Tuesday, December 3, 2024
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छठ पर्व के चार दिन: आत्मशुद्धि और भक्ति का मार्ग

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पाकुड़। सूर्य उपासना का महापर्व छठ कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर मंगलवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया है। 5 नवंबर से छठ पर्व का पहला दिन नहाय-खाय के रूप में मनाया गया। इस दिन छठवर्ती पवित्र नदी या जल स्रोत में स्नान कर नए वस्त्र धारण करती हैं और इसके बाद पूरी पवित्रता से पर्व की शुरुआत करती हैं। परंपरा के अनुसार, छठी मैया को समर्पित इस दिन नए मिट्टी के चूल्हे में गोयठा या लकड़ी की आग से शुद्ध घी में कद्दू (लौकी) की सब्जी, सेंधा नमक, अरवा चावल का भात, और चने की दाल बनाई जाती है। इस दिन से प्याज और लहसुन का सेवन वर्जित होता है। कमल या केले के पत्ते पर या शुद्ध थाली में छठी मैया को भोग लगाकर प्रसाद को सभी परिजन ग्रहण करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन का प्रसाद ग्रहण करने से मन, वचन, और आत्मा की शुद्धि होती है।

खरना की तैयारियों का दौर
पंचमी तिथि पर, छठ पर्व का दूसरा दिन खरना के रूप में मनाया जाता है। इस दिन छठवर्ती पूरे दिन उपवास रखते हैं और संध्या काल में शुद्ध दूध से बना खीर, पिट्ठा (आटे का पकवान) आदि प्रसाद के रूप में तैयार किया जाता है। छठी मैया को भोग लगाने के बाद, घर के सभी सदस्य इस प्रसाद को ग्रहण करते हैं। खरना को शुद्धि और भक्ति का प्रतीक माना जाता है, जिससे भक्तगण अपने संकल्प को और भी दृढ़ करते हैं।

संध्या अर्घ्य और प्रातः अर्घ्य की विधि
छठ पर्व के तीसरे दिन, षष्ठी तिथि (7 नवंबर), छठवर्ती संध्या काल में नजदीकी नदी, तालाब, या गंगा में स्नान करते हैं और सूर्य देव को संध्या अर्घ्य अर्पित करते हैं। यह अर्घ्य डूबते हुए सूर्य को दिया जाता है, जो सूर्य देव की उपासना का एक महत्वपूर्ण चरण होता है। इसके बाद सप्तमी तिथि (8 नवंबर) को प्रातः कालीन सूर्य देव को उदय अर्घ्य अर्पित कर छठ पर्व का समापन होता है। ऐसा माना जाता है कि छठी मैया की पूजा और अर्घ्य देने से सुख, शांति, समृद्धि और संतान की प्राप्ति होती है।

अर्घ्य देने का समय

  • 6 नवंबर – खरना: सूर्योदय 6:46 बजे और सूर्यास्त 5:26 बजे।
  • 7 नवंबर – संध्या अर्घ्य: सूर्यास्त 5:32 बजे (इस दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा)।
  • 8 नवंबर – प्रातः अर्घ्य: सूर्योदय 6:40 बजे (इस दिन उदय होते सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया जाएगा)।

ध्यान देने योग्य: प्रत्येक स्थान का सूर्योदय और सूर्यास्त का समय अलग-अलग होता है। अतः श्रद्धालु अपने स्थान के सही समय की जानकारी स्थानीय पंडित जी से प्राप्त कर सकते हैं।

छठ महापर्व में चढ़ाई जाने वाली विशेष प्रसाद सामग्रियाँ
छठ महापर्व को डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्व में विशेष प्रसाद जैसे गेहूं के आटे से बने ठेकुआ और अरवा चावल से बने केचुनिया का अत्यधिक महत्व है। पूजा के लिए बांस की टोकरी, सूप, लोटा, कच्चा दूध, गंगाजल, गन्ना, केला, नारियल, शकरकंद, पान, सुपारी, हल्दी, मूली, अदरक, कमला नींबू, फल, फूल, सिंघाड़ा, गुड़ आदि चढ़ाए जाते हैं। इन प्रसाद सामग्रियों का छठ में खास महत्व होता है, और यह पर्व छठी मैया और सूर्य देवता को अर्पण करने के लिए समर्पित किया जाता है।

छठ महापर्व की महिमा
छठ महापर्व का चार दिवसीय यह आयोजन धार्मिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक महत्व को दर्शाता है। इस पर्व में शुद्धता, त्याग, भक्ति और समर्पण का महत्व होता है। नहाय-खाय से प्रारंभ होकर खरना, संध्या अर्घ्य और प्रातः अर्घ्य तक, यह पर्व न केवल आत्मशुद्धि का मार्ग है बल्कि समर्पण का प्रतीक भी है। इस महापर्व में सादगी, पवित्रता और सूर्य उपासना के माध्यम से सुख-शांति और समृद्धि की प्रार्थना की जाती है।

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