मिला है। ग्राउंड फ्लोर से फर्स्ट फ्लोर के जाने के क्रम में वहीं पर एक लेवल बना हुआ है। शिवलिंग आपको करीब 4 फीट ऊपर दिखेगा। जिसमें इन्होंने 63 सेंटीमीटर छेद कर रखा है। इसी शिवलिंग के ठीक सामने नंदी जी बैठे हुए हैं। इन दोनों के बीच का अंतर 83 फीट है। नंदी जी नए मंदिर परिसर में बैठे है। साक्ष्य के निर्णायक टुकड़ों में से एक, जो शिवलिंग के अस्तित्व को सही ठहराता है, वह दिशा थी जिसमें मूल मंदिर के नंदी का सामना करना। शिव मंदिर में नंदी हमेशा शिवलिंग के सामने रहते है। 17 वीं शताब्दी में मुगल अत्याचारियों ने नंदी की मूर्ति को नष्ट नहीं किया। जबकि वह विश्वेश्वर के उठने की प्रतीक्षा कर रहे थे। नंदी मूर्ति जो अब वर्तमान काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर का हिस्सा है, वर्तमान मंदिर में देवता की ओर नहीं बल्कि विवादित ज्ञानवापी संरचना की ओर उनका मुख है। नंदी जी के ठीक सामने व्यास जी का तहखाना है। नवंबर 1993 तक इसमें व्यास परिवार पूजा करती थी। नवंबर 1993 में मुलायम सिंह सरकार के दौरान काशी विश्वनाथ एड और प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के खिलाफ जाकर दीवार खड़ी कर व्यास परिवार को पोजेशन से बाहर कर दिया गया। एंट्री गेट के पास ही एक तहखाना सीढियों के ठीक बगल में है जहां से भी देवी-देवताओं की काफी सारी मूर्तियां मिली हैं।
1993 में मुलायम सरकार के दौरान खड़ी की गई दीवार
गेट नं 4 को वीआईपी गेट माना जाता है। जो लोग वीआईपी दर्शन करना चाहते हैं वो इस वीआईपी गेट से दर्शन कर सकते हैं। जैसे ही आप गेट नं 4 से दाखिल होंगे तो आपको एक रेलिंग नजर आएगी। जिसे मुलायम सिंह यादव की सरकार ने नवंबर 1993 में बनवाई थी। मस्जिद उसी रेलिंग के अंदर है। पहले मस्जिद किसी भी तरह की रेलिंग के अंदर नहीं थी। वर्ष 1993 में उत्तर प्रदेश में जब प्रदेश के चुनाव हुए तो दिसंबर माह में मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी। उस समय केंद्र में पीवी नरसिंह राव की कांग्रेस सरकार थी।
अष्ट मंडप का मैप
भैरव मंडप, शिवा मंडप, मुक्ति मंडप, सेंटर में महादेव विराजमान, फिर द्वारपाल, उनके बगल में ज्ञान गणेश मंडप, फिर शिवा और तारकेश्वर मंडप। पहले गौड़ीजी के दर्शन करते हुए अंदर मंदिर में दाखिल होते थे। फिर ठीक सामने महादेव के दर्शन होते थे। लेकिन वर्तमान समय में ये सारे मंडर खत्म हो चुके हैं। सिर्फ और सिर्फ वेस्टर्न वॉल बची है। आज के नक्शे में इसे समझे तो हमे जो शिलिंग मिला है वो वहीं मिला है जहां महादेव विराजमान हैं। वर्तमान में सिर्फ तीन मंडप बचा है और बाकी पूरे एरिया का विध्वंस हो चुका है और एक मस्जिद के रूप में कन्वर्ट करने की कोशिश हुई। आज की तारीख में जब हम परिसर में अंदर जाते हैं तो द्वारपाल के मंडप का जैसा स्ट्रक्चर था वैसा ही स्ट्रक्चर नजर आता है। उसी तरह के पिलर हैं जो हिन्दू मंदिरों के हुआ करते थे। इस पूरे स्ट्रक्चर के नीचे भी जो तहखाना मिला है उसके खंभे भी आज भी हिंदू मंदिर के हैं। उन पर हिंदू देवी देवताओं के चित्र, संस्कृत के स्लोक और मूर्ति को तोड़े जाने की निशानी भी इन खंभों पर नजर आ रही है।
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